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मौर्यों के विशाल शासन के कठिन विवरण
इतिहास लेखन एक विशाल पहेली है और किसी भी लेखक के लिए टुकड़ों को एक साथ जोड़ने का काम आसान नहीं होता है। हम जानते है कि जितना अधिक कोई इतिहास में पीछे जाता है, उतने ही कम स्त्रोतों के साथ उसे काम करना पड़ता है। इतिहासकार देविका रंगाचारी की ‘
लेखिका देविका रंगाचारी की परियोजना मौर्य साम्राज्य के विस्तार तक फैली हुयी है, जिसकी आधारशिला सबसे लोकप्रिय मौर्यों चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक द्वारा रखी गई। इनके बीच में बिन्दुसार, एक कम प्रसिद्ध लेकिन प्रभावशाली मौर्य नायक है। चन्द्रगुप्त मौर्य, मौर्य राजवंश के संस्थापक और पहले शासक थे और उन्हें ही पहले अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने अपने गुरू चाणक्य या कौटिल्य और बाद के मंत्री की मदद से अन्तिम नन्द शासक को हराकर एक विशाल केन्द्रीकृत मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। इस साम्राज्य के कामकाज, संस्कृति, सेना और अर्थव्यवस्था का विवरण कौटिल्य की पुस्तक अर्थशास्त्र में अच्छी तरह से संरक्षित है। यह किताब बताती है कि चन्द्रगुप्त का पुत्र और उत्तराधिकारी बिन्दुसार, मौर्यों के ऐतिहासिक आख्यान में एक अत्यन्त अस्पष्ट व्यक्ति, जो ज्ञात इतिहास के अन्दर और बाहर झाकता है। वह अपने पिता की लोकप्रियता के बीच फसा हुआ है, जिन्होंने अचानक कहीं से आकर इस शानदार साम्राज्य की शुरूआत की। फिर भी इस पुस्तक में विभिन्न स्त्रोतों से, जो भी उनके बारे में छोटे-छोटे प्रामाणिक साक्ष्य मिले हैं, वे एक शक्तिशाली और दूरदर्शी शासक का संकेत देने वाला विवरण सुलभ कराते हैं। उदार और अप्रत्याशित रूचियों वाला एक शासक, जिसने यह सुनिश्चित किया कि उसके उत्तराधिकारी को उससे कहीं अधिक विशाल साम्राज्य विरासत में मिलेगा। बिन्दुसार का पुत्र अशोक, जिसके बारे में हर कोई जानता है कि वह न केवल सबसे शक्तिशाली मौर्य शासक था, बल्कि भारतीय इतिहास में सबसे प्रसिद्ध राजाओं में से एक हुआ।
देविका रंगाचारी स्पष्ट करती हैं- अशोक एक व्यावहारिकतावादी राजा थे और उतने शान्तिवादी नहीं जैसा कि सूत्र हमें बताते हैं। आप एक बोझिल साम्राज्य को एक साथ कैसे बंाधते हैं ? उन्होंने इसे अपने शब्दों, उद्घोषणाओं और आदेशों के माध्यम से सम्भव किया। ऐसी स्थापनाओं के साथ यह किताब ऐसी कई कल्पनाशील कहानियों का कोलाज भी है, जो कलिंग की लड़ाई के परिणामस्वरूप एक क्रूर शासक अशोक को एक पश्चाताप में डूबे हुए व्यक्ति में तब्दील करता है, जिसका चरम उसके शान्तिप्रिय नायक बनने में सन्निहित है। यह उस दौर के परिवर्तनशील राजनीतिक, सामाजिक इतिहास का दस्तावेजीकरण भी है, जिसके बारे में उस साम्राज्य के स्तम्भों और शिलालेखों पर उत्कीर्ण सूचनाओं से समझा जा सकता है। यह अध्ययन एक साम्राज्य के शासक के आमूल-चूल व्यक्तिगत और आध्यात्मिक परिवर्तन को भी लक्ष्य करता है। लेखिका मानती है कि उन्हें एक जासूस और मनोविज्ञानी की टोपी पहननी पड़ी, जिसके चलते इस इतिहास का उत्खनन सम्भव हुआ।
किताब में बेधड़क ढंग से स्पष्ट किया गया है कि कौटिल्य ने शासन कला के बारे में जो अर्थशास्त्र लिखा, वह ज्यादातर इसी अवधि में लिखा गया। यह बेहद आकर्षक है कि सत्ता में बने रहने के लिए कितने प्रयास की आवश्यकता होती है, ताकि आपका प्रयास आपसे चुराया न जा सके। एक तरह से यह विश्वासघात और पीठ में छुरा घोंपने की दुनिया है। पुस्तक में कई संकेत हैं, जिनमें महल की साजिशों की कहानियां, राजकुमार अशोक के शरीर पर दाग लगाने जैसी घटनाएं, उस दौर की महिलाओं के प्रति इतिहासकारों की उदासीनता के बिन्दु हैं। यहां यूनानी राजदूत मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका का उल्लेख भी प्रभावी ढंग से सही बयान के साथ मौजूद है। गहन शोध और बेमिसाल कहानियों से भरी यह किताब मौर्यों के विशाल शासन के कठिन विवरणों को गम्भीरता से सुलझाती है।
स्त्रोतः-
1. के पन्नो से
2. दैनिक जागरण