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Borsi Bhar aanch-पीड़ा की नदी पार करने जैसा
हमारी स्मृतियां हमारे जीवन का आलोक स्तम्भ होती हैं, जो स्वयं को बार-बार खोजने का प्रयत्न करती हैं। अकेलेपन की मित्र और एकान्त से उबारने की जादुई छड़ी….नाजुक बचपन की मासूम स्मृतियां बेहद प्रबल होती हैं, क्योंकि इन यादों के पन्ने जल्दी पुराने नहीं पड़ते। युवा रचनाकार एवं लेखक यतीश कुमार ने अपनी पुस्तक ‘Borsi Bhar aanch’ में अतीत की स्मृतियों के गुंजलक से अपने बचपन को याद करते हुए अपने जीवन के 20 वर्षों का मार्मिक और ईमानदार संस्मरण सृजनात्मक तरीके से लिपिबद्ध किया है।
रचनाकार की स्मृति-यात्रा को शब्दों में पिरोने की रचानात्मकता ने इस कथेतर गद्य को मासूम और खिलंदड़ा एक साथ बनाया है। यतीश अपने प्रारम्भिक जीवन को याद करते हुए अपनी मॉ, पिता, दूसरे पिता, भाई, बहन, दोस्त, रिश्तेदार, घर, ननिहाल आदि से सम्बन्धित स्मृतियों को इस पुस्तक में साक्षा करते हैं, जिससे यह पुस्तक उनके बचपन की आत्मकथा जैसी प्रतीत होती है।
लेखक के लिए उनका यह संस्करण अतीत में झांकने जैसा प्रतीत होता है। यह सैरबीन और कुछ नहीं बल्कि भाषा, शब्दों और शिल्प का व्यक्तिगत माध्यम है, जिससे एक बच्चा लगभग 40 वर्ष की दूरी से दुनिया को देखता है। यादों के सागर में गोते लगाती इस आपबीती में बचपन के स्वप्न के साथ-साथ कल्पना ओर यथार्थ का सम्मिश्रण जलतंरग की तरह बजता है।
समय के साथ बेशक स्मृतियां धूमिल हो जाती हैं। बचती हैं तो बस इनकी तासीर या ताप या भाप, जिसे लेखक पुस्तक Borsi Bhar aanch में आंच कहते हैं। सच में जब कई दशक बीत चुके हों, तो बचपन को टटोलना बेहद मुश्किल काम होता है। पुस्तक में यतीश की यादें सम्मोहक ढंग से बिखरी हुई हैं कि लगता है बस पन्ने पलटते जाये।
लेखक का बचपन ओर किशोरवय ‘परिदृश्य की अकुलाहट’, ‘अस्पताल तक जाती नदी’, भागता बचपन, दिदियाः मेरे कोमल मन की पक्की ढाल, भैयाः अनजाना सम्बल, ओर कितने करीब जैसे शीर्षकों के अन्तर्गत आकार लेता है।
संस्मरण के केन्द्र में बिहार में किउल नदी के तट पर बसे लखीसराय कस्बे का एक अस्पताल है, जहां उनका बचपन बीता। अस्पताल के पीछे साडियों की दीवार बनाकर रहता लेखक का परिवार है। पिता कम्युनिस्ट थे और असमय उनका निधन हो जाता है। लेखक की कर्मठ मॉ वहीं उसी सरकारी अस्पताल में स्टाफ नर्स हैं, जो पितृहीन बच्चों के भविष्य के लिए संघर्षरत हैं।
यतीश के पिता के डाक्टर दोस्त, जो कामरेड थे, अपने दिवंगत दोस्त की पत्नी से विवाह करते हैं। उस दौरान लेखक का अकेलापन, दूसरे पिता से उनका सम्बन्ध भी बदस्तूर यहां मौजूद हैं। मॉ गुस्से में चीकू उर्फ यतीश की पिटाई भी करती हैं और रोती भी हैं।
लेखक ने यहां कुछ भी छिपाने की कोशिश नहीं की है, अपनी चोरी की आदत, अपनी शैतानियों के तमाम किस्सों का जिक्र बेहद तटस्थता से किया गया है, जो पारदर्शी मन के जल-दर्पण को कम्पाता रहता है। लेखक ने अपनी मॉ की सहेली नर्स मौसी और चीकू के बीच के सम्बन्ध को बडे धैर्य और सुन्दरता के साथ बुना है। वहीं बे बडे़ भाई के साथ अपने रिश्ते की बडी कुशलता से परखते हैं। बहन के बारे में बात करते वक्त उसके लिए कुछ न कर पाने की छटपटाछट साफ दिखती है।
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अन्त में अपनी पत्नी से अपने सम्बन्ध को अभिव्यक्त करते है। एक जगत लिखते हैं- वह ज्यादा स्त्री थी और मैं ज्यादा पुरूष’’। रिश्तों की मजबूत डोर से बंधी यह कहानी लेखक की परेशानियों से विचलित न होकर उसका दृढ़तापूर्वक सामना करना भी दिखाती है। कई जगहों पर हिन्दी और उर्दू की चुनी हुयी कविताएं या शेरों का इस्तेमाल इस संस्मरण में चार चांद लगा देता है।
संस्मरण किसी व्यक्ति के जीवन का ब्यौरा भर नहीं होता, बल्कि उसके समय, सामज ओर परिवेश का बोध भी कराती है। अस्पताल के इर्द-गिर्द घूमती इस यात्रा में एक बच्चे की नजर से 20वीं शताब्दी के आठवें-नवें दशक के बिहार राज्य की राजनीतिक और सामाजिक बुनावट की बदलती झांकी भी देखने को मिलती है।
किऊल नदी के किनारे बसे छोटे से कस्बे हसनपुर में बालू पर वर्चस्व बनाए स्थापित किये जाने के लिए गोलियो का चलना आम है। अस्पताल की लाइट जाने पर खुले आकाश के नीचे टार्च की रोशनी में आपरेट कर गोली निकालने की घटना, वहां फैला खून, अस्पताल पर इसका प्रतिकूल प्रभाव, यह सभी लेखक की छोटी उम्र के दिल दहलाने वाले अनुभवों में से थे।
पुस्तक Borsi Bhar aanch में दर्ज घटनाएं बेहद भावनात्मक और मार्मिक हैं, जिसकी बानगी देती हैं यह पक्तियों- ‘ठण्डी लाश की तरह बेजात ठण्डी दीवारें कुछ नहीं बोलती’ बस सुनसान में रोती हुई रहस्मयी औरत की तरह डराती। मैने मां की अंगुली थामे खड़ी है।’’ भाई के सैनिक स्कूल की फीस न दे पाने और बहन की शादी की चिन्ता पर लेखक यतीश कुमार की मां की सिसकियां जैसे तमाम पहलू भावुक करते हैं।
असल में बचपन का वृतांत जन-सामान्य की वह चिरपरिचित दारूण कहानी है, जो विचलित करती है। इसे पढ़ते हुए जीना, पीड़ा की नदी पार करने जैसा है।
यतीश कुमार की बहुप्रशंसित पुस्तक ‘बोरसी भर आँच’
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