Lingayat

Lingayat (लिंगायत)

  • Lingayat अथवा वीर शैव धर्म का ही एक सम्प्रदाय है जिसका उदय बारहवीं शताब्दी में दक्षिण भारत में व्यापक रूप से हुआ। इसने दक्षिण भारत के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में व्यापक परिवर्तन किया।
  • Lingayat शब्द एक ऐसे व्यक्ति को सन्दर्भित करता है, जो दीक्षा, संस्कार के दौरान शरीर पर धारित किये गए भगवान शिव के प्रतीकात्मक रूप लिंग को धारण करता है।
  • Lingayat परम्परा (लिंगायतवाद) की स्थापना 12वीं सदीं में कर्नाटक के एक समाज सुधारक और दार्शनिक बसवेश्वर द्वारा की गई थी। बसव कल्याणी के कलचूरि नरेश विज्जल (विजयादित्य, 1145-1167) का मंत्री था।
  • BASAVESHWARA का जन्म बीजापुर जिले के वगेवाडी नामक ग्राम में हुआ था। वे मादिराज तथा मादलाम्बिका के पुत्र थे।
  • Lingayat को वीर शैव लिंगायत नामक एक हिन्दू उप जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था तथा उन्हें शैव माना जाता है।
  • Lingayat मत के प्रचारकों द्वारा साहित्य कन्नड़ गद्य में लिखा गया है। जिन्हे वचन कहा जाता है। वचन एक दूसरे से पृथक अनुच्छेद है। जिनके अन्त में शिव का कोई न कोई नाम आता है।
  • बसवेश्वर जाति व्यवस्था और वैदिक कर्मकाण्डों के खिलाफ थे।
  • हालांकि लिंगायतों का मानना है कि उनके आदिगुरू बासवन्ना ने जिस शिव का अपना ईष्ट लिंग (निराकर भगवान) हैं, जिसे लिंगायत अपने गले में पहनते हैं। लिंग के तीन भेद हैं-
  1. भाव लिंग– यह सर्वश्रेश्ठ परम तत्व है, जो कि दिक काल की सीमा से परे है। यह कलाविहीन एवं सत्य स्वरूप् है।
  2. प्राण लिंग– यह कलाविहीन तथा कलायुक्त दोनों है। इसका ज्ञान सूक्ष्म दृष्टि से हो सकता है।
  3. ईष्ट लिंग– यह स्थूल रूप है जिसे नेत्रों से देखा जा सकता है।
  • वीर शैव Lingayat नामक एक हिन्दू उपजाति के रूप में लिंगायतों को वर्गीकृत किया गया था और उन्हें शैव माना जाता है।
  • लिंगायतों ने हिन्दू धर्म के वीर शैव से स्वयं को दूर कर लिया था, क्योंकि हिन्दू वीर शैव वेदों का पालन करते थे तथा जाति व्यवस्था का समर्थन करते थे और बसवेश्वर इन सबके विरूद्ध थे।
  • Lingayat सम्प्रदाय बारहवीं शदी में एक सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन के रूप में प्रवर्तित हुआ जिसने समकालीन समाज एंव धर्म की कुरीतियों पर जोरदार व्यापक प्रहार किया।
  • वीर शैव पांच पीठों के अनुयायी हैं जिन्हें पंच पीठ भी कहा जाता है। इन पीठों को आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों के समान ही माना जाता है।

Vokkaliga (वोक्कालिगा)

  • दक्षिण कर्नाटक के कषृक समुदायों को Vokkaliga कहा जाता है। उत्कल साम्राज्य में Vokkaliga समुदाय के लोग के ओक्कलिया के रूप में जाने जाते हैं।
  • पुराने मैसूर क्षेत्र में योद्धाओं और कषृकों के एक समुदाय के रूप में उनका ऐतिहासिक रूप से उल्लेखनीय जनसांख्यिकीय, राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व था।
  • कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि राष्टकूट और पश्चिमी गंग शासक Vokkaliga मूल के थे। वोक्कालिगाओं ने विजयनगर साम्राज्य में प्रशासनिक पदों को धारित किया था।
  • इस जाति का उद्भव भारत के दक्षिण राज्य कर्नाटक में हुआ है। मैसूर की पूर्व रियासत में यह समुदाय सबसे बड़ा समुदाय था।

Vokkaliga तथा Lingayat समुदाय को आरक्षण

  • कर्नाटक मंत्रिमण्डल ने 29 दिसम्बर, 2022 को राज्य में दो प्रमुख समुदायों Vokkaliga और Lingayat को पिछड़े वर्ग की श्रेणी से मध्यम रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकृत करने का निर्णय लिया।
  • कर्नाटक सरकार का यह कदम अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में उनकी हिस्सेदारी को बढ़ा सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि Lingayat को राज्य में सबसे अधिक आबादी वाला समुदाय माना जाता है तथा इसके बाद वोक्कालिगा का स्थान आता है।
  • सामाजिक रूप से सर्वाधिक प्रभावशाली  जातियों में गिनी जाने वाली Lingayat Cast दक्षिण राज्य कर्नाटक के उत्तरी हिस्सों में रहती है जबकि Vokkaliga, दक्षिण कर्नाटक की प्रभावशाली जाति है।

प्रमुख बिन्दु

  • कैबिनेट के फैसले के अनुसार Vokkaliga समुदाय, जो वर्तमान में 3ए श्रेणी में है, को 4 प्रतिषत आरक्षण के साथ नई निर्मित 2सी श्रेणी में स्थानान्तरित कर दिया जाएगा।
  • वही Lingayat समुदाय जो 3बी कैटेगरी में है, अब 5 प्रतिशत आरक्षण के साथ नई 2डी कैटेगरी में होगा।
  • वर्तमान में कर्नाटक राज्य में ओबीसी आरक्षण के लिए 32 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए क्रमषः 17 प्रतिशत और 7 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था इस स्टेट में है, इस प्रकार राज्य में प्रदत्त आरक्षण इन्द्रा साहनी वाद में निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक है।
  • यह आरक्षण राज्य में केवल शिक्षा और सरकारी नौकरियों में लागू होगा एवं यह राजनीतिक आरक्षण में लागू नहीं होगा।

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