Bahanon Ka Jalsa

Bahanon Ka Jalsa

“मनुष्य में से मनुष्यात का खारिज होते जाना ही मेरी कहानियों की दुखती रग है। प्रसिद्ध कथाकार सूर्यबाला के ये शब्द उनके कहानी संग्रह “Bahanon Ka Jalsa” की संवेदनशीलता और संजीवता को समझने के साथ उसे आत्मसात करने हेतु पर्याप्त हैं।

Bahanon Ka Jalsa सूर्यबाला की कहानियों का नया संकलन है और इसे वे सभ्यता की उस दिशा से जोड़ती हैं, जिधर वह जा रही है, जिधर हम जा रहे हैं। पात्र, चरित्र, घटनांए, रिश्ते और पहचानों के टूटते-जुड़ते, हंसते-रूलाते सिलसिले, किसी कहानी को गढ़ने के लिए, जिन तमाम पहलुओं और कल्पनाशक्ति की आवश्कता होती है, वे सभी यहां सम्पूर्णता में मौजूद हैं। बिना किसी आन्दोलन का हिस्सा हुए और बिना किसी विमर्श का सायास अनुकरण किए, सूर्यबाला ने अपनी कहानियों में पठनीयता और प्रवाह का बरकरार रखते हुए, सभ्यता की संवेदनहीन यात्रा में असहाय चलते पात्रों के अत्यन्त सजीव चित्र खींचे हैं।

Bahanon Ka Jalsa And Surya Bala

सूर्यबाला की इन कहानियों में दया, प्रेम, करूणा, सहानुभूति, अपनेपन की अनुभूतियां तो हैं ही, साथ ही आधुनिकता की तरफ अग्रसर होते समाज के मध्य व्याप्त सन्नाटे, अकेलेपन और टूटते रिश्तों को बचाने की जद्दोजहद भी देखने को मिलती है। माता-पिता, पुत्र, दोस्त, बहन, प्रेमिका जैसे आत्मीय रिश्तों के मेल से लेखिका बेहद सहजता से कहानियों को बुनती हैं, जो किसी एक वर्ग तक सीमित न होकर बहुआयामी हैं।

हमारे अर्न्तमन को गहराई से स्पर्श करती इस पुस्तक में दर्ज कहानियों से हम बलदते समाजिक परिवेश, विदेश की ओर आकर्षित होते लोग, इससे उत्पन्न माता-पिता का अकेलापन, मकान में पसरा सन्नाटा, जीवन के नजरियों एवं मूल्य का बदलना और इन सबसे महत्वपूर्ण पितृसत्तामक समाज में महिलाओं की स्थिति के साथ उनके संघर्षों से अवगत होते हैं। लेखिका कहती हैं-क्रोशिए के एक नन्हें कंगूरे के साथ जैसे रेशमी धागों के फूल खिलते जाते हैं…. कहानी भी कुछ-कुछ वैसे ही मर्म के एक गझिन बिन्दु से उठाकर बेलबेटे काढ़ती चली जाती है, शब्दों की लय बनती जाती है।

इस उपन्यास Bahanon Ka Jalsa के संकलन में कुल 12 कहानियां हैं, जिनमें Bahanon Ka Jalsa, वाचाल सन्नाटे, विजयिनी, वेणु का घर, बादशाह, सूबेरादारनी का पोता, पंचमी के चांद की विजिट आदि शामिल हैं। यह सूर्यबाला की लेखनी की ताकत ही है जिनकी पाठनीय, धाराप्रवाह और स्पष्ट भाषा हमें दृढ़ता से बांधकर रखती है। और हम यहां पात्रों के अकेलेपन से गुजरते हुए भी आहत नहीं होते।

“Bahanon Ka Jalsa” इस संग्रह की पहली कथा है जिसमें चार बहनों की कहानी है। ट्रेन के बन्द डिब्बे में कुछ घंटे की यात्रा के जरिए अपने जीवन की समस्याओं को संवादपूर्ण ढंग से उजागर करती हैं। सबकी मंजिल अलग-अलग है परन्तु उस थोडे समय को जीने की चाहत और व्याकुलता सबके भीतर दिखाई देती है।

लेखिका ने बड़ी, संझली, मंझली और छोटी, चारों बहनों के मध्य भावनात्मक संवाद करते हुए नारी-एकता और नारी-मुक्ति के जीवन्त संकल्प की सर्वश्रेष्ठ कथाओं में से एक को रचा है। तीनों बहनों की अपनी पेरशानियां हैं, लेकिन यहां बड़ी बहन की कथा बेहन क्रांतिकारी है, जिसमें उसका साथ उसकी सौतन देती है। राव उमराव सिंह के कहने पर कि ‘हमारे यहां तो बेटा होने पर बन्दूक दगती है’ तो राय साहब का जवाब ‘हमारे यहां तो बेटा न होने पर भी बन्दूक दगती है’ इसके बाद महफिल में जोर का ठहाका लगा। इस नृशंस घटना ने बड़ी को अन्दर तक झकझोर दिया और वह नारी-हत्या की उस व्यवस्था को बदलने का संकल्प लेती है।

छोटी के द्वारा बड़ी से पूछे जाने पर कि तुमने अपनी कोठी, शानोशौकत छोड़ दी थी, पर बड़ी का जवाब-‘सूख नहीं सिर्फ सुविधाएं और सुविधाएं सुख या दुख का कारण नहीं हुआ करती।‘ आज भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में नैतिकता को भूलते जा रहे समाज के लिए यह ऐसी कहानी है, जो इस क्रूर समय पर हलफनामे की तरह देखी जा सकती है।

बेहद साधारण और जीवन में रचे-बसे मध्यवर्गीय चरित्रों के मनोजगत से वे उन पीड़ाओं का संधान करती रही हैं जिनके दायरे में पूरी मानवता आ जाती है। रिश्तों और भावनात्मक निर्भरता के जो धागे भारतीय समाज को विशिष्ट बनाते हैं, उनकी टूटन खासतौर पर उनका ध्यान खींचती है। प्रक्रिया में स्त्री कैसे सबसे ज्यादा खोती है, यह भी क्योंकि वही वह धुरी है जिसके इर्द-गिर्द परिवार बसता है और फिर समाज आकार लेता है।

सूर्यबाला ने पात्रों के मध्य सवाल में ही जवाब का अनोखा सामंजस्य बिठाया है। ‘बच्चे कल मिलेंगे’ कहानी में भारतीय संस्कृति को सहेजने की कवायद है। वासवी नामक एक बच्ची के माध्यम से लेखिका ने अपनी अलग शैली में बताने की कोशिश की है कि हमारा देष भारत समस्त रूप से परिपूर्ण है। इसकी बानगी के लिए कहानी में वर्णित तीसरे सप्ताह की पंक्तियों पर गौर करें-‘ओह! इण्डिया में कितनी तरह की मिठाइयां होती हैं-लड्डू, रसगुल्ले, गुलाब जामुन।‘ ‘हां हां, वही….दादी को खूब सारी मिठाइयां बनानी आती हैं, तरह-तरह की …यमी स्वीटस। ‘विजयनी’ की कहानी में सत्या नामक पात्र से आकार लेती है।

घर में नई बहू के आगमन पर वह महसूस करती है कि कैसे वह सभी के हाथों की कठपुतली बनकर रह गई है। वह भी बहू की तरह अपने जीवन जी सकती थी। ‘पंचमी का चांद’ में हम पाते हैं, विकास और आकांक्षा दो युगल, उन्होंने जिस चांद के लिए शहर से दूर घर खरीदा था। रोजमर्रा की जिन्दगी के कारण वही चांद उनसे दूर होता जाता है। ‘प्यार के रिन्यूड लाइसेंस’ कहानी में समय के साथ बदलते समीकरणों से रिश्तों को सम्भालने एवं बचाने की कथा है।

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दुखद विसंगतियां, विडम्बनाएं, मन की तहों के भीतर हरदम चलते संघर्ष, इनके शब्दों में कहें तो, ‘यथासम्भव नेकनियती के साथ तलाशती और सहेजती रहती है।‘  रिश्तों और भावनात्मक निर्भरता के धागे का टूटना, साथ ही साथ इन सबसे बढ़कर एक स्त्री कैसे सबसे ज्यादा खोती है, जिसके इर्द-गिर्द परिवार बसता है, समाज आकार लेता है, यह सब दृश्य हमारी आत्मा को कम्पा देते हैं।

यह पुस्तक हर उस उम्र के पाठक के लिए है, जिनके परिवार वाले भारत से बाहर रहते हैं या अपने रिश्तों को कहीं बिसरा बैठे हैं। यह नेकनीयती, कह सकते हैं कि उनकी लेखकीय और नागरिक चेतना का सत्व है, और उनकी कहानियों का प्राण भी जिसके चलते वे हर उम्र के पाठकों को प्रिय रही हैं।

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