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Madhvacharya-द्वैतवाद के समर्थक
जीवन परिचय
- Madhvacharya, विचारकों की उनक त्रिमूर्ति में से तीसरे थे जिन्होंने वैदिक और पौराणिक युगों के बाद भारतीय सोच को आकार दिया। अन्य दो शंकराचार्य और रामानुजाचार्य थें।
- उन्हें अच्युतप्रेक्ष द्वारा सन्यास में दीक्षा दी गई थी, जोकि अद्वैत दर्शनशास्त्र के एक महान शिक्षक थें।
- अच्युतप्रेक्ष ने उन्हें श्माधवश की उपाधि दी, जिससे वे और अधिक प्रसिद्ध हुये।
- Madhvacharya, विचारकों की उनक त्रिमूर्ति में से तीसरे थे जिन्होंने वैदिक और पौराणिक युगों के बाद भारतीय सोच को आकार दिया। अन्य दो शंकराचार्य और रामानुजाचार्य थें।
- Madhvacharya, विचारकों की उनक त्रिमूर्ति में से तीसरे थे जिन्होंने वैदिक और पौराणिक युगों के बाद भारतीय सोच को आकार दिया। अन्य दो शंकराचार्य और रामानुजाचार्य थें।
Madhvacharya का योगदान
- उन्होंने द्वैत या द्वैतवाद के दर्शन को प्रतिपादित किया।
- Madhvacharya ने आदि मठ के अलावा, उडूपी में 8 मठों की स्थापना की, जिनमें से प्रत्येक का नेतृत्व उनके आठ विद्यार्थियों में से एक ने किया।
- इन्हें माधव मठ या उडूपी अष्ट मठ के रूप में जाना जाता है और इसमें पालिमरू मठ, अदमारू मठ, कृष्णपुरा मठ, पुत्तिगे मठ, शिरूर मठ, सोधे मठ, कनियूरू मठ और पेजावरा मठ शामिल हैं।
साहित्यिक रचनाएँ
- उन्होंने विभिन्न ग्रन्थ लिखे जो उनके दर्शन को विस्तारित करते हैं, उन्होंने अपने दर्शन को तत्ववाद कहा, तत्ववाद को ही लोकप्रिय रूप से द्वैत के रूप् में जाना जाता है।
- Madhvacharya की कुछ रचनाएँ-गीता भाष्य, ब्रह्म सूत्र भाष्य, अनु भाष्य, कर्म निर्णय और विष्णु तत्व निर्णय थी।
द्वैतवाद का दर्शन
- द्वैतवाद दर्शन का मूल सिद्धान्त श्री शंकर या श्री आदि शंकराचार्य के मायावाद का खण्डन है।
- द्वैत दर्शन इस बात पर जोर देता है कि दुनिया वास्तविक है न कि केवल एक भ्रम।
- आत्मा अज्ञान के द्वारा इस संसार से बंधी हुई है।
- आत्मा का इस बंधन से मुक्त करने का तरीका श्री हरि की कृपा प्राप्त करना है।
- श्री हरि तक पहुचने के लिए भक्ति करनी पड़ती है। भक्ति का अभ्यास करने के लिए ध्यान की आवश्यकता होती है।
- ध्यान करने के लिए मन को शुद्ध करने और पवित्र ग्रन्थों का अध्ययन करके वैराग्य प्राप्त करने की आवश्यकता है।