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Pandit Deendayal Upadhyaya
Pandit Deendayal Upadhyaya एक चिन्तक, संगठक, शिक्षाविद्, समाज सेवक,राजनीतिज्ञ, वक्ता, लेखक, साहित्यकार और पत्रकार थे।
- उन्हें एकात्म मानववाद के दर्शन के लिए व्यापक रूप् से सराहा जाता है।
- वे एक गहन दार्शनिक, उत्कृष्ट संगठनकर्ता और एक ऐसे नेता थे जिन्होंने व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा के उच्चतम मानकों का पालन किया।
- 1937 में वे आरएसएस में शामिल हुए अैर 1953 से 1968 तक भारतीय जनसघं के नेता रहें।
Pandit Deendayal Upadhyaya का योगदान
- उन्होंने सात्ताहिक पांचजन्य और दैनिक स्वदेश का शुभारम्भ किया। वे एक रचनात्मक लेखक और एक प्रसिद्ध सम्पादक थे।
- उन्होंने सम्राट चन्द्रगुप्त, जगतगुरू शंकराचार्य, एकात्म मानववाद, और भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का विश्लेषण सहित कई पुस्तकें लिखी।
- Pandit Deendayal Upadhyaya का कहना था कि भारत की जड़ों से जुड़ी राजनीति, अर्थनीति और समाज नीति ही देश के भाग्य को बदलने का सामर्थ्य रखती है। कोई भी देश अपनी जड़ों से कटकर विकास नहीं कर सका है।
एकात्म मानववाद का दर्शन
- Pandit Deendayal Upadhyaya के अनुसार, भारत में प्राथमिक चिन्ता एक स्वदेशी विकास माडल विकसित करने की होनी चाहिए जिसमें मुख्य फोकस मानव पर हो।
- यह दर्शन पश्चिमी पूंजीवादी व्यक्तिवाद और मार्क्सवादी समाजवाद दोनों का विरोध करता है, हालांकि पश्चिमी विज्ञान का स्वागत करता है।
- यह पूंजीवाद और समाजवाद के बीच एक मध्य मार्ग की तलाश करता है। दोनों प्रणालियों का उनके गुणों के आधार पर मूल्यांकन करता है, जबकि उनकी कमियों और अलगाव की आलोचना करता है।
- Pandit Deendayal Upadhyaya का सम्पूर्ण जीवन सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय के सिद्धान्त पर आधारित है। उनका एकात्म मानववाद का दर्शन भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई समस्याओं का समाधान देने में सक्षम है।