लोककथाएं महाभारत काल के दौरान इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण उपस्थिति का वर्णन करती हैं। महाभारत द्वापर युग का है जब भगवान विष्णु ने भगवान कृष्ण के रूप में अवतार लिया था और कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों का समर्थन किया था। देवीधुरा का बरही मंदिर, सिप्ती का सप्तेश्वर मंदिर, हिडिम्बा-घटोत्कच मंदिर और चंपावत शहर का तारकेश्वर मंदिर महाभारत काल का माना जाता है।

यह क्षेत्र पारंपरिक रूप से देवताओं और ऋषियों (हिंदू तपस्वियों) के लिए तपस्या के स्थान के रूप में जुड़ा हुआ है। जिले द्वारा कवर किया गया क्षेत्र मध्य हिमालय के हिस्से में स्थित है, जिसे स्कंद पुराण के मानस-खंड (खंड) में मानस-खंड के रूप में हिमालयी क्षेत्र के पांच प्रभागों में से एक के रूप में नामित किया गया है। इस क्षेत्र को अलग-अलग समय में किरातमंडल, खासदेश, कालिंदविशाय, कूर्मचला और कूर्मवन के नाम से भी जाना जाता है। जिले में विभिन्न स्थानों, पहाड़ों, नदियों, जंगलों और अन्य स्थलों से कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। पृथ्वी को बचाने के लिए, विष्णु ने अपने दूसरे अवतार में कूर्म (कछुआ) का रूप धारण किया । जिस  चट्टान पर भगवान खड़े थे, उसे कुर्माशिला, पूरी पहाड़ी को कूर्मचला और आसपास के जंगल को कुरमावन के रूप में जाना जाने लगा। इन्हीं शब्दों से कुमाऊं नाम की उत्पत्ति मानी जाती है। लंबे समय तक काली कुमाऊं के रूप में नाम, यानी काली नदी पर कुमाऊं, पहाड़ी के चारों ओर छोटे से हिस्से तक ही सीमित रहा, जो अब मोटे तौर पर चंपावत जिले से आच्छादित है, लेकिन मध्ययुगीन काल के दौरान, जब की शक्ति चंपावत के चांद राजा ने तेजी से विस्तार किया, कुमाऊं नाम धीरे-धीरे उत्तर में हिम पर्वतमाला से लेकर दक्षिण में तराई तक फैले पूरे क्षेत्र को निरूपित करने के लिए आया। महाभारत युद्ध के बाद ऐसा लगता है कि जिला कुछ समय के लिए हस्तिनापुर के राजाओं के अधीन रहा, वास्तविक शासक स्थानीय प्रमुख थे जिनमें से कुलिंद शायद मजबूत थे। बाद में ऐसा प्रतीत होता है कि नागाओं ने जिले का आधिपत्य बना लिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि सदियों से कई स्थानीय क्षुद्र प्रमुखों में से ज्यादातर खास या कुलिंदों ने जिले के विभिन्न हिस्सों पर शासन करना जारी रखा। चौथी से पांचवीं शताब्दी ई.पू. इस क्षेत्र पर मगध के नंद राजाओं का शासन था। जिले में खोजे गए सबसे पुराने सिक्कों पर शासकों के नाम हैं – कुनिन्द। पहली शताब्दी ईस्वी की अंतिम तिमाही के दौरान कुषाण साम्राज्य पश्चिमी और मध्य हिमालय तक फैला हुआ था लेकिन तीसरी शताब्दी के लगभग दूसरी तिमाही में कुषाणों का साम्राज्य चरमरा गया। चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने 636 ईस्वी की गर्मियों के दौरान जिले के वर्तमान क्षेत्र का दौरा किया। सोम चंद नाम के एक चंद्रवंशी राजपूत राजकुमार ने राजबंगा किले का निर्माण किया और बाद में इसका नाम चंपावत रखा गया। चम्पावत  953 ई0 से 1563 ई0 तक चन्द्रवंशीय राजाओं अर्थात सम्पूर्ण कुमाऊँ की राजधानी रहीं। 1563 ई0 चन्द राजाओं ने यहा से हटाकर राजधानी अल्मोड़ा स्थानान्तरित कर दी।  कत्यूरियों के पतन की अवधि के दौरान  जिन नए राजवंशों का उदय हुआ, उनमें सबसे महत्वपूर्ण चंद राजपूत थे। परंपरा के अनुसार, काली कुमाऊं के कत्यूरी राजा (हिंदू शासक) ब्रह्मदेव एक कमजोर शासक थे। वह डोमकोट के रावत की अवज्ञा से परेशान था और अपने ही लोगों के बीच दुर्जेय गुटों को दबाने में खुद को असमर्थ पाया। उनका उत्तराधिकारी सोम चंद, एक चंद्रवंशी राजपूत था, जिन्होंने राजा की बेटी से शादी की थी। सोम चंद ने यहां 15 एकड़ जमीन पर अपना किला बनवाया था। इस किले का नाम राजबंगा और बाद में चंपावत रखा गया। सोम चंद का उत्तराधिकारी उनके पुत्र आत्मा चंद ने लिया, जिन्होंने छोटे राज्य की शक्ति और प्रभाव को मजबूत करने का काम जारी रखा और कहा जाता है कि सभी पड़ोसी छोटे राज्यों के शासकों ने उन्हें चंपावत में दरबार का भुगतान किया। उनके बेटे पूरन चंद ने अपना अधिकांश समय शिकार में बिताया, और बाद के बेटे और उत्तराधिकारी इंद्र चंद को काली कुमाऊं में रेशम के कीड़े आयात करने का श्रेय दिया जाता है|  2 दिसंबर, 1815 को पूरा कुमाऊं क्षेत्र अंग्रेजों को सौंप दिया गया था।  15अगस्त ,1947 को, इस क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों के साथ-साथ ब्रिटिश प्रभुत्व से स्वतंत्र घोषित किया गया था।

चंपावत (Champwat) को 15 दिसंबर 1997 को यूपी की तत्कालीन सीएम सुश्री मायावती ने एक अलग जिला घोषित किया था, तब यह यूपी का हिस्सा था। पहले चंपावत केवल पिथौरागढ़ जिले की एक तहसील थी।

मुख्य आकर्षण

बालेश्वर महादेव मंदिर

बालेश्वर मंदिर का निर्माण चांद शासकों द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर की वास्तुकला काफी सुंदर है। बालेश्वर मंदिर का निर्माण 10-12 ईसवीं शताब्दी में हुआ था। बालेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है , जो कि उत्तराखंड के चंपावत शहर में स्थित है | बालेश्वर मंदिर पत्थर की नक्काशी का एक अद्भुत प्रतीक है | बालेश्वर के परिसर में दो अन्य मंदिर भी हैं जिसमे एक रत्नेश्वर को समर्पित है और दूसरा मंदिरचम्पावती दुर्गा को समर्पित है | बालेश्वर मंदिर अपनी खूबसूरती के साथ अलग पहचान बनाए हुए हैं और मंदिर कि खूबसूरती लोगों को अपनी ओर खींचती है |

शानि देवता मंदिर

यह मंदिर चंपावत जिले के मौराड़ी गॉव में स्थित है, जो कि चंपावत से आगे बनलेख के समीप में ही है। यह मंदिर अति रमणीय है तथा इस मंदिर का परिसर अति सुन्दर है।

नागनाथ मंदिर

नागनाथ का प्राचीन मन्दिर नगर में तहसील के पास स्थित है। मंदिर में की गई वास्तुकला काफी खूबसूरत है। यह कुंमाऊं के पुराने मंदिरों में से एक है।

मीठा-रीठा साहिब

उत्तराखण्ड के चंपवात जिले में ड्युरी नामक एक छोटे गांव में स्थित मीठा-रीठा साहिब सिक्खों के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। कहा जाता है कि सिक्खों के प्रथम गुरू, गुरू नानक जी नानकमत्ता प्रवास के पश्चात हिमालय की यात्रा के दौरान यहीं रूके थे। यह गुरूद्वारा लोदिया और रतिया नदियों के संगम पर स्थित है। गुरूद्वार परिसर पर रीठे के कई वृक्ष लगे हुए है। गुरूद्वारा के साथ में ही धीरनाथ मंदिर भी है। बैसाख पूर्णिमा के अवसर पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है। इस गुरुद्वारा का निर्माण 1960 में गुरु साहिबान ने करवाया था ।

श्यामताल

यह जगह चम्पावत से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस झील के तट पर स्वामी विवेकानन्द का प्रसिद्ध आश्रम भी स्थित है । इस झील का पानी नीले रंग का है। यहां झूला मेला भी काफी प्रसिद्ध है।

पंचेश्रवर

यह स्थान नेपाल सीमा के समीप स्थित है। इस जगह पर काली और सरयू नदियां आपस में मिलती है। यह स्थल चामू या चैमुँह मन्दिर व वार्षिक मेले के लिए प्रसिद्ध है। चैमुँह  की पशु रक्षक के रूप में पूजा की जाती है जो भगवान शिव को समर्पित है। काफी संख्या में भक्तगण यहां लगने वाले मेलों के दौरान आते हैं।

देवीधुरा

यह जगह लौहाघाट से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ बाराही देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है। प्रतिवर्ष रक्षाबन्धन के दिन यहा बग्वाल खेली जाती हैं। बगवाल के अवसर पर दो समूह आपस में एक दूसरे पर पत्थर फेकते हैं।

लोहाघाट

लौहाघाट एक प्राकृतिक सौन्र्दय स्थल है जो लोहावती नदी के तट पर स्थित है। यह अपने एतिहासिक वैभव के लिए भी प्रासिद्ध है। यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह स्थान गर्मियों के दौरान यहां लगने वाले बुरास के फूलों के लिए भी प्रसिद्ध है।

अब्बोट माउंट

अब्बोट माउंट बहुत ही खूबसूरत जगह है। इस स्थान पर ब्रिटिश काल के कई बंगले मौजूद है।  चम्पावत जिले में काली नदी सीमा के पास कुमाऊं पहाड़ियों के पूर्वी हिस्से में स्थित है |माउंट एबट की स्थापना 20 वीं शताब्दी में जॉन हेरोल्ड एबॉट नामक एक अंग्रेजी व्यवसायी ने की थी | इसीलिए इसका नाम “माउंट एबट” रखा गया यह स्थान ब्रिटिश राज में अंग्रेजो के शासन काल में बसाया गया था | माउंट एबट दुनिया भर में अपनी ख़ूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है |

श्रीपूर्णागिरी मन्दिर

अन्नापूर्णा शिखर पर स्थित श्रीपूर्णागिरी मन्दिर में चैत्र व अश्विन की नवरात्र में मेला लगता है। श्रीपूर्णागिरी देवी की गणना देवी भगवती के 108 सिद्धपीठों में की जाती है। यहा सती का नाभि अंग गिरा था। पूरे देश से काफी संख्या में भक्तगण इस मंदिर में आते हैं। यहां से काली नदी भी प्रवाहित होती है जिसे शारदा के नाम से जाना जाता है।

श्यामलाताल

यह जगह चम्पावत (Champawat) से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके साथ ही यह स्थान स्वामी विवेकानन्द आश्रम के लिए भी प्रसिद्ध है जो कि खूबसूरत श्यामातल झील के तट पर स्थित है। इस झील का पानी नीले रंग का है। यह झील 1.5 वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई है। इसके अलावा यहां लगने वाला झूला मेला भी काफी प्रसिद्ध है।

पंचेश्रवर

यह स्थान नेपाल सीमा के समीप स्थित है। इस जगह पर काली और सरयू नदियां आपस में मिलती है। पंचेश्रवर भगवान शिव के मंदिर के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। काफी संख्या में भक्तगण यहां लगने वाले मेलों के दौरान आते हैं। और इन नदियों में डूबकी लगाते हैं।

मायावती आश्रम

मायावती आश्रम उत्तराखंड में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है । इस आश्रम की स्थापना स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से उनके शिष्य स्वामी स्वरूपानंद और एक अंग्रेज़ी शिष्य ने 1899 में की थी। यह आश्रम हर साल भारी संख्या में भारतीय और विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है । इस आश्रम कोअद्वैत आश्रम के नाम से भी जाना जाता है | अद्वैत आश्रम रामकृष्ण मठ की एक शाखा है जो कि भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत जिले में मायावती नामक स्थान पर स्थित है । इस आश्रम में एक छोटा सा संग्रहालय  है ।

 बाणासुर का किला

बाणासुर का क़िला उत्तराखंड में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है । यह क़िला लोहाघाट से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर कर्णरायत नामक स्थान के पास स्थित है ।  कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा बाणासुर का वध यहीं किया गया था क्योंकि बाणासुर ने श्रीकृष्ण के पौत्र का अपहरण कर लिया था । पहाड़ी शैली में निर्मित इस किले में पत्थरों का उपयोग किया गया है और इसकी बनावट प्राकृतिक मीनार की भांति है।

एक हथिया का नौला

एक हथिया का नौला , उत्तराखंड राज्य के चंपावत जिले  में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है | पत्थर को तराश कर बनाया गया एक हथिया की नौले की कलाकृति पौराणिक कथा के कारण भी प्रसिद्ध है । ऐसी मान्यता है कि इस पूरी आकृति को एक हाथ वाले शिल्पकार ने एक रात में तराश कर बनाया था । यह पत्थर पर किया जाने वाला एक शानदार कार्य है जो कि यह चंद राजवंश के युग के दौरान बनाया गया था | लोक मान्यता है कि चंद राजा का राज महल व कुमांऊ की स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध बालेश्वर मंदिर का निर्माण करने वाले मिस्त्री जगन्नाथ का एक हाथ चंद शासकों ने कटवा दिया था ताकि बालेश्वर मंदिर जैसा निर्माण दोबारा न हो सके |

हिंगलादेवी मंदिर

हिंगलादेवी मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के चम्पावत (Champawat) जिले के दक्षिण में पहाड़ो की चोटी पर घने बांज के जंगलो के बीच में स्थित है | यह देवी पीठ इस क्षेत्र के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है | इस मंदिर में देवी हिंगला को माँ भवानी के रूप में पूजा जाता है | हिंगलादेवी मंदिर की प्राकर्तिक छटा अत्यधिक अनमोल है  | हिंगलादेवी का मंदिर करीब डेढ़ साल दशक पहले तक एक छोटे से स्थान पर था और उस स्थान पर एक कुतिया भी बनी थी | हिंगला सिद्धि को प्रदायक देवी के रूप में भी माना जाता हैं ।

आदित्य मंदिर

आदित्य मंदिर  ग्राम रमक में स्थित देवालय सूर्य देवता को समर्पित है  | एक विश्वास के अनुसार, यह मंदिर चन्द वंश के राजाओं द्वारा बनाया गया था । मंदिर का निर्माण शिखर शैली में करवाया गया है एवम् वास्तुकला से मंदिर की संरचना ओडिशा में स्थित कोनार्क सूर्य मंदिर के जैसे दिखती है । द्वापर युग में पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहां आये थे और उन्होंने छह दिनों तक यहां भगवान शिव का पूजन किया था ।

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नौ ढुंग्गाघर

नौ ढुंग्गाघर, चम्पावत जिले के मांदली गांव में स्थित है। इस मकान के किसी भी कोने से गिनने पर 9 ही पत्थर मिलते हैं।

https://en.wikipedia.org/wiki/Champawat

 

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