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Basaveshwara (बसवेश्वर)
Basaveshwara या बसवन्ना, कर्नाटक में कलचुरी वंश के राजा बिज्जल प्रथम के शासन के दौरान 12 वीं शताब्दी के कन्नड़ समाज सुधारक, कवि और दार्शनिक थे। जो कल्चुरी साम्राज्य में प्रधानमंत्री पद पर आसीन भी हुये थे। इनका जन्म 1131 ई0 में बागेवाडी (कर्नाटक) में हुआ था। इनके पिता का नाम मादरस और माता का नाम मादलाम्बिके था। वह शिव केन्द्रित भक्ति आन्दोलन में एक लिंगायत सन्त भी थे। लिंगायत सम्प्रदाय को जंगम बी भी कहा जाता है। एक समाज सुधारक के रूप में उन्होंने वंचित वर्ग और महिलाओं के उत्थान की दिशा में कार्य किया और माना कि वर्ग, जाति, पन्थ और लिंग के बावजूद सभी मनुष्य समान हैं।
Basaveshwara का योगदान
पारम्परिक किंवदन्तियों और सन्त चरित्र ग्रन्थों के अनुसार गुरू बासव या Basaveshwara ही लिंगायतों के संस्थापक थें।
- हालांकि, कल्चुरी शिलालेख जैसे ऐतिहासिक प्रमाणों पर भरोसा करने वाले आधुनिक विद्धानों का मानना है कि बसवेश्वर कवि और दार्शनिक थे, जिन्होंने पहले से मौजूद लिंगायत परम्परा का पुनर्जीवित, परिष्कृत और सक्रिय बनाया।
- उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिक जारूकता उत्पन्न की, उनकी इन कविताओं को वचनों के नाम से भी जाना जाता है।
- बासवन्ना ने लैंगिक या सामाजिक भेदभाव, अंधविश्वासों और रिवाजों को खारिज किया, लेकिन अनुयायियों के लिए ईष्टलिंग धारण करने की बात की।
- लिंगायत सम्प्रदाय के लोग वेद और मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते हैं। भगवान शिव की पूजा न करके भगवान को उचित आकार ईष्टलिंग के रूप में पूजा करते हैं।
- अपने कलचुरी राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने नए सामाजिक संस्थानों जैसे कि अनुभव मण्डप आदि की स्थापना की, जिसने सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के पुरूषों और महिलाओं का स्वागत किया।
बासवन्ना का शरण आन्दोलन
- Basaveshwara ने शरण नामक आन्दोलन चलाया था, जिसके प्रति सभी जाति के लोग आकर्षित हुये।
- भक्ति आन्दोलन की तरह ही इस आन्दोलन से भी जुड़ी कई साहित्य रचनाएं हुयी। शरण आन्दोलन से जुडे साहित्य को वचन भी कहा जाता है।
- इन साहित्य में वीरशैव सन्तों के आध्यात्मिक अनुभवों को प्रस्तुत किया गया।
- इनका शरण आन्दोलन एक समानतावादी आन्दोलन था, जो अपने उस समय के हिसाब से बहुत उग्र था।
- उन्होंने अनुभव मण्डप की स्थापना की, जहां विभिन्न जातियों और समुदायों के शरण एकत्रित होकर सीखने और विचार करने का कार्य करते थे।
- शरणों ने जाति व्यवस्था को चुनौती दी, उन्होंने एक ऐसा वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें दुल्हन ब्राह्मण और दूल्हा निम्न जाति का होती थी।
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