Nani Palkhivala The Courtroom Genius

भारतीय नवजागरण काल के दौरान की सांस्कृतिक डायरी-Nani Palkhivala The Courtroom Genius

कुछ बौद्धिक पुस्तकों का असर सार्वकालिक होता है। ऐसे गद्य अपने कथ्य, विचार और ऐतिहासिकता के चलते न सिर्फ जरूरी सन्दर्भ-ग्रंथ और उदाहरण बन जाते हैं, बल्कि उनका बुकशेल्फ में होना, किसी बडे दस्तावेज के साथ बने रहने की तरह है। ऐसी सूची में प्रख्यात विधिवेत्ता ननी ए पालखीवाला के अंग्रेजी में लिखे स्तम्भों का एक खण्ड Nani Palkhivala The Courtroom Genius प्रकाशित हुआ है, जिसकी समयावधि वर्ष 1937 से 1947 तक है। रश्मि पालखीवाला द्वार इसका सम्पादन किया है। इसमें यह गौर करने वाली बात है कि इस किताब Nani Palkhivala The Courtroom Genius में संकलित उनके लेख मूलतः तीन प्रमुख अखबारों से लिए गए हैं, जिनमें वे सतम्भ-लेख लिखते थे। ये पत्र राष्ट्र रहबर, सांझ वर्तमान और द मुम्बई वर्तमान थे। छोटे-बडें लेखों, टिप्पणियों और वैचारिक गद्य द्वारा हमें उस समय के एक बहुत बड़े अधिवक्ता के मन-मानस को पढ़ा जा सकतस है जिसने उस समय हर एक विषय पर अपने तीखे और धारदार, अक्सर बेधक और लचीले लेखन से उस कालखण्ड में भारतीय मनीषा को प्रभावित करने की कोशिश की, जब भारत स्वाधीनता प्राप्ति के अपने नवजागरण अभियान में प्रयासरत था। यह एक ऐसे परिवर्तनशील और राजनीतिक, सांस्कृतिक रूप से उथल-पुथल वाले दौर में पालखीवाला के यह लेख, आज उस नए बनने वाले भारत की एक बेहतर छवि प्रस्तुत कर करता है, जिसके लिए हम लगभग 75 वर्ष बाद भी संघर्षरत बने हुए हैं। ननी ए. पालखीवाला मेमोरियल ट्रस्ट, मुम्बई द्वारा इस पुस्तक Nani Palkhivala The Courtroom Genius का प्रकाशन किया गया है। उनके बारे में यह कहावत बहुत ही मशहूर रही है कि वे भारत को ईश्वर की तरफ से तोहफा हैं। उनके महान कार्य और देश सेवा के आलोक में इस वैचारिक गद्य को पढ़ते हुए यह समझा जा सकता है कि वाकई हमारे देश में विद्वानों परम्परा मौजूद रही है।
यह पुस्तक Nani Palkhivala The Courtroom Genius मूलतः छह अध्यायों में विभक्त है, जो क्रमशः आर्ट एण्ड लिटरेचर, ला एण्ड गवर्नेंस, पेन पोट्रेटस, वर्ल्ड वार-2, इण्डिपेन्डेन्स तथा म्युजिंग्स आन लाइफ है। इन छह अध्यायों के भी अन्य उप-अध्याय शामिल हैं जिनमें प्रत्येक टिप्पणी किसी ने किसी शीर्षक, परिभाषा या तर्क के तहत लिखी गई है। सबसे पहले तो अनुक्रमणिका पढ़ते हुए इस बात की हैरत होती है कि कोई व्यक्ति कितना बहुपठित और कुशाग्र कैसे हो सकता है ? जिसने अपने जीवन के आरम्भिक दौर में सुविचारित सार्वजनिक टिप्पणियों लिखी हों, जिसका दायरा साहित्य, कलाओं, राजनीति, प्रशासन, विधि, विश्वयुद्ध, स्वतन्त्रता और जीवन जगत के विभिन्न आयामों तक पसरा हुआ है। यह पुस्तक Nani Palkhivala The Courtroom Genius भारतीय स्वाधीनता संग्राम तथा द्वितीय विश्वयुद्ध को भी समझने के कुछ नए आयाम प्रदान करती है। आप एक भारतीय नागरिक की निगाह से भी इन बड़ी घटनाओं को देखते हैं और फिर विभिन्न चर्चित व अल्प चर्चित दस्तावेजों के तुलनात्मक अध्ययन से, किसी राह तक पहुंचने का जतन करते हैं कि शायद ऐसा भी हुआ होगा। कला और साहित्य वाले खण्ड में कुछ बेहतरीन लेख शामिल हैं जिनमें द पोएट्री आफ आस्कर वाइल्ड, द वर्ड्सवर्थ आफ प्रोज, द फिलासफी आफ हार्डी, लेटर्स आफ कापर विशेष उल्लेखनीय हैं। वे कालजयी साहित्य के पढ़ने और उसके विमर्श पर एक उम्दा टिप्पणी करते हैं तो विश्व कविता को पढ़ने की तहजीब सिखाते हैं। उनकी कुछ दिलचस्प टिप्पणियां भी देखने लायक हैं जैसे-कोई भी आदमी वर्ड्सवर्थ से ज्यादा संवेदनशील नहीं था, वे प्रकृति द्वारा मिले हुए महान उपहार हैं, वे शान्ति के लिए पाई हुई भेंट की तरह हैं।’ हार्डी ने कभी अपनी दृष्टि को जड़ाऊ कलात्मक अभिव्यक्ति में तिरोहित नहीं किया, लेकिन उनका हर एक गीत दुख का संक्षिप्त संसार रचता है। इसी तरह की ढेरों सूक्तिपरक उक्तियों से वे एक सधे हुए रचनाकार या आलोचक की तरह सामने आते हैं।
उनकी राजनयिकों पर टिप्पणियां भी पढ़ने लायक हैं। कुछ उदाहरणों से यह देखना चाहिए- विंस्टन चर्चिल भयानक रूप से चालाक थे, लेकिन वे एक बात कभी नहीं समझ पाए कि गांधी जी जब मुस्कराते थे, तो वह एक सार्वजनिक घटना होेती थी….. और जब वे ऐसा नहीं करते थे, तो वह इतिहास का अध्याय बन जाता था।’ नेपालियन ने कहा था- दुनिया में केवल दो ही शक्तियां हैं शस्त्र और साहस। यह एक अभूतपूर्व विश्लेषण है कि शस्त्र एक न एक दिन साहस के आगे हारता है। यदि आप अन्तिम शक्ति का सामना असीम प्यार से करतें हैं, तो हमेशा वह अनंतिम प्रेम ही जीतता है।’ इस तरह की ढेरों टिप्पणियों से पालखीवाला उत्सुकता जगाते हैं कि उनकी पूर्व में लिखी गई वैचारिकी को नए सन्दर्भों में पढा और परखा जाए। हम आधुनिक ढंग से भारतीय स्वाधीनता प्राप्ति को भी एक ऐसे तर्कशील युवक के लेखन के माध्यम से देख सकते हैं, जिसने भारतीय विधि-व्यवस्था में निर्णायक योगदान किया। वे जब जीवन की जटिल और सामान्य परिस्थितियों पर भी अचूक ढंग से देखते और कुछ हास्य बोध के साथ उसे टटोलते हैं, तो उनकी संवेदनशीलता और रचनात्मक मन का पता मिलता है। यह कहना चाहिए कि ननी ए0 पालखीवाला को दशकभर की वैचारिक यात्रा की विभिन्न सोपानों पर चढ़ते-उतरते हुए हमें कुछ ऐसा अनूठा, मानीखेज, संजोने लायक और अक्सर हतप्रभ करता हुआ प्रस्थान बिन्दु मिलता है, जिस पर बहस और असहमत होने की भी पर्याप्त गुजाइश मौजूद है।

स्त्रोत-
1.पुस्तक Nani Palkhivala The Courtroom Genius के पन्नों से।
2. दैनिक जागरण

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