Being hindu, Being indain

Being Hindu, Being Indian : राष्ट्र के विविध विचारों के स्त्रोत

भारतमाता की भूमि में अनेक वीर ऐसे जन्में हैं, जिन्होंने अपने जीवन की तनिक भी परवाह न करते हुए ब्रिटिश शासन के विरूद्ध लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे ही भारत मां के एक वीर सपूत थे, पंजाब केसरी लाला लाजपतराय, जिन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया । लाला लाजपत राय औपनिवेशक शासन के प्रबल विरोधी थे।

वान्या वैदेही भार्गव द्वारा लिखित पुस्तक  Being Hindu, Being Indian

वान्या वैदेही भार्गव द्वारा लिखित पुस्तक  ‘‘Being Hindu, Being Indian’’  लाला लाजपत राय के राष्ट्रवादी विचार एवं उनकी वैचारिक जटिलताओं व बारीकियों को बेहद सटीकता के साथ उजागर करती है। लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चन्द्र पाल जैसे उग्रवादी नेताओं की तिकड़ी ‘लाल बाल पाल’ के नाम से प्रसिद्ध थी, जिन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले जैसे उदारवादियों नेताओं के विपरीत भारतीय स्वतन्त्रता के लिए उग्र विचार एवं कट्टर तरीकों से इस्तेमाल की वकालत की थी, लेकिन लाला लाजपत राय को हिन्दुत्व के पुरोधा एवं वैचारिक पूर्वज के एक अन्य रूप में भी याद किया जाता है।

इस पुस्तक का उद्देश्य लाला लाजपत राय के जीवन के विभिन्न कालखण्ड का अनुसरण करते हुए उन्हीं के माध्यम से हिन्दू और राष्ट्रीय पहचान को परिभाषित करते हुए, उनके जीवन संघर्ष और इससे सम्बन्धित जुड़े प्रश्नों के जवाब देने का प्रयास है। हिन्दू होने का क्या अर्थ है ? क्या राष्ट्रवादी होना हिन्दू होने के समान है’, हिन्दू पहचान को भारतीय राष्ट्रीय पहचान से जोड़ने का सबसे अच्छा तरीका क्या है ? जो हिन्दुओं और अन्य सभी के लिए उचित हो एंव अन्य कई ऐसे ही प्रश्न हैं। ऐसा करते हुए लाला लाजपत राय राष्ट्रवादी विचारों जुड़ी एक अलग श्रंृखला को बुनते हैं।

यह पुस्तक Being Hindu, Being Indian लीक से हटकर विषयगत दृष्टिकोण की जगह कालानुक्रमिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए चार भागों में विभक्त की गयी है। इन चार भागों के अन्दर/भीतर लाला लाजपत राय के सक्रिय जीवन को समर्पित अध्यायों की कड़िया मौजूद हैं।

इस के पुस्तक Being Hindu, Being Indian का प्रथम भाग, लाला लाजपत राय के राजनीतिक जीवन के शुरूआती दो दशकों 1880 से 1890 के उनके राष्ट्रवादी आख्यानों पर प्रकाश डालती हैं। यहां औपनिवेशिक पंजाब में उनके वयस्क होने से लेकर आर्य समाज की ओर उनका नजरिया, 1880 के अन्त में सैयद अहमद खान द्वारा कांग्रेस की अस्वीकृति और वैकल्पिक प्रतिनिधित्व की मांग पर लाला लाजपत राय की प्रतिक्रिया और राष्ट्रवाद की उनकी अलग अवधारणा की पड़ताल शामिल है।

इस पुस्तक Being Hindu, Being Indian का द्वितीय भाग 1990 और 1915 के बीच उनके तेजस्वी भाषणों पर केन्द्रित है। स्वदेशी आन्दोलन के बाद की लाला लाजपत राय द्वारा हिन्दू धर्म और राष्ट्रवाद की अवधारणा, भारतीय राष्ट्र हेतु सत्ता हासिल करने और इससे उत्पन्न टकरावपूर्ण स्थिति को समझाने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता की ओर रूख और वर्ष 1908 से 1909 में मुस्लिम लीग के अलग निर्वाचन क्षेत्रों की मांग पर लाला लाजपत राय के विचार जैसे कई अन्य पक्ष यहां मौजूद हैं।

इस पुस्तक Being Hindu, Being Indian का तृतीय खण्ड वर्ष 1915 से 1922 में मध्य राष्ट्र पर लाला लाजपत राय के विभिन्न आख्यानों का अनुसरण करता है। वर्ष 1920 से 1921 में खिलाफत आन्दोलन के दौरान राष्ट्रवाद पर उनके विचार, हिन्दुओं से भारतीय मुसलमानों के खिलाफत आन्दोलन का समर्थन करने का आहान और हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल देने का प्रयत्न, जो भारतीय राष्ट्र की पहचान और स्वायत्ता के लिए महत्वपूर्ण थी।

इस पुस्तक Being Hindu, Being Indian का अन्तिम व चतुर्थ भाग, खिलाफत के बाद के काल पर केन्द्रित है, जिसमें हिन्दू और मुस्लिम नेताओं के बीच आपस में तेजी से बढ़ता अविश्वास और इसकी वजह से हिंसक दंगों का भड़काना भी शामिल है। लाला लाजपत राय द्वारा पहली बार एकजुट होकर भारतीय राष्ट्र को सुरक्षित करने के लिए धर्मों के सुधार की मांग जैसे तमाम संवेदनशील पहलुओं को बड़ी चतुराई एवं कुशलता के साथ यहां शामिल किया गया है।

पुस्तक Being Hindu, Being Indian विस्तार से चर्चा करती है कि किस प्रकार लाला लाजपत राय का हिन्दू राष्ट्रवाद हिन्दू और मुस्लिम एकीकरण के फलस्वरूप एक व्यापक भारतीय राष्ट्र की कल्पना करता है। इसे पुष्ट करने हेतु लेखिका कांग्रेस-मुस्लिम लीग सहयोग को लाला लाजपत राय की स्वीकृति, हिन्दू-मुस्लिम एकता के उनके प्रयासों और दोनों समुदायों के मध्य सहयोग को उजागर करने के लिए भारतीय मध्यकालीन इतिहास का पुनरावलोकन प्रस्तुत करती है।

ब्रिटिश इतिहासकार क्वांटेन स्किनर के अनुसार-इतिहास लिखने का मतलब सिर्फ किसी व्यक्ति के विचारों का विश्लेषण करना नहीं है, बल्कि उन्हें उनके राजनीतिक और बौद्धिक सन्दर्भ में रखते हुए यह समझना है कि वे उन सन्दर्भों में क्या कर रहे हैं ? लेखिका स्किनेर के इस दृष्टिकोण को लेखिका वान्या वैदेही भार्गव गम्भीरता से लेते हुए इन सन्दर्भों की सम्पूर्ण तस्वीर सामने लाने का विनम्र प्रयास इस पुस्तक Being Hindu, Being Indian में करती हैं, जिनमें लाला लाजपत राय के विचार सक्रिय रूप से उभर सकें।

इसके साथ ही यह पुस्तक Being Hindu, Being Indian, इतिहासकारों और पाठकों के बीच बढती खाई को पाटने का प्रयास अत्यन्त सराहनीय प्रयास करती है। लाला लाजपत राय के जीवन और उनके सम्बन्धित व्यक्तित्वों के चित्रों का समावेश और उनसे सम्बन्धित प्राथमिक स्त्रोतों से आगे बढ़कर लाला लाजपत राय के विचारों को स्पष्टता से समझने के लिए अनेक राजनीतिक और वैचारिक तर्कों, भाषणों और लेखों का प्रयोग इस पुस्तक को रोचकता प्रदान करते हुए अतिविशिष्ट बनाता है।

उपन्यास Abhutthanam लेखक अजीत प्रताप सिंह

साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता, राजनीतिक अनियमितता और वर्तमान राजनीति से सम्बन्धित प्रश्नों को समझने हेतूु गहराई से चिन्तन के लिए प्रेरित करती यह पुस्तक लाला लाजपत राय के विचारों को आधार बनाकर इतिहास, राजनीति, धार्मिकता और राष्ट्रीयता पर एक विस्तृत दस्तावेज प्रस्तुत करती है।

‘Being Hindu, Being Indian’: Book examines Lala Lajpat Rai’s ideas of nationhood

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