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डॉ भीमराव अम्बेडकर-महान सामाजिक-राजनीतिक सुधारक
Dr Bhimrao Ambedkar भारत के लोगों द्वारा बाबा साहेब या भारतीय संविधान के पिता के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें 1990 में मरणोपरान्त भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
जीवन परिचय
- बाबासाहब के नाम से लोकप्रिय Dr Bhimrao Ambedkar भारतीय संविधान के मुख्य निर्माताओं में से एक थे। वे एक विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे। उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश में हुआ था।
- बॉम्बे विश्वविद्यालय के एलफिंस्टन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय और लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त की तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये।
सामाजिक-राजनीतिक विचार
Dr Bhimrao Ambedkar समानता के लिए प्रतिबद्ध थे। उनका मानना था कि समानता का अधिकार धर्म और जाति से ऊपर होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना किसी भी समाज की प्रथम और अन्तिम नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। वे मानते थे कि समाज में यह बदलाव सहज नहीं होता है, इसके लिए कई पद्धतियों को अपनाना पड़ता है।
- वे एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के हिमायती थे, जिसमें राज्य सभी को समान राजनीतिक अवसर दे तथा धर्म, जाति, रंग ओर लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए। उनका यह राजनीतिक दर्शन व्यक्ति और समाज के परस्पर सम्बन्धों पर बल देता है।
- उनका यह दृढ़ विश्वास था कि जब तक आर्थिक और सामाजिक विषमता समाप्त नहीं होगी, तब तक जनतन्त्र की स्थापना अपने वास्तविक स्वरूप् को ग्रहण नहीं कर सकेगी। दरअसल सामाजिक चेतना के अभाव में जनतन्त्र आत्मविहिन हो जाता है।
- ऐसे में जब तक सामाजिक जनतन्त्र स्थापित नहीं होता है, तब तक सामाजिक चेतना का विकास भी सम्भव नहीं हो पाता है।
Dr Bhimrao Ambedkar का योगदान
Dr Bhimrao Ambedkar ने समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- Dr Bhimrao Ambedkar ने दलित बौद्ध अभियान का नेतृत्व किया और उनके समान मानवाधिकारों और बेहतरी के लिए अथक प्रयास किया।
- 29 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र भारत के संविधान के लिए संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष बने। आजादी के बाद वे स्वतन्त्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री बने।
- Dr Bhimrao Ambedkar ने एक मजबूत केन्द्र सरकार का समर्थन किया, उन्हें डर था कि स्थानीय और प्रान्तीय स्तर पर जातिवाद अधिक शक्तिशाली है तथा इस स्तर पर सरकार उच्च जाति के दबाव में निम्न जाति के हितों की रक्षा नहीं कर सकती है।
- क्योंकि राष्ट्रीय सरकार इन दबावों से कम प्रभावित होती है, इसलिए वह निचली जाति का संरक्षण सुनिश्चित करेगी।
प्रमुख साहित्यिक कृतियां
- उन्होंने दलितों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए ‘बहिष्कृत भारत‘ (Excluded India), ‘मूक नायक‘ (Mook Nayak), ‘जनता’ (Janta) नाम से पाक्षिक और साप्ताहिक पत्र भी शुरू किए थें
- 1956 में उन्होंने अपनी पुस्तक’ एनिहिलेशन ऑफ कास्ट‘ (Annihilation of Caste) प्रकाशित की, जिसमें अछूतों और दलितों के सम्बन्ध में तत्कालीन प्रथा और कानूनों की तीखी आलोचना की गई थी।
- डनकी 20 पृष्ठ की आत्मकथा, ‘वेटिंग फॉर ए वीजा‘ (Waiting for a Visa) का उपयोग कोलम्बिया विश्वविद्यालय में एक पाठय पुस्तक के रूप् में किया जाता है।