Raja Ram Mohan Roy

Raja Ram Mohan Roy

19वीं सदी के सबसे प्रभावशाली सामाजिक और धार्मिक सुधारक Raja Ram Mohan Roy का जन्म 22 मई, 1722 को बंगाल प्रेसीडेंसी के हुगली जिले में राधानगर गांव में एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

  • ये आधुनिक भारत में पुनर्जागरण के अग्रदूत और समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारत में ज्ञानोदय और उदार सुधारवादी आधुनिकीकरण के युग को आरम्भ किया था।
  • उन्होंने बनारस में रहकर संस्कृत का अध्ययन किया और वेद तथा उपनिषद को भी पढ़ा। Raja Ram Mohan Roy ने 1803 से 1814 तक, ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिए वुडफोर्ड और डिग्बी के निजी दीवान के रूप में कार्य भी किया।
  • राय 1814 में नौकरी से इस्तीफा देकर धार्मिक, सामाजिक और राजनीकि सुधारों को बढ़ावा देने के लिए कलकत्ता आये ।
  • गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें आधुनिक भारत का जनक कहा था।
  • उन्हें मुगल सम्राट अकबर द्वितीय द्वारा 1850 में राजा की उपाधि से सम्मानित किया गया तथा अपने दूत के रूप में तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट विलियम चतुर्थ के दरबार में भेजा।

सामाजिक सुधार

उन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त सती प्रथा की समस्या के उन्मूलन हेतु अथक प्रयास किया। 1818 में राय ने सती प्रथा के विरूद्ध आन्दोलन चलाया था। उनके अथक प्रयासों के कारण  गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक द्वारा लाए गए बंगाल सती विनियमन, 1829 के माध्यम से सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाया गया।

  • तत्कालीन समाज में प्रचलित बहुविवाह, बाल विवाह, सती प्रथा, बहुपत्नी प्रथा, वेश्यागमन और जाति व्यवस्था जैसी अनेक रूढीवादी समस्याओं के खिलाफ उन्होंने लड़ाई लड़ी। विधवा पुनर्विवाह का इन्होंने समर्थन किया।
  • उन्होंने छुआछूत, अन्धविश्वास और नशीले पदार्थो के इस्तेमाल के खिलाफ अभियान चलाया।
  • महिलाओं को पुरूषों के समान सामाजिक दर्जा दिलाने हेतु महिला शिक्षा का समर्थन उन्होंने किया। उन्होंने महिलाओं के लिए विरासत और सम्पत्ति के अधिकार हेतु भी कार्य किया।

सम्बद्ध संगठन

उन्होंने मूर्ति पूजा, निरर्थक कर्मकाण्डों और अन्धविश्वासों के खिलाफ अभियान तथा हिन्दू धर्म के एकेश्वरवादी मत के प्रचार हेतु 1814 में आत्मीय सभा की स्थापना की थी।

  • 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और 20 अगस्त, 1828 में ब्रह्म सभा की स्थापना की थी, जिसे बाद में ब्रह्म समाज के नाम से जाने लगा था। ब्रह्म समाज की स्थापना का उद्देश्य था एकेश्वरवाद की उपासना, मूर्तिपूजा का विरोध, पुरोहितवाद का विरोध, अवतारवाद का खण्डन आदि।
  • राय ने 1822 में एंग्लो-हिन्दू स्कूल की स्थापना की, जिसमें वोल्टेयर के दर्शन तथा यांत्रिकी की शिक्षा दी गई।
  • 1825 में उन्होंने वेदान्त कॉलेज की शुरूआत की, जहां भारतीय शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी सामाजिक और भौतिक विज्ञान पढ़ाया जाता था।
  • Raja Ram Mohan Roy ने आधुनिक शिक्षा के लाभों के प्रसारण हेतु सराहनीय प्रयास किया। 1817 में उन्होंने कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना में डेविड हेयर का सहयोग किया।

लेखन

  • Raja Ram Mohan Roy ने 1803 में अपनी पहली पुस्तक तुहफुत-उल-मुवाहिदीन प्रकाशित की।
  • 1809 मंे एकेश्वरवादियों को उपहार नामक पुस्तक लिखी। प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ, एकेश्वरवाद का समर्थन करते थे, उन्होंने वेदों और 5 उपनिषदों का बंगाली भाषा में अनुवाद किया।
  • उन्होंने 1821 में बंगाली भाषा का साप्ताहिक समाचार पत्र संवाद कौमुदी का प्रकाशन किया।
  • उन्होंने बंगाल गजट नाकम एक अंग्रेजी साप्ताहिक, द ब्रह्मनिकल मैगजीन और मिरातुल अकबर नामक एक फारसी समाचार पत्र का भी प्रकाशन किया।

दार्शनिक प्रभाव

वे एकेश्वरवादी आदर्शाें के प्रबल प्रचारक/समर्थक थे, जिन्हें वे वेदान्त दर्शन का मूल सिद्धान्त मानते थे। एकेश्वरवाद सभी धार्मिक गं्रथों के मूल में है। वे तर्कवादी विचारों से बहुत प्रभावित थे। इसी कारण इन्होंने तर्कवाद को बढ़ावा दिया। Raja Ram Mohan Roy विभिन्न संस्कृतियों के सर्वश्रेष्ठ तत्वों की रचनात्मक और बौद्धिक प्रक्रिया के पक्षधर थें।

Raja Ram Mohan Roy अपने धार्मिक, दार्शनिक और सामाजिक दृष्टिकोण में इस्लाम के एकेश्वरवाद, सूफीमत के रहस्तवाद, इसाई धर्म की आचार शास्त्रीय  नीतिपरक शिक्षा और पश्चिमी के आधुनिक देशों के उदारवादी बुद्धिवादी सिन्द्धान्तों से काफी प्रभावित थें

राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में कार्य

एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में इन्होंने बंगाली जमीदारों की दमनकारी प्रथाओं की निन्दा की और अधिकतम लगान तय करने की मांग की। निर्यात शुल्क में कमी तथा ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकारों को समाप्त करने का उन्होंने आहृवन किया। साथ ही बेहतर सेवाओं के भारतीयकरण और कार्यपालिका को न्यायपालिका से पृथक्करण की मांग की। भारतीयों और यूरोपीय लोगों के बीच न्यायिक समानता की मांग करते हुए जूरी द्वारा सुनवाई आयोजित करने की मांग उन्होंने की।

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