यूरोपीय वाणिज्यिक कम्पनियों का आगमन

यूरोपीय वाणिज्यिक कंपनियों का भारत आगमन

  • मध्यकाल में भारत और यूरोप से व्यापारिक सम्बन्ध थे, ये व्यापार मुख्यतः भारत के पश्चिमी समुद तट से लाल सागर और पश्चिमी एशिया के माध्यम से होता था।
  • यह व्यापार मसालों और विलास की वस्तुओं से जुडा़ था । मसालों की आवश्यकता यूरोप में ठण्डी के दिनों में मांस को सुरक्षित रखने और उसकी उपयोगिता को बढ़ाने के लिए पड़ती थी ।
  • 1486 में पुर्तगली नाविक बाथोंलाम्यो ने उतमाशा अंतरीप तथा वास्कोडिगामा भारत 1498 में आया।

पुर्तगाली

  • प्रथम पुर्तगीज तथा प्रथम यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा 90 दिन की समुद्री यात्रा के बाद अब्दुल मनीक नामक गुजरती पथ-प्रदर्शक की सहायता से 1498 ई0 को कालीकट (भारत ) के समुद तट पर उतरा ।
  • कालीकट के शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया, लेकिन कालीकट के समुद तटों पर पहले से ही व्यापार कर रहे अरबों ने इसका विरोध किया ।
  • पुर्तगाली सामुदिक सामा्रज्य को एस्तादो द इण्डिया नाम दिया गया ।
  • पूर्वी जगत के कालीमिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने के उदेश्य से पुर्तगालियों ने 1503 ई0 में कोचीन (भारत) में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की ।
  • भारत में प्रथम पुर्तगाली वायसराय के रूप में फांसिस्को-डी-अल्मेडा (1505-1509) का आगमन हुआ ।
  • अल्फांसो डी अल्बुकर्क को भारत में “पुर्तगाली सार्माज्य का वास्तविक स्थापक” माना जाता है ।
  • अल्बुकर्क ने 1510 ई0 में बीजापंर के शासक आदिलशाह युसुफ से गोआ को छीना जो कालांतर में भारत में पुर्तगाीज व्यापारिक केन्द्रों राजधानी बनी ।
  • भारत आये पुर्तगाली वायसराय नीनू डी कुन्हा (1529-38 ई0) ने 1530 ई0 में कोचीन की जगह गोवा को राजधानी बनार्या
  • पुर्तगालियों ने कार्ट्ज-आर्मडा काफिला पद्वाति के द्वारा भारतीय तथा अरबी जहाजों को कार्ट्ज या परमिट के बिना अरब सागर में प्रवेश वर्जित कर दिया ।
  • 1632 ई0 में शाहजहाँ ने पुर्तगालियों के अधिकार से हुगली को छीन लिया था, औरंगजेब ने चटगांव के समुद्री लुटेरों का सफाया कर दिया था ।
  • पुर्तगालियों के साथ भारत में ‘गोथिक’ स्थापत्यकला का आगमन हुआ ।

डच

  • 1602 ई0 में डच (हालैण्ड) संसद द्वारा पारित प्रस्ताव से एक संयुक्त डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई, इस कंपनी को डच संसद द्वारा 21 वर्षो के लिए भारत और पूरब के देशों के साथ व्यापार करने, आक्रमण और विजयें करने के सम्बन्ध में अधिकार पत्र प्राप्त हुआ।
  • डच ईस्ट इंडिया कंपनी (Vereenigde Oost-Indische Compagnie-VOC) की आरम्भिक पूँजी जिससे उन्हें व्यापार करना था 6,500,000 गिल्डर थी।
  • भारत में शीघ्र ही वेरिगदे ओस्तू इंडिसे कंपनी ने मसाला व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया।
  • डचों ने 1605 ई0 में मुसलीपट्टम में प्रथम डच कारकखानें की स्थापना की
  • डचों और अंग्रेजों के बीच 1759 ई0 में लड़े गये बेदरा के युद्ध में भारत ने अंग्रेजी नौसेना की सर्वश्रेष्ठता को सिद्व करते हुए डचों की भारतीय व्यापार से अलग कर दिया।

अंग्रेज

  • 1599 ई0 में इंग्लैण्ड में एक मर्चेण्ट एडवेंचर्स नामक दल ने अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी अथवा ’दि गवर्नर एण्ड कम्पनी ऑफ मर्चेन्टस ऑफ ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडीज की स्थापना की।
  • दिसम्बर, 1600 ई0 में ब्रिटेन की महारानी एलितावेथ टेलर प्रथम ने ईस्ट इंडिया कंपनी को पूर्व के साथ व्यापार के लिए पन्द्रह वर्षो के लिए अधिकार पत्र प्रदान किया।
  • 1608 ई0 में इंग्लैण्ड के राज जेम्स प्रथम के दूत के रूप में कैप्टन हॉकिन्स सूरत पहुंचा, जहाँ से वह मुगल सम्राट जहांगीर से मिलने आगरा गया।
  • सम्राट जहांगीर हॉकिन्स के व्यवहार से प्रसन्न होकर उसे आगरा में बसने तथा 400 की मनसब एंव जागीर प्रदान किया और फिरंगी खां की उपाधि प्रदान की।
  • 6 फरवरी, 1613 ई0 को जारी एक शाही फरमान (जंहागीर की ओर से) द्वारा अंग्रेजों को सूरत में व्यापारिक कोठी स्थापित करने तथा मुगल राजदबार में एक एलची रखने की अनुमति प्राप्त की गई।
  • सर टॉमस रो ब्रिटेन के राजा जेम्स प्रथम के दूत के रूप में 18 सितम्बर, 1615 को सूरत पहुॅचा, 10 जनवरी, 1616 को ‘रो’ अजमेर में जहांगीर के दरबार में उपस्थित हुआ।
  • दक्षिण में ईस्ट इंडिया कंपनी से अपना पहला कारखाना 1611 ई0 में मसूलीपट्म और पेटापुली में स्थापित किया। जहां से स्थानीय बुरकरों द्वारा निर्मित वस्त्रों को कंपनी खरीद कर फारम और बंतम को नियात करता।
  • 1633 में पूर्वी तट पर अंग्रेजों ने अपना पहला कारखाना बालासोर और हरिहरपुरा में स्थापित किया।
  • 1639 में फ्रांसिस डे नामक अंग्रेज को चंदगिरी के राजा से मद्रास पट्टे पर हो गया। यहीं पर अंग्रेजों ने ‘फोर्ट सेंट जाज’ नामक किले की स्थापना ।
  • 1661 ई0 में पूर्तगालियों ने अपनी रजकुमारी कैथरीन ब्रेगांजा का ब्रिटेन के चार्ल्स द्वितीय से करके बम्बई को दहेज के रूप में दिया।
  • 1669 से 1677 तक बम्बई का गवर्नर गेराल्ड औंगियार ही वास्तव में बम्बई का महानतम् संस्थापक था।
  • विलियम हैजेज बंगाल का प्रथम अंग्रेज गवर्नर था।
  • मुगल सम्राट औरंगजेब और अंग्रेजों के बीच पहली भिडन्त 1686 में हुगली में हुई।
  • कंपनी को कालिकाता, गोविन्दपुर और सुतनाटी गांव की जमींदारी जमींदार इब्राहिम खां से मिली।
  • कालिकाता, गोविन्दपुर और सतनाटी को मिलाकर ही आधुनिक कालकत्ता की नींव जॉब चॉरनाक ने डाली। कालांतर में कलकत्ता में फोर्ट विलियम की नींव पड़ी।

फ्रांसीसी

  • लुई चौदहवें के मंत्री कॉलबर्ट द्वारा 1664 ई0 में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई, जिसे कम्पने देस इण्दसे ओरियंटलेस ब्वउचंहदपम कमेपदकमे व्तपमदजंसे कहा गया।
  • 1667 में फ्रेंसिस कैरो के नेतृत्व में एक अभियान दल भारत के लिए रवाना हुआ। जिसने 1668 में सूरत में अपने पहले व्यापारिक कारखाने को स्थापना की।
  • 1669 में मर्कारा ने गोलकुण्डा के सुल्तान से अनुमति प्राप्त कर मसुलीपट्नम में दूसरी फ्रेंच फैक्ट्री की स्थापना की
  • 1673 में कंपनी के निदेशक फ्रेंसिस मार्टिन ने वलिकोण्डापुर के सुबेदार शेरखां लोदी से पर्दुचुरी नामक एक गांव प्राप्त किया, जिसे कालांतर में पांडिचेरी के नाम से जाना गया।
  • डचों ने अंग्रेजों की सहायता से 1693 में पांडिचेरी को छिन लिया, लेकिन 1697 में सम्पन्न रिजविक की संधि के बाद पांडिचेरी पुनः फ्रांसीसियों को प्राप्त हो गया।
  • फ्रांसीसियों ने 1721 में मारीशस, 1724 में मालाबार में स्थित माही तथा 1739 में करिकाल पर अधिकार कर लिया।
  • अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच लडे गये युद्व को कर्नाटक युद्व के नाम से जाना गया। कोरोमण्डल समुद्र तट पर स्थित क्षेत्र जिसे कर्नाटक या कर्णाटक कहा जाता था पर अधिकार को लेकर इन दोनों कंपनियों में लगभग बीस वर्ष तक संघर्ष हुआ।
  • प्रथम कर्नाटक युद्व (1746-48) का तात्कालिक कारण था अंग्रेज कैप्टन बर्नेट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना द्वारा कुछ फ्रांसीसी जहाजों पर अधिकार कर लेना।
  • बदलंे में फ्रांसीसी गवर्नर (मारीशस) ला बूर्दने के सहयोग से डुप्ले ने मद्रास के गवर्नर मोर्स को आत्म समर्पण के लिए मजबूर कर दिया, इस समय अंग्रेज फांसीसियों के सामने बिल्कुल असहाय थे।
  • यूरोप में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच आस्ट्रिया में लड़े जा रहे उत्तराधिकार युद्व की समाप्ति हेतु 1740 में असक्सा-ला-शैपेल नामक संधि के सम्पन्न होने पर भारत में भी इन दोनों कंपनियों के बीच संघर्ष समाप्त हो गया। मद्रास पुनः अंग्रेजों को मिल गया।
  • द्वितीय कर्नाटक युद्व (1749-54 ई0) के समय कर्नाटक के नवाबी के पद को लेकर संघर्ष हुआ, चांदा साहब ने नवाबी के लिए डुप्ले का सहयोग प्राप्त किया, दूसरी ओर डुप्ले ने मुजफरजंग के लिए दक्कन की सूबेदारी का समर्थन किया।
  • अंग्रेजों ने अनवरूद्वीन और नासिरजंग को अपना समर्थन प्रदान किया।
  • दक्षिण भारत में फ्रासीसियों का प्रभाव चरम पर था इसी बीच राबर्ट क्लाइव जो इंग्लैण्ड से मद्रास एक किरानी के रूप में आया था, 1751 में 500 सिपाहियों के साथ धारवार पर धावा बोलकर कब्जा कर लिया। शीघ्र ही फ्रांसीसी सेना का आत्मसमर्पण हेतु विवश होना पड़ा और चांदा साहब को हत्या कर दी गई।
  • तृतीय कर्नाटक युद्व के अन्तर्गत अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बीच वाण्डिवाश नामक निर्णायक लड़ाई लड़ी गई।
  • 22 जनवरी, 1760 को लड़े गये वाण्डिवाश के युद्व में अंग्रेजों सेना को आयरकुट ने तथा फ्रांसीसी। युद्ध मंे फ्रांसीसी पराजित हुए।
  • 16 जनवरी, 1761 की पाण्डिचेरी पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
यूरोपीय व्यापारिक कंपनी से सम्बद्व व्यक्तित्व

·       वास्कोडिगामा-                              भारत आने वाला प्रथम यूरोपीय यात्रा।

·       पेड्रो अल्वारेज केब्राल-                      भारत आने वाला द्वितीय पुर्तगाली।

·       फ्रांसिस्को डि अल्मेडा-                      भारत का प्रथम पुर्तगाली गवर्नर।

·       जॉन मिल्डेन हाल-                          भारत आने वाला प्रथम ब्रिटिश नागरिक।

·       कैप्टन हॉकिन्स-                            प्रथम अंग्रेज दूत जिसने सम्राट जहांगीर से भेट की।

·       गैरोल्ड अंगियार-                          बुम्बई का वास्तविक संस्थापक।

·       जॉव चॉरनाक-                             कलकत्ता का संस्थापक।

·       चार्ल्स आयर-                              फोर्ट विलियम (कलकत्ता) का प्रथम प्रशासक।

·       विलियम नैरिस-                           1638 में स्थापित नई ब्रिटिश कंपनी ’ट्रेडिंग इन द ईस्ट का दूत जो व्यापारिक विशेषाधिकार हेतु औरंगजेब के दरबार में उपस्थित हुआ।

·       फैं्रको मार्टिन-                        पाण्डिचेरी का प्रथम फ्रांसीसी गवर्नर।

·       फ्रांसिस डे-                             मद्रास का संस्थापक।

·       शोभा सिंह-                              बर्दवान का जमींदार, 1690 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया

·       इब्राहिम खां-                              कलिकाता, गोविन्दपुर तथा सुतानटी का जमींदार।

·       जॉन सुरमन-                           मुगल सम्राट फर्रूखसियार से विशेष व्यापारिक सुविधा प्राप्त करने वालेे शिष्टमंडल का मुखिया।

·       फादर मानसरेट-                       अकबर के दरबार में पहुचने वाले प्रथम शिष्ट मंडल का अध्यन

·       कैरोनफैं्रक-                             भारत मंे प्रथम फ्रांसीसी फैक्ट्री की सूरत में स्थापना की।

महत्वपूर्ण तिथि

1498-       वास्कोडिगामा को भारत आगमन।

1500-       द्वितीय पुर्तगीज यात्री कैब्राल का भारत आगमन।

1501-       दूसरी बार वास्कोडिगाम भारत यात्रा पर आया।

1510-       गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार।

1530-       कोचीन की जगह गोआ पुर्तगालियों की राजधानी बनी।

1599-       ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना।

1602-       डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना।

1661-       पुर्तगीजों ने बम्बई को दहेज में ब्रिटेन के राज को दिया।

1664-       फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना।

1690-       जॉब चारनाक द्वारा कलकत्ता की स्थापना।

1759-      वेदरा का निर्णायक यु़द्व जिसमें अंग्रेजों ने डचों कोपराजित कर भारतीय व्यापार से बाहर किया।

1760-      वाण्डिवाश का निर्णायक युद्व जिसमें अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को पराजित कर भारतीय व्यापार से बाहर किया।

डेन

डेनमार्क की ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 1616 में हुई, इस कंपनी ने 1620 में त्रैंकोबार (तमिलनाडु) तथा 1676 ई0 में सेरापुर (बंगाल) ने अपनी व्यापारिक कंपनियां स्थापित की। सेरामपुर डेनों का प्रमुख व्यापाकि केन्द्र था।

  • 1845 में डेन लोगों ने अपनी भारतीय वाणिज्यिक कंपनी को अंग्रेजों को बेच दिया।
कम्पनी                      स्थापना वर्ष

एस्तादो द इंडिया- (पुर्तगीज कंपनी)                         1498

वेरिगदे ओस्त इण्डिशे कंपनी-                              1602

(डच ईस्ट इंडिया कंपनी)

ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी-                              1600 (1599)

कम्पने देस इ्ण्देस ओरियंतलेस-                          1664

डेन ईस्ट इंडिया कंपनी-                                    1616

  • यूरोपीय वाणिज्यिक कंपनियों का भारत आगमन क्रम इस प्रकार था- पुर्तगीज-डच-अंग्रेज-डेन-फा्रसीसी
  • भारत में पुर्तगाली सबसे पहले 1498 में आये और सबसे अंत में 1961 में वापस गये।

Do you know ? तारापुर नरसंहार

थमिराबरानी नदी सभ्यता

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