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Medaram Jathara: एशिया का सबसे बड़ा जनजाजिय उत्सव
तेलंगाना में एशिया का सबसे बड़ा जनजातीय उत्सव Medaram Jathara या सम्मक्का-सारलम्मा जतारा मेडाराम गांव में दो साल में एक बार माघसुधा पौर्नामी (माघ पूर्णिमा) को पारम्परिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मेदारम गाद्दे (Medaram Gaddhe) मंच पर सरलअम्मा (Saralamma) के आगमन के साथ इस उत्सव का शुभारम्भ हुआ।
मुख्य बिन्दु
- यह दिवार्षिक उत्सव Medaram Jathara, कुम्भ मेले के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा मेला है, जो तेलंगाना के दूसरे सबसे बड़े जनजातीय समुदाय कोया जनजाति द्वारा चार दिनों तक मनाया जाता है।
- दक्षिण भारत का कुम्भ मेला भी कहा जाता है क्योकि मेले में कुम्भ के बाद सबसे ज्यादा लोग इस उत्सव में आते है।
- एशिया का सबसे बड़ा जनजातिय मेला होने के नाते, Medaram Jathara देवी सम्माक्का (Goddesses Sammakka) और सरलम्मा के सम्मान में आयोजित किया जाता है। देवी सम्माक्का की बेटी का नाम सरलअम्मा था। उनकी प्रतिमा पूरे कर्मकाण्ड के साथ मेदाराम के निकट एक छोटे से गांव कान्नेपल्ली (kannepalli) के मन्दिर में स्थापित है।
- काका वाड्डे (कोया पुजारी) पहले दिन सरलअम्मा के प्रतीक चिहन (आदरेलु/पवित्र पात्र और बंडारू/हल्दी और केसर के चूरे का मिश्रण) को कान्नेपाल्ले से लाते है और मेदारम में गाद्दे पर स्थापित किया जाता है।
- पारम्परिक संगीत डोली जिसे ढोलक कहते हैं और अक्कुम यानि पीतल का मुह से बजाने वाला व तूता कोम्मू जिसे वाद्य यन्त्र और मंजीरा कहते हैं, की धुनों के बीच पूरा किया जाता है।
- जनश्रुतियों के अनुसार देवी सम्मक्का एवं उनकी पुत्री सारलम्मा, काकतीय राजाओं के खिलाफ मेडारम के पक्ष में युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुयी। उत्सव का इतिहास लगभग 900 साल पुराना है।
- Medaram Jathara की लोकप्रियता और शुभ महत्व के कारण, जथारा को 1996 में एक राज्य उत्सव के रूप में नामित किया गया था।
Medaram Jathara को सरकार का समर्थन
- Medaram Jathara उत्सव का आयोजन कोया जनजाति करती है। इसमें तेलंगाना सरकार का जनजातिय कल्याण विभाग सहयोग करता है।
कोया जनजाति
- कोया मुख्यतः दक्षिण भारत की जनजाति है जिसे कोइ, कोआदोरालु, कोयलू आदि नाम से भी जाना जाता है। ये लोग कोयी भाषा (द्रविड़ कुल की भाषा) बोलते हैं। तेलंगाना के आलावा ये लोग छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा और आन्ध्रप्रदेश में भी पाये जाते है। पोलावरम परियोजना के कारण कोया जनजाति का विस्थापन और पलायन बडी मात्रा हुया है।
- गोदावरी व सबरी नदियां कोया के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है।
- कोया जनजाति मुख्यतः स्थायी किसान है। वे ज्वार, रागी, बाजरा और अन्य मोटे अनाज उगाते हैं तथा बांस के सामान बनाने के कुशल कारीगर है।
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