Mihira Bhoja

Mihira Bhoja (मिहिर भोज)

Mihira Bhoja या भोज प्रथम (836-885 ई0) गुर्जर-प्रतिहार वंश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजा थे। वे अपने पिता रामभद्र के बाद प्रतिहार वंश के शासक बने।

  • वे विष्णु’ के उपासक थे तथा उन्होंनेआदिवाराह (Adivarah) तथा प्रभास जैसी उपाधियां धारण की थी, जोकि उनके द्वारा चलाये गये चांदी के द्रम्म सिक्कों पर अंकित है।

राजनीतिक प्रसार तथा शासन काल

  • उनके शासनकाल की जानकारी कई स्रोतों से मिलती है। इनमें ग्वालियर अभिलेख प्रमुख अभिलेख है, जो प्रशस्ति के रूप में है। लेखो के अतिरिक्त उनके काल की घटनाओं के बारे में जानकारी ’कल्हण’ तथा अरब यात्री ’सुलेमान’ के विवरणों से भी प्राप्त होती है।
  • राजा बनने के बाद उनका पहला महत्वपूर्ण कार्य समा्रज्य का सुदृढीकरण करना था। उन्होंने अपने पिता के काल में स्वतन्त्र हो चुके प्रांतीय राज्यों को अपने नियन्त्रण में लिया तथा मध्य भारत व राजपूताना क्षेत्रों में अपनी स्थिति सुदृढ की। उन्होंने ’कलिचुरी’ तथा ’गुहिला’ वंश के शासकों के साथ मैत्री संबंध स्थापित किये।
  • उनके शासन काल के दौरान भी पाल-प्रतिहार-राष्ट्रकूट संघर्ष चलता रहा। मिहिर भोज, 2 पाल शासकोें देवपाल तथा विग्रहपाल के समकालीन थे। पालों के विरूद्व उसके राजनीतिक अभियानों को लेकर स्पष्ट जानकारी नहीं है। लेकिन वस्तुस्थिति यह प्रतीत होती है कि प्रारम्भिक युद्वो में देवपाल ने Mihira Bhoja को हराया था, लेकिन देवपाल के शासन के अंतिम दौर में उन्होनें अपनी पराजय का बदला लिया था।
  • पाल शासकों के अलावा Mihira Bhoja को राष्ट्रकूट शासकों से भी राजनीतिक प्रतिद्वद्विता थी। राष्ट्रकूट शासकों-अमोधवर्ष’ तथा ’कृष्ण द्वितीय’ का वह समकालीन था। अमोघवर्ष के शासनकाल में उन्होनें उज्जैन पर आक्रमण कर नर्मदा नदी के तट तक नियंत्रण कर लिया था मिहिर भोज ने राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय को हराकर मालवा पर अधिकार कर नर्मदा नदी के तट तक नियंत्रण कर लिया था। उन्होनें राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय को हराकर मालवा पर अधिकार कर लिया था।
  • उत्तर भारत में उन्होनें एक विशाल प्रतिहार साम्रज्य की स्थापना की थी। उत्तर-पश्चिम में उनका साम्राज्य पंजाब तक विस्तृत था। पूर्व में गोरखपुर के ’कलुचरि शासक उनके सामंत थे तथा सम्पूर्ण अवध का क्षेत्र उसके अधीन था।

चर्चा में

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी द्वारा 22 सितम्बर, 2021 को 9वीं शताब्दी के प्रतिहार वंश के शासक मिहिर भोज की प्रतिमा को स्थापना को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के गुर्जर तथा राजपूत समुदाय के लोगों ने मिहिर भोज को लेकर अपना-अपना दावा जताया।

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