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Mahavir Swami-शिक्षा एवं योगदान
Mahavir Swami 24 वें और अन्तिम तीर्थकर, भगवान महावीर के जन्म का प्रतीक हे, जिन्होंने जैन धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। Mahavir Swami के शाश्वत उपदेश और जीव-दया के लिये उनका आग्रह समतावादी तथा करूणामयी समाज की रचना में सहायक हो सकते है।
जीवन परिचय
- Mahavir Swami जिन्हें वर्धमान के नाम से भी जाना जाता है, जैन धर्म के 24वें तीर्थकर थे। वे 23 वें तीर्थकर पार्श्वनाथ के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव थे।
- जैन धर्म के दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार, भगवान महावीर का जन्म चैत्र माह के 13वें दिन राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशाला के पुत्र के रूप् में हुआ था।
- अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व या 615 ईसा पूर्व बताया जाता है।
- उनके माता-पिता 23 वें तीर्थकर पार्श्वनाथ के भक्त थें।
- Mahavir Swami ने लगभग 30 वर्ष की आयु में सभी सांसरिक सम्पतियों का त्याग दिया और एक तपस्वी बनकर आध्यात्मिक जागृति की खोज में घर छोड़ दिया।
- Mahavir Swami ने साढ़े 12 वर्षों तक गहन ध्यान और कठोर तपस्या की, जिसके बाद उन्होंने सम्यक ज्ञान, सम्यक विश्वास और सम्यक आचरण (जैन धर्म के त्रि-रत्न) के माध्यम से केवल्य ज्ञान (सर्वज्ञान) की प्राप्ति की।
Mahavir Swami की शिक्षाएं और योगदान
- उन्होंने वेदों के अधिकार पर सवाल उठाया और जनता को सांसारिक अस्तित्व के परीक्षणों और क्लेशों से मुक्ति पाने का सुझाव दिया।
- यह ब्राहम्णवादी स्थिति के विपरीत था, जिसमें किसी व्यक्ति का अस्तित्व एक विशिष्ट जाति या लिंग में उसके जन्म से निर्धारित होता था।
- उन्होंने भगवान पार्श्वनाथ के समय से चले आ रहे चार महान व्रतों में एक और व्रत ब्रह्मचर्य जोड़ा।
- पांच महान व्रत निम्नलिखित हैं-
1. अहिंसा (हिंसा न करना)
2. सत्य (सच बोलना)
3. अस्तेय (चोरी न करना)
4. अपरिग्रह (धन का संग्रह न करना)
5. ब्रह्मचर्य (इंद्रिय निग्रह करना)
- अन्तिम तीर्थकर के रूप में, उन्होंने तीर्थ (धार्मिक उपदेश) को पुनर्जीवित किया और इस आदेश का जैन संघ (आदेश) के रूप् में जाना जाता है।
- उनकी शिक्षाओं को उनके प्रमुख शिष्य इंद्रभूति गौतम ने जैन आगम (Jain Agamas) के रूप में संकलित किया था।
- उन्होंने प्राकृत भाषा का इस्तेमाल किया, ताकि आम लोग उनकी शिक्षाओं को समझ सकें क्योंकि संस्कृत कई लोगों को समझ में नहीं आती थी।
- उन्होंने 527 ईसा पूर्व में पटना के पास पावापुरी में बहत्तर वर्ष की आयु में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।