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Quit India Movement (भारत छोड़ो आन्दोलन): स्वतंत्रता की विरासत
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई में Quit India Movement की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
- भारत की आजादी में दो पड़ाव सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं- प्रथम 1857 का स्वतंत्रता संग्राम और द्वितीय 1942 का Quit India Movement। इस आन्दोलन को ‘अगस्त क्रान्ति’ के नाम से भी जाना जाता है। यह आजादी के आन्दोलन में सबसे बड़ा जन संघर्ष था।
- 14 जुलाई, 1942 को वर्धा में आयोजित कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक ‘Quit India Movement’ पर एक प्रस्ताव पारित किया गया। गांधी जी ने कांग्रेस अंदर भारत छोड़ों प्रस्ताव के विरोधियों को चुनौती देते हुए कहा कि ”यदि संघर्ष का उनका प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जाता तो मै देश की बालू से कांग्रेस से बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा ।“
- 7 अगस्त, 1942 को बम्बई के एतिहासिक ग्वालिया टैक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की वार्षिक बैठक हुई (अध्यक्षता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने की) बैठक में वर्धा प्रस्ताव (भारत छोड़ों) की पुष्टि कर दी गई।
- बम्बई में कांग्रेस ने भारत छोड़ो प्रस्ताव को थोड़े बहुत संशोधन के बाद 8 अगस्त 1942 को पास कर दिया।
- गांधी जी ने ऐतिहासिक ग्वालिया टेंक मैदान में ”करो या मरो” का नारा दिया। हालाकिं गांधी जी सहित अन्य कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया । परन्तु छात्रों, किसानों तथा समाज के अन्य वर्गों ने आन्दोलन को बिना नेतृत्व के ही आगे बढ़ाया। गांधी जी को गिरफ्तार कर सरोजनी नायडू सहित आगा खां पैलेस में रखा गया।
- 7 मार्च, 1943 को गांधी जी ने सरकार को चमका देते हुए भूख हड़ताल समाप्त कर दिया, उनके खराब स्वास्थ्य के कारण सरकार ने 6 मई, 1944 को उन्हें कैद से रिहा कर दिया।
- जिस समय गांधी जी रिहा हुए उससे पूर्व ही उनकी पत्नी कस्तूरबा और निजी सचिव महादेव देसाई की मृत्यू हो चुकी थी।
Quit India Movement की पृष्ठभूमि
- 1940-1942 के दौरान ऐसी विकट परिस्थितियां उत्पन्न हुयी, जिन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के लिए पृष्ठभूमि तैयार की। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण भारत पर जापान के आक्रमण का खतरा मंडरा था तथा स्वतंत्रता सेनानियों का मानना था कि भारत को द्वितीय विश्व युद्ध से अलग रखने के लिए भारत का स्वतंत्र होना जरूरी है। क्रिप्स मिशन जिसका गठन भारत के लिए संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए किया गया था, से भारतीयों को निराशा ही हाथ लगी।
- द्वितीय विश्व युद्ध के कारण आम लोगों के लिए कई प्रकार आर्थिक परेशानियां उत्पन्न हो गयी। रोजमर्रा की वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुयी जिससे लोगों में असन्तोष उत्पन्न हुया। जिससे वे जनांदोलन के लिए मानसिक रूप से तैयार थे।
Quit India Movement की आन्दोलन की मांगे
- द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों का सहयोग पाने के लिए भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को शासन को समाप्त किये जाने की शर्त रखी गयी।
- भारतीयों से बनी एक अन्तरिम सरकार के गठन की मांग भी रखी गयी थी।
आन्दोलन का स्वरूप
- यह आन्दोलन महात्मा गांधी द्वारा प्रारम्भ किए गए अन्य आन्दोलनों से भिन्न था। असहयोग आन्दोलन (1920-22) तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन (1930-34) अंग्रेजों के खिलाफ शान्तिपूर्ण प्रतिरोधों के प्रतीक थे। वहीं भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ से ही एक व्यापक विद्रोह के रूप में शुरू हुआ था।
- गांधी ने अपने आप को मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार कर लिया था कि अन्य आन्दोलनों की तुलना में व्यापक जन भागीदारी के कारण इस आन्दोलन में हिंसा का प्रयोग स्वाभाविक होगा। गांधी ने यह भी स्वीकार कर लिया था कि जनता को आत्मरक्षा के लिए हथियार उठानें ही होंगे।
- देश भर में आन्दोलनकरियों ने अंग्रेजी सत्ता और उनके प्रतिष्ठानों के खिलाफ हिंसा का सहारा लिया। करीब 250 रेलवे स्टेशन, 150 पुलिस स्टेशन और 500 से ज्यादा पोस्ट ऑफिस जला दिए गए।
- आन्दोलन को मजबूत करने के लिए विद्यार्थी और कामगार हड़ताल पर चले गए। बंगाल के किसानों ने करों में बढोत्तरी के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। सरकारी कर्मचारियों ने भी काम करना बन्द कर दिया, यह एक ऐतिहासिक क्षण था। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ही डां राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और अरूणा आसफ अली जैसे नेता उभर कर सामने आए। अंग्रेज सरकार के भयानक बर्बर और अमानवीय दमन के बावजूद देश के करोड़ो लोगों का योगदान प्रत्येक पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है।
आन्दोलन का प्रभाव
हालाकिं यह आन्दोलन भारत से तत्काल अंग्रेजों के शासन को समाप्त करने में सफल नहीं हुआ परन्तु भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में इस आन्दोलन की भूमिका महत्वपूर्ण रहीं है।
- अन्य गांधीवादी आन्दोलन की तुलना में इस आन्दोलन में जिस तरह व्यापक तथा हिंसक प्रतिरोध अंग्रेजों को देखने को मिला उससे उन्हें यह अहसास हो गया कि अब भारत पर शासन करना कठिन है।
- भारत के लगभग सभी वर्गों, सभी आयु समूहों, सभी धर्मों ने आन्दोलन में भाग लिया जो कि इस बात का संकेत था कि पूरा भारतीय समाज स्वतन्त्रता के लिए तैयार हो चुका है।
- अपने क्षेत्रीय प्रसार में भी भारत छोड़ो आन्दोलन अन्य आन्दोलनों की तुलना में बड़ा आन्दोलन था। दक्षिण से उत्तर तथा पूर्व से पश्चिम तक इस आन्दोलन के विभिन्न रूप हमें देखने को मिलते हैं।
- हालाकिं इस आंदोलन में मुसलमानों का योगदान संदेहास्पद था फिर भी मुस्लिमलीग के कुछ सदस्यों ने कांग्रेस के भूमिगत नेताओं को अपने घरों में शरण दी।
- Quit India Movement के मूल्यांकन में यह कहना सर्वथा अनुचित होगा कि यह असफल रहा, स्वाधीनता के लिए किया गया कोई भी प्रयास या कोई भी आंदोलन अथवा कोई भी त्याग कभी विफल नहीं जाता, अंतिम सिद्वि में उन सबका अपना-अपना योगदान होता है।
- निःसंदेह इस आंदोलन को सरकार ने बर्बरतापूर्वक कुचला लेकिन फिर भी 1947 में स्वाधीनता का जो स्वर्ण विहान हुआ, उसमें इस आंदोलन का ही सबसे बड़ा योगदान था। अगस्त, 1942 में दी गई भारत छोड़ों की ललकार ने ठीक पांच वर्ष बाद अंग्रेजों को बोरिया बिस्तर बांधने के लिए मजबूर कर दिया।
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अन्य विविध तथ्य
- Quit India Movement के दौरान अरूणा आसफ अली और उषा मेहता ने लगातार भूमिगत रहकर रेडियों स्टेशन का संचालन किया।
- बंगाल के मिदनापुर, महाराष्ट्र के सतारा और उत्तर प्रदेश के बलिया में स्थानीय आन्दोलनकारियों ने अपनी सरकारें बना ली।
- महात्मा गांधी द्वारा प्रारम्भ किए जाने के बावजूद इस आन्दोलन में आन्दोलनकारियों ने हिंसा का सहारा लिया।
- 23 मार्च, 1943 को मुस्लिम लीग ने ‘पाकिस्तान दिवस’ मनाने का आवहन किया।
- मुस्लिम लीग ने दिसम्बर, 1943 में करांची में हुए अधिवेशन में ‘विभाजन करो और छोड़ों’ (Divide and Quit) का नारा दिया।
- अति उदारवादी नेता तेज बहादुर सप्रू ने भारत छोड़ों आंदोलन को अकल्पित तथा असामाजिक माना।
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