Bravehearts of Bharat : Vignettes from Indian History

Bravehearts of Bharat : Vignettes from Indian History

एक ऐसे दौर में जब बहुत सारी ऐसी स्थापित मान्यताओं को प्रश्नांकित करने का चलन शुरू हुआ है, जो भारतीय सांस्कृतिक परिदृश्य पर किसी खास विचार को बढावा देने के लिए अब तक प्रसारित होती रही है। लेखक विक्रम सम्पत उन्ही छूट गई दरारों से रोशनी तलाशने के अभियान में लगे हैं।

उनकी हाल ही में प्रकाशित और चर्चित Bravehearts of Bharat : Vignettes from Indian History का अनुवाद ‘शौर्यगाथाएंः भारतीय इतिहास के अविस्मरणीय यौद्धा’ इसी सवाल के साथ शुरू होती है क्या भारतीय समाज का इतिहास असफलताओं की एक लम्बी सूची भर है ? हमारे अस्तित्व की इन बीती सदियों के दौरान हमने कभी विरोध किया भी था या हरेक आने वाले हमलावर के आगे झुक जाते थे ? अगर किया था, तो वे कहानियां कहां हैं, वह नायक सरीखे विरोधी कहां हैं ?

लेखक विक्रम सम्पत की यह किताब Bravehearts of Bharat : Vignettes from Indian History, इन्हीं असफलताओं को करीने से दूर हटाती हुई, उन तथ्यों और इतिहास की घटनाओं को ईमानदारी से हम सबके समाने लाने का जतन करती है, जिससे वृहत्तर भारतीय सन्दर्भ में समावेशी वीरता की कहानियों का चित्रण मिलता है।

इसके महत्व को समझने के लिए भारतीय इतिहास को समग्रता में पढ़ने और शोधपूर्ण ढंग से आगे बढ़ाने की जरूरत है। यह भी एक तल्ख सच्चाई है कि भारत के अधिकांश इतिहासकारों ने विदेशी आक्रांताओं को ऊंचा उठाया और उन्हें नायकत्व प्रदान किया।

भारत में बरसों तक चली औपनिवेशिक व्यवस्था में इतिहासकारों की जो पीढ़िया उभरीं, उन्होंने शैक्षिक प्रणाली में भारत की नई पीढ़ी को एक खास दृष्टिकोण से वही इतिहास पढ़ाया, जो औपनिवेशिक हितों की बात करता था। यह किताब Bravehearts of Bharat : Vignettes from Indian History उन्हीं प्रबृद्ध समाज में स्थापित कुछ इतिहासकार हमेशा से नजरअंदाज करते रहे हैं।

विक्रम सम्पत शायद इसी कारण उन अलक्षित रह गई कथाओं के बहाने आगे बढ़ते हैं, जिन पर न कभी ठीक से विचार-विमर्श हुआ और न ही उन्हें गरिमापूर्ण ढंग से कभी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया।

इस पुस्तक Bravehearts of Bharat : Vignettes from Indian History में भारत के 15 महान भूले-बिसरे ओर गुमनाम बहाुदर स्त्री-पुरूष योद्धाओं के कृत्यों, कालखण्ड औरि उनके योगदानों पर प्रकाश डालती है जिन्होंने न केवल रणभूमि में हथियार उठाए बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी आशा की किरण जलाए रखी।

कश्मीर के ललितादित्य मुक्तापीड से शुरू होकर अवध की बेगम हजरत महल तक, प्रत्येक अध्याय एक नायक/नायिका को सामने लाता है, जिसे प्रमुख औपनिवेशिक-नेहरूवियन-मार्क्सवादी ऐतिहासिक कथा ने भूलने के लिए चुना था।

प्रत्येक अध्याय गहन शोध से आकल्पित है और दिलचस्प ढंग से औपन्यासिक कलेवर लिए प्रवाह में आगे बढ़ता है। इसे पढ़ते हुए यह बात भी समझ में ंआती है कि इसमें अकादमिक ढंग का ठोस अनुंशासन तो मौजूद है, मगर बौद्धिक सूखापन नहीं है। सनीसनीखेज इतिहासविहीन कल्पनाओं में पड़े बिना, यह अपने पाठ में उस प्रवाह को निरन्तर साधता है, जिसके लिए विक्रम सम्पत का लेखन रेखांकित होता रहा है।

कुछ बेधड़क प्रश्नों के साथ किताब अपने मूल विचार को स्थापित करती है, जिसमें सबसे ज्वलन्त सवाल यह कि दिल्ली सल्तनत का इतिहास ही क्यों मुख्यधारा का इतिहास बन गया है- क्या केन्द्रीय है और क्या प्रादेशिक इसका फैसला कैसे किया जा सकता है ? क्या विजयनगर साम्राज्य या कश्मीर के शक्लिशाली कार्कोट या असम के अहोम प्रादेशिक कथांए हैं और स्थान विशेष में सीमित न होकर दिल्ली सल्तनत, भारत का मुख्यधारा इतिहास ?

भारतभूमि के बृहद भूभाग को पूर्णतः नजरअंदाज किया गया, जबकि विद्यार्थी दिल्ली ओर उसके आस-पास राज करने वाले तुुगलकों या लोधियों अथवा खिलजियों जैसे व्यर्थ और अल्पकालिक वंशों के बारे में पढ़ता है, जिनका गिने-चुने स्थापत्य के अलावा देश में न्यूनतम योगदान रहा है। इस विमर्श के साथ उपेक्षा और विस्मरण के बीच उन नायकों और वीरांगनाओं की वीरता तथा बलिदान की गाथांए यवनिका के पीछे चली जाती हैं, जिनका होना भारतीय इतिहास को समृद्ध करता है।

इनमें कश्मीर की रानी दिद्दा, मणिपुर के राजर्षि जय सिंह, अहमदनगर की चांद बीबी, गुजरात की रानी नायकी देवी, बन्दा सिंह बहादुर, रानी दुर्गावती, उल्लास की अब्बक्का रानियों, गढ़वाल की रानी कर्णावती, मदुरई की रानी मनगम्मल, कित्तूर की रानी चेनम्मा, केलादी के चेनम्मा, मराठा रानी ताराबाई, देवी अहिल्याबाई होलकर या भोपाल की बेगमों के बारे में व्यापक जनसमुदाय में जानकारियों का अभाव रहा है। ये ऐसे ही योद्धा हैं जो अपने देश की संस्कृति और परम्परा के लिए लड़े थे।

यह जानकर आश्चर्य होता है कि एकमात्र स्वतन्त रानी जिसके बारे में विश्वयात्री मार्को पोलो ने विस्मय ंऔर सम्मान के साथ लिखा था, वह रूद्रमा देवी थी। बहादुर कश्मीर राजा ललितादित्य ने हमलावर अरब सेनाओं को करारी शिकस्त दी थी और इस जीत का जश्न, कश्मीर के लोगों द्वारा हर साल मनाया जाता था।

गुजरात की रानी नायिकी देवी ने मुहम्मद गौरी को अपमानजनक हार दी थी और इस अप्रत्याशित पराजय ने गोरी के घमण्ड को चूर-चूर कर दिया था। श्री पद्नाभस्वामी को अपना राज्य अर्पित करने और यूरोपियन ताकतों का सामने करने वाले मार्तण्ड वर्मा अद्वितीय शासक रहे।

श्रीराजराज चोल ओर राजेन्द्र चोल का नौसैनिक कौशल इतना प्रसिद्ध था कि तांग राजवंश (चीनी साम्राज्य) ने उनसे मलक्का जलडमरूमध्य में व्याप्त समुद्री डकैती को समाप्त करने का आग्रह किया था। ऐसे योद्वाओं की अपने देश के प्रति कर्तव्यपरायणता और संस्कृति व परम्परा पर मर-मिटने की चाहत का बखान उल्लेखनीय है।

विक्रम सम्पत की किताब Bravehearts of Bharat : Vignettes from Indian History साहस और विजय के ऐसे नायकों को समर्पित है, जो इतिहास में शताब्दियों से गुमनाम थे।
स्त्रोतः-
1.Bravehearts of Bharat : Vignettes from Indian History के पन्नों से
2. दैनिक जागरण समाचर पत्र

3. penguin

 

By admin

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