मांगणियार (Manganiyar)
Manganiyar एक मुस्लिम समुदाय है जो राजस्थान के रेगिस्तान में निवास करते है। ये बाडमेर और जैसलमेर जिलों के अलावा पाकिस्तान में सीमा से जुडे सिंन्ध प्रान्त में रहते हैं। ये अपने लोक संगीत के लिए जाने जाते है। इनके संगीत को पीढ़ियों से धनी जमींदारों और अभिजात वर्ग ने समर्थन दिया है। ये खुद को राजपूतों का वंशज मानते है और थार के रेगिस्तान के लोक संगीतकार के रूप में प्रसिद्ध है। इनके गीतों में पीढी से पीढी तक रेगिस्तान के मौखिक इतिहास के रूप में गाते है। वे सिकन्दर, स्थानीय महाराजाओं तथा लडाइयों के गीत गाते है।
- लंगा और Manganiyar मुस्लिम लोक संगीतकारों का समुदाय है, जो ज्यादातर पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिलों में रहते हैं।Manganiyar को भाटी राजपूतों का संरक्षण प्राप्त है, जबकि लंगा सिंधी सिपाही यजमान के रूप में हैं। वे अभी होली, दिवाली और शादियों जैसे अन्य शुभ अवसरों पर अपने हिंदू यजतानों के लिए गाते हैं।
इतिहास और उद्भव-Manganiyar और लंगा दोनों विशेष रूप से वंशानुगत समुदाय है जों उच्च जाति के संरक्षकों के लिए संगीत कलाकारों और वंशावली के रूप में अपना जीवन यापन करते है। हालाकिं दोनों समूह मुस्लिम हैं, लेकिन लंगा के संरक्षक मुस्लिम सिंधी सिपाही हैं जबकि Manganiyar के संरक्षक मुख्य रूप् से हिन्दू हैं। लंगा का मुख्य पारम्परिक वाद्य यंत्र सिंधी सारंगी है, जबकि Manganiyar का कामाइचा है। दोनों ही झुके तार वाले वाद्य यंत्र हैं जिनमें स्किन मेम्ब्रेन साउडिंग बोर्ड और कई सहानुभूति वाले तार होते हैं। लंगस और मांगणियार दोनों ढोलक, करताल, मोर्चन और सर्वव्यापी हारमोनियम गाते और बजाते हैं।
- लोक कलाः इन दो समुदायों द्वारा प्रचलित लोक कलाओं में गाथागीत तथा लोकगीत शामिल हैं।
- इन लोक गीतों के प्रमुख विषय वीर गाथागीत, प्रेम प्रसंगयुक्त महाकाव्य कथाएं और सूफी आध्यात्मिक कहानियां आदि है।
- इनका प्रदर्शन मारवाड़ी, सिंधी, सरायकी, धत्ती और थरेली सहित कई भाषाओं और बोलियों में किया जाता हैं।
- उमर-मारवी, हीर-रांझा सोहनी-महिवाल, मूमल-राणा और सोरथ-राव खंगार जैसे दिग्गज प्रेमियों के इर्द-गिर्द घूमती प्रेम प्रसंगयुक्त कहारियों ने पारंपरिक रूप से दर्शकों को आकर्षित किया है। लोक कला थार रेगिस्तान के सांस्कृतिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
एक अन्य कारक जो उनके संगीत में समानता में योगदान देता है कि वे दोनों एक ऐसे समूह के अवशेष हैं | जो मूल रूप से ढोली संगीतकार जाति के थे, जहां वे उन्नीस वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उभरे प्रतीत होते हैं। मांगणियार और लंगस कभी भी अन्य राजस्थानी समुदायों के साथ विवाह नहीं करते हैं या अपना संगीत नहीं पढ़ाते हैं । वे संगीत को अपने खून में ही होने की बात करते हैं।
ये वंशानुगत लोक कलाकारों का समूह है । इनकी गायन विद्या जाति, धर्म, समुदाय की सीमा से परे है। गायन को ये मन्दिर की पुजारी की तरह पूजते है। इनकी लोक गायक साम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल है। मुस्लिम होते हुए भी इनके नाम और गीतों में हिन्दू देवी- देवताओं, त्यौहारों और संस्कृति की झलक मिलती है। मीरा, कबीर, तुलसी के भजनों को इन्होंने देश् ही नहीं अपितु विदेशों में पहचान दिलाई है।
वाद्य यंत्र-
(1) कमाइचा– यह 17 तार वाला खमायचा एक झुका हुआ वाद्य यंत्र है। आम की लकड़ी से बना गोल गंुजयमान यंत्र बकरी की खाल से ढका होता है।
(2) खरताली– खराताल सागौन से बना एक प्रकार का कास्टनेट है। इसका नाम खर से लिया गया है, जिसका अर्थ है हाथ और ताल।
(3) ढोलकी– ढोलक एक बोंगो के समान एक ड्रम है। ढोलक में एक साधारण झिल्ली होती है।
इन कालाकारों के गीतों में प्रकृति के विभिन्न उपादानों को बडी करूणा अभिव्यक्ति मिलती है। चमेली, मोगरा, हंजारा, रोहिडा के फूल भी और कुरजा, कोआ, हंस, मोर, तोता, सोन चिड़िया, चकवा-चकवी जैसी प्रेमी-प्रेमिका प्रियतमाओं, विरही-विरहणियों आदि के सुख-दुख की स्थितियों संदेश वाहक है।
गायन शैली– छह रंग और 36 रागनियां शामिल है। मिटटी की खुशबू इनकी हर मुरकी, आलाप और राग में मिलती है। फागोत्सव के दौरान फाग गीत गाने की अनूठी परम्परा है। बालकों के जन्मदिन के अवसर पर हालरिया गीत गाने परम्परा है। अन्य गीतों में सुवटिया, बन्ना गीत, विरही गीत, मोरू बाई, दमा दममस्त कलन्दर, निंबुडा-निंबुडा, इंजन री सीटी में मारों मन डोले है। जैसे सैकड़ो लोकगीत राजस्थान की समृद्ध परम्पराओं का निर्वाहन कर रहें हैं।
प्रसिद्ध व्यक्ति-
कचरा खान-पश्चिमी राजस्थान के Manganiyar समुदाय के गायक।
मामे खान-लोक गायक।
साकर खान-लोक गायक।
स्वरूप खान-पार्श्व गायक।
चर्चा में
हाल ही में सरकार ने लंगा-मंगनियर कलाकारों के लोककला प्रदर्शनों का ’दस्तावेजीकरण’ तथा ’डिजिटलीकरण’ करने का निर्णय लिया है। इस परियोजना का उदेश्य इन समुदायों की तेजी से लुप्त हो रही कथा परंपराओं को बचाना है।
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