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Ancient Naula of someshwar राष्ट्रीय महत्व का प्राचीन स्मारक घोषित
- सोमेश्वर तहसील के स्यूनराकोट गांव में प्राचीन नौले (जल स्त्रोत) को राष्ट्रीय महत्व का प्राचीन स्मारक घोषित किया गया है।
- कुमाऊ के गांव में प्राचीन समय से ही नौले बनाने की परम्परा रही है। यही पेयजल के मुख्य स्त्रोत भी रहें हैं।
- कत्यूर व चन्द शासनकाल में जगह-जगह नौलों का निर्माण 14 वीं सदी में किया गया था।
- केन्द्र सरकार ने Ancient Naula of someshwar तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 की धारा चार की उपधारा एक के तहत राष्ट्रीय महत्व का प्राचीन स्मारक घोषित किया गया है।
नौले की स्थापत्य कला
- नौले का कक्ष वर्गाकार अथवा आयताकार बनाया गया है।
- Ancient Naula of someshwar में जल कुण्ड के ऊपर साधारण कक्ष बनाकर बरामदे में प्रवेश द्वार के दोनों और एक-एक बड़ा पटल (पत्थर) लगाकर कपडे़ धोने और नहाने के लिए अलग से व्यवस्था की गयी है। ढलवा छत को पटालों से ही आच्छादित किया गया है। बरामदे की छत को चार स्तम्भों से सहारा दिया गया है।
- प्रवेश द्वार के स्तम्भों को पुष्प लता, मणिबंध शाखा आदि से सुसज्जित किया गया है।
उत्तराखण्ड के अन्य प्रसिद्ध ऐतिहासिक नौले
उत्तराखण्ड में ज्यादातर नौले का निर्माण चन्द व कत्यूर के शासनकाल में किया गया है। बागेश्वर स्थित बद्रीनाथ का नौला, नौलों के इतिहास के दृष्टि से उत्तराखण्ड का सर्वाधिक प्राचीन नौला माना जाता है।
- 1272 ई0 में चन्द्रवंश के राजा थोरचन्द ने चम्पावत के बालेश्वर मन्दिर स्थित नौले का निर्माण किया था। यह नौला उत्तराखण्ड का सर्वाधिक सांस्कृतिक सम्पन्न नौला है, जो उत्तराखण्ड की वास्तुकला और स्थापत्य कला का एक अद्भूत नमूना प्रस्तुत करता है।
- एकहथिया नौला भी सांस्कृतिक महत्व का नौला है, जो चम्पावत में ढकन्ना गांव में स्थित है। माना जाता है कि इस नौले का निर्माण एक हाथ वाले शिल्पीकार ने किया गया था।
कुमाऊँ और गढ़वाल नेरशों के द्वारा अनेक नौल, धारों और कुंडों का निर्माण किया गया था, परन्तु उत्तराखण्ड के परम्परागत सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर उचित रख-रखाव के होने के कारण जलविहिन हो गए हैं और लापरवाही के कारण नष्ट होने के कगार पर है। वर्तमान समय में नौले और जलधाराओं के सूखने के कारण एक जीवत पर्वतीय जल संस्कृति लुप्त होने के कगार पर है। चूकि जल की समस्या महज एक उपभोक्तवादी समस्या ही नहीं बल्कि जल, जमीन और जंगलों के संरक्षण से जुड़ी एक भयानक समस्या भी है। यह एक लोक संस्कृति के संरक्षण की समस्या भी है। इसलिए पुराने नौले, धाराओं, तालों आदि जल संरक्षण के संसाधनों को पुनर्जीवित किया जाना होगा।