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मुगल साम्राज्य का पतन और स्वायत्त राज्यों का उदय
- 3 मार्च, 1707 को अहमदनगर में औरंगजेब की मृत्यु के बाद भारतीय इतिहास में एक नवीन युग का पदार्पण होता है जिसे “उत्तरोत्तर मुगलकाल” नाम से जाना जाता है।
- मुगल साम्राज्य का वह युग जिसमें शाही दरबार की तड़क-भड़क अमीर, उमराओं की साज सज्जा और ऐश्वर्य व्यापारियों की धन सम्पत्ति, विकसित हस्तकलाएॅ और ताजमहल जैसी भव्य इमारतों के कारण भारत में विश्व को चकाचौंध कर दिया था, औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गया।
- इतिहाकारों में मुगल साम्राज्य के पतन के कारणों को लेकर विवाद है। पतन कारणों के बारे में इतिहासकार दो गुटों में बटें है।
- पहला गुट जिसमें यदुनाथ सरकार, एस0 आर0 शर्मा, लीवर पुल जैसे इतिहासकार शामिल है, का मानना है कि औरंगजेब अपनी नीतियों-धार्मिक, राजपूत, दक्कन आदि के कारण मुगल साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार है।
- दूसरे गुट जिसमें सतीशचंद्र, इरफान हबीब, अतहर अली, शीरीन मूसवी आदि शामिल है, ने मुगल साम्राज्य के पतन को व्यापक सन्दर्भ में देखते हुए इसके बीज को बाबर के शासन काल में ही ढूंढ लिया है, इन इतिहासकारों ने मुगल साम्राज्य के पतन को दीर्घावधिक प्रक्रिया का परिणाम माना है।
- औरंगजेब ने अपने दक्कन के सैन्य अभियानों में व्यापक मात्रा में धन और जन को नष्ट किया साथ ही दक्कनी सैन्य अभियानों में व्यस्तता के कारण वह उत्तर भारत की ओर ध्यान नहीं दे सका, जो कालांतर में मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बना।
- 1. औरंगजेब अपनी राजपूत नीति से राजपूतों की निष्ठा से वंचित हो गया, उसे उन राजपूत रणबांकुरों की सेवा नहीं मिल सकी जिन्होंने मुगल साम्राज्य के वैभव को कभी उत्कर्ष पर पहुंचाया था।
- 2. मुगल दरबार में उमरावर्ग का बढ़ता हुआ प्रभाव और उनकी शासक निर्माता की छवि भी मुगल साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार है।
- 3. विशाल मुगल साम्राज्य के लिए एक स्थिर केन्द्रीय प्रशासन का अभाव भी साम्राज्य के पतन का कारण बना।
- 4. औरंगजेब की धार्मिक असहिष्णुता की नीति ने अकबर, जहांगीर, शाहजंहां के समय की धर्मनिरपेक्ष छवि को समाप्त कर दिया। औरंगजेब ने पुनः जजिया कर लगाकर, मंदिरों को तोड़ने का आदेश देकर अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति को गलत दिशा दिया परिणामस्वरूप मुगल साम्राज्य पतन के गर्त में पहुॅच गया।
- 5. मुगल साम्राज्य के पतन के लिए कुछ हद तक नादिरशाह, अहमदशाह के आक्रमण, यूरोपीय कंपनियों के आगमन को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात आने वाले बावन वर्षो में आठ सम्राटों ने दिल्ली के सिंहासन पर अधिकार जमाया।
- औंरगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों मुअज्जम, मुहम्मद आजम और मुहम्मद कामबख्श में उत्तराधिकार के लिए युद्व हुआ।
- औरंगजेब की नीतियों का प्रबल (सर्वाधिक) विरोधी उसका पुत्र शाहजादा अकबर पहले ही मार जा चुका था।
- औरंगजेब की मृत्यू के समय मुगल साम्राज्य में कुल 21 प्रांत थे, जिसमें मुअज्जम काबुल, आजम गुजरात और कामबख्श बीजापुर का सूबेदार था।
- जून, 1707 में मुअज्जम बहादुरशाह प्रथम की उपाधि के साथ दिल्ली के तख्त पर बैठा।
बहादुरशाह प्रथम (1707-1712 ई0)
- 65 वर्ष की अवस्था में सम्राट बना, बहादुरशाह प्रथम अपनी शांतिप्रिय नीति और मिलनसार स्वभाव के कारण शाही दरबार के अधिकाशं गुटों का सहयोग प्राप्त किया।
- बहादुरशाह ने मराठों और राजपूतों के प्रति मैत्रीपूर्ण नीति अपनायी। 1683 में इसने शम्भाजी के पुत्र शाहू को मुगल कैद से आजाद कर दिया
- बहादुरशाह ने औरंगजेब द्वारा लगाये गये घृणित जजिया कर की वसूली बंद करवा दी।
- सिक्ख नेता बंदाबहादुर के विरूद्व एक सैन्य अभियान के दौरान 27 फरवरी, 1712 ई0 को बहादुरशाह की मृत्यु हो गई।
- बंदा से पूर्व सिक्खों के दसवें गुरू गोविन्द सिंह को संतुष्ट करने के लिए बादशाह ने गुरू के सम्मान में खिलअत तथा उच्च मनसब प्रदान किया था।
- सर सिडनी ओवेन ने बहादुरशाह की मृत्यु पर कहा कि “यह अंतिम मुगल सम्राट था जिसके बोर में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते है। इसके पश्चात् मुगल साम्राज्य का तीव्रगामी और पूर्ण पतन मुगल सम्राटों की राजनैतिक तुच्छता और शक्तिहीनता का द्योतक था”
जहांदारशाह (1712-1713)
- उत्तराधिकार के युद्व में बहादुर के एक योग्य बेटे जहांदारशाह ने अपने भाई अजीम-उश-शान्, रफी-उश्शान तथा जहान शाह की हत्या कर मुगल सिंहासन को प्राप्त किया।
- जहांदारशाह ने आमेर के राजा सवाई जयसिंह को ‘मिर्जा’ की उपाधि के साथ मालवा का सूबेदार बनाया।
- बादशाह ने मारवाड़ के राजा अजीत सिंह को ‘महाराजा’ की उपाधि के गुजरात का सूबेदार बनाया।
फर्रूखसियर (1713-1719 ई0)
- फर्रूखसियर को मुगल सिंहासन सैयद बंधुओं-अब्दुल्ला खां और हुसैन अली खां बराहा के सहयोग से मिला।
- फर्रूखसियर की हत्या और मुहम्मदशाह के बादशाह बनने के बीच सैयद बन्धुओं ने रफीउद्दौला, रफीउद्दरजात को मुगल बादशह बनाया।
- रफीउद्दौला ‘शाहजहां द्वितीय’ की उपाधि के साथ मुगल राजसिहासन पर विराजमान हुआ।
मुहम्मदशाह (1719-1748 ई0)
- मुहम्दशाह के शासनकाल में ‘बंगाल (मुर्शीद कली खां), अवध (सआदतखा), हैदराबाद (निजामुल मुल्क), भरतपुर तथा मथुरा (बदनसिंह) तथा गगां-यमुना के दोआब में कटेहर रूहेलों के नेतृत्व में और फर्रूखाबाद के बंगश नावाबों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता की स्थापना की।
नादिरशाह का आक्रमण (1739 ई0)
- मुहम्मदशाह के शासन काल में फारस के नादिरशाह ने 1738-39 में भारत पर आक्रमण किया।
- नादिरशाह दिल्ली में कुल 57 दिन तक रहा और लगातार लूट-पाट करता रहा। इसने प्रसिद्व मुगल राजसिंहासन ‘तख्त-ए-ताऊस’ (शाहजाहॉ निर्मित) तथा मुगल ताज में लगे विश्व के सर्वाधिक मंहगे हीरे ‘कोहिनूर’ के वापस जाते समय अपने साथ ले गया।
- 1739 में वापसी के समय नादिरशाह ने तख्त-ए-ताऊस, कोहिनूर हीरा के साथ मुहम्मदशाह द्वारा तैयार करवायी गई हिन्दू संगीत को प्रसिद्ध चित्रित फारसी पांडुलिपि को भी अपने साथ ले गया।
- मुहम्मदशाह के ही शासन काल में नादिरशाह के उत्तराधिकारी अहमदशाह अब्दाली ने 1748 ई0 में भारत पर आक्रमण किया।
अहमदशाह (1748-1754)
- अहमदशाह ने अवध के सूवेदार सफदरजंग को अपना वजीर या प्रधानमंत्री नियुक्त किया। इसने हिजड़ों के सरदार जाबेद खां को ‘नवाब बहादुर’ की उपाधि प्रदान किया।
- भारत से वापस जाने से पूर्व अहमदशाह अब्दाली ने अपने द्वारा जीते ये भारतीय प्रदेशों को सबेदारी रूहेला सरदार नजीबुद्वौला को सौंप दिया जो मुगल सम्राज्य का मीरबख्शी था।
आलमगीर द्वितीय (1754-1759 ई0)
- आलमगीर द्वितीय अपने वजीर इमादुलमुल्क का कठपुतली शासक था। इमाद ने 29 नवम्बर, 1759 को बादशाह की हत्या कर दी।
शहआलम द्वितीय (1759-1806 ई0)
- शाहआलम द्वितीय और उसके उत्तराधिकारी केवल नाम मात्र के ही सम्राट थे और अपने अमीरों, मराठों अथवा अंग्रेजों के हाथ की कठपुतलियां थे।
- शाहआलम द्वितीय 1764 ई0 में अग्रेजों के विरूद्ध लडे गये निर्णायक बक्सर के युद्व में बंगाल के अपदस्थ नबाब मीरकासिम का साथ दिया, इस युद्व में कासिम की ओर से अवध के नबाब सुजाउद्दौला ने भी हिस्सा लिया।
- बक्सर के युद्व में अंग्रेजों से पराजित होने के बाद शाहआलम द्वितीय को 1765 ई0 ईस्ट इंडिया कंपनी से इलाहाबाद की संधि करनी पड़ी।
- 1772 ई0 में मराठा सरदार महाद्जी सिंधिया ने पेंशनभोगी शाहआलम द्वितीय को एक बार फिर राजधानी दिल्ली के मुगल सिंहासन पर बैठाया ।
- 1780 में रूहेला सरदार गुलाम कादिर ने सम्राट को अंधा कर दिया तथा 1806 में शाहआलम की हत्या कर दी गई
- शाहआलम द्वितीय के समय में दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार (1803 ई0) हो गया ।
- शाहआलम द्वितीय की मृत्यृ के बाद उसका पु़त्र अकबर द्वितीय (1806-1837ई0) अंतिम मुगल सम्राट हुआ ।
- अकबर द्वितीय अंग्रेजो की संरक्षण में बनने वाला प्रथम मुगल बादशाह था।
- 1837 ई0 में अकबर द्वितीय की मृत्यु के बाद बहादुरशाह द्वितीय (1837-1862 ई0) अन्तिम मुगल सम्राट हुआ।
- बहादुरशाह द्वितीय ‘जफर’ के उपनाम से शायरी लिखा करते थे ।
- 1857 के विद्रोह में विद्रोहियों का साथ देने के कारण अंग्रेज सरकार ने इन्हें गिरफ्तार कर रंगून निर्वासित कर दिया जहां 1862 ई0 अंतिम मुगल सम्राट की मृत्यृ हो गई ।
नवीन स्वायत राज्य (अठारहवीं शताब्दी)
- मुुगल सामा्रज्य के पतन के बाद उभारने वाले स्वायत राज्य थे-अवध, मैसूर, पंजाब, हैदराबाद, रूहेलखण्ड, राजपूत, मराठे, कर्नाटक आदि
अवध
- अवध स्वतन्त्रता की घोषणा 1722 ई0 में सआदत खां बुरहान मुल्क ने की।
- सआदत के बाद उसका भतीजा तथा दामाद सफदरजंग (अबुल मंसूर खां) अवध का नवाब बना।
- सफदर, के बाद उसका उत्तराधिकारी उसका पुत्र शुजाउद्दौला बना इसने 1759 ई0 में अलीगौहर (मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय) को लखनऊ में शरण दी।
- 1761 ई0 में लड़े गये पानीपत के तृतीय युद्व में शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया।
- अंग्रेजों और बंगाल के अपदस्थ नबाब मीरकासिम के बीच लड़े गये ‘बक्सर के युद्व’ (1764 ई0) में शुजाउद्दौला ने बंगाल के नबाब का साथ दिया।
- अवध का अगला नवाब सआदतखां (1738-1814ई0) हुआ, जिसने अंग्रेजों से सहायक संधि कर ली । अंग्रेजों ने अवध को तब तक एक मध्यवती राज्य (Buffer State) के रूप में प्रयोग किया, जब तक कि उनका मराठों पर पूर्ण नियंत्रण नहीं हो गया ।
- अवध का अंतिम नवाब वाजिद अलीशाह (1847-1856) इसी के शासनकाल में अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर 1856 ई0 में ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।
हैदराबाद
- हैदराबाद में स्वतंत्र आसफजाही वंश की स्थापना मुहम्मदशाह (मुगल बादशाह) द्वारा दक्कन में नियुक्त सुबेदार चिनकिलिच खां (निजामुलमुल्क) ने 1724 ई0 में की।
- हैदारबाद भारतीय राज्यों में ऐसा प्रथम राज्य था जिसने वेलजली की सहायक संधि के तहत् एक आश्रित सेना रखना स्वीकार किया
कर्नाटक
- स्वतंत्र कर्नाटक राज्य का संस्थापक सादतुल्ला खां को माना जाता है। इसने आरकाट को अपनी राजधानी बनाया।
राजपूत
- अठारहवां शताब्दी के राजपूत शासकों में संवाई राजा मिर्जा जयसिंह का स्थान सर्वोपरि है। इन्होंने विज्ञान और कला के महान केन्द्र के रूप में जयपुर की स्थापना की
- संवाई राजा जयसिंह कुशल शासक होने के साथ-साथ महान विधिवेत्ता खगोलशास्त्री, नगर-नियोजक, नगर संस्थापक एवं वैज्ञानिक था।
- आमेर के राजा जयसिंह को मिर्जा राजा संवाई की उपाधि मुगल बादशाह जहांदारशाह ने दी थी।
- जयसिंह ने मथुरा, उज्जैन, जयपुर, वाराणसी और दिल्ली में आधुनिक उपकरणों से युक्त वेधशालाओं का निर्माण कराया।
- आमेर के राजा जयसिंह को अपने शासन काल में दो अश्वमेध यज्ञ करवाने का भी श्रेय दिया जाता है।
भरतपुर
- भरतपुर में स्वतन्त्र जाट की राज्य की स्थापना चूड़ामन एवं बदनसिंह ने की थी।
मैसूर
- तालीकोटा का निमर्णायक युद्व जिसने विजयनगर साम्राज्य का अंत कर दिया, के अवशेष पर जिन स्वतंत्र राज्यों का जन्म हुआ, उनमें मैसूर एक प्रमुख राज्य था।
- 1749 ई0 में नंजराज जो मैसूर राज्य में राजस्व और वित्त नियंत्रक था ने हैदरअली को उसके अधिकारी सैनिक जीवन को शुरू करने का अवसर दिया।
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्व (1767-69 ई0)
- यह युद्व अंग्रेजों की आक्रामक नीति का परिणाम था। हैदरअली ने को करारा जवाब देने के उद्वेश्य से मराठे तथा निजाम से संधि कर एक संयुक्त सैनिक मोर्चा बनाया।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्व (1780-84 ई0)
- 1782 ई0 में हैदर एक बार फिर अंग्रेजी सेना पराजित करने में सफल हुआ, लेकिन युद्व क्षेत्र में घायल हो जाने के कारण 7 दिसम्बर, 1782 को हैदरअली की मृत्यू हो गई।
- 1784 ई0 तक टीपू ने द्वितीय युद्व को जारी रखा, अन्ततः दोनो पक्षों में मंगलौर की संधि सम्पन्न हो गई, जिसके तहत दोनों पक्षों ने एक दूसरे के जीते हुए प्रदेशों को वापस कर दिया।
टीपू सुल्तान (1782-1799 ई0)
- टीपू 1782 में अपने पिता हैदरअली की मृत्यू के बाद मैसूर की गद्दी पर बैठा, राजनीतिक दूरदर्शिता में यह अपने पिता हैदर के समकक्ष ही ठहरता था।
- टीपू प्रथम भारतीय शासक था जिसने अपने प्रशासनिक व्यवस्था में पाश्चात्य प्रशासनिक व्यवस्था का मित्रण किया।
- फ्रांसीसी क्रंाति से प्रभावित टीपू ने श्रीरंगपट्टनम में ‘जैकोबिन क्लब, की स्थापना की और उसका सदस्य बना।
- टीपू ने अपनी राजधानी में फ्रांस और मैसूर के मैत्री का प्रतीक ‘स्वतंत्रता का वृक्ष’ रोपा।
- टीपू सुल्तान ने अपने समकालीन विदेशी राज्यों से मैत्री सम्बन्ध बनाने तथा अंग्रेजों के विरूद्व उनकी सहायता प्राप्त करने के उद्ेश्य से अरब कुस्तुनतुनिया अथवा वार्साय काबुल और मॉरीशस को दु्रतमण्डल भेजा।
तृतीय आंगल मैसूर युद्व (1790-92 ई0)
- अंग्रेजों ने मराठों और निजाम के सहयोग से श्रीरंगपट्टनम् पर आक्रमण किया। मिडोज के नेतृत्व में टीपू पराजित हुआ।
- फरवरी 1792 में तत्कालीन गवर्नर-जनरल कार्नवालिस ने टीपू के श्रीरंगपट्टनम स्थित किले को घेरकर उसे संधि के लिए मजबूर किया।
- अंग्रेजों और टीपू के बीच मार्च 1792 मं श्रीरंगपट्टनम की संधि सम्पन्न हुई।
चतुर्थ आंगल मैसूर युद्व (1799 ई0)
- युद्व के समय टीपू ने अंग्रेजों से मुकाबले के लिए अन्तर्राष्टीय सहयोग लेने की दिशा में प्रयास किया, इसने नेपोलियन से भी पत्र व्यवहार किया।
पंजाब
- मुगलकाल में समृद्व और उपजाऊ पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर थी।
- सिक्खों के दसवें तथा अंतिम गुरू गोविन्द सिंह जी ने 1699 ई0 में व्यक्तिगत गुरूत्व के सिद्वान्त को खत्म कर खालसा की स्थापना की, जिसके कारण सिक्खों को विशिष्ट वेषभूषा केश, कंघा, कृपाण, कड़ा, कच्छ आदि धारण करना होता था।
- गुरू गोविन्द की मृत्यू के बाद गुुरू की परम्परा समाप्त हो गई। उसके शिष्य बंदाबहादुर ने सिक्खों का नेतृत्व संभाला।
- बंदाबहादुर जिसका बचपन का नाम लक्ष्मणदेव था, ने पंजाब के सिक्ख किसानों को एकत्र कर मुगलों से लगातार आठ वर्ष (1707 से 1715) तक संघर्ष किया तथा सिक्खों को दुर्जेय शाक्ति बनाया।
- जस्सी सिंह के नेतृत्व में ही दल खालसा 12 स्वतंत्र मिसल या जत्थों में विभाजित हो गया।
- अफगान आक्रमण तथा मुगल सुबेदारों के अत्याचारों के कारण उस समय पंजाब में अव्यवस्था की स्थिति थी, दल खालसा ने अव्यवस्था की स्थिति को समाप्त करने का उद्देश्य से 1753 में राखी प्रथा आंरभ की ।
- ‘राखी प्रथा’ के अन्तर्गत प्रत्येक गांव के उपज का 1/5 भाग लेकर दल खालसा उसकी सुरक्षा का प्रबंध करता था, इस प्रणाली द्वारा ही सिक्खों का राजनीतिक शक्ति के रूप में विकास हुआ।
बाहर सिक्ख मिसलें
मिसल नेता/संस्थापक अहलूवालिया मिसल जस्सा सिंह सुकरचकिया मिसल चरत सिंह सिंहपुरिया मिसल नवाब कपूर सिंह भंगी मिसल छज्जा सिंह फुलकियां मिसल संधू जाट चौधरी रामगढ़िया मिसल जस्सा सिंह रामगढ़िया कन्हैया मिसल जयसिंह शहीद मिसल बाबा दीप सिंह नकी मिसल हीरा सिंह बुले वालिया मिसल गुलाब सिंह निशानवालिया मिसल सरदार संगतसिंह करोड़ खिधिंया मिसल भगेल सिंह |
- आधुनिक पंजाब के निर्माण का श्रेय सुरकचकिया मिसल को दिया जाता है, इसी मिसल में रणजीत सिंह का जन्म हुआ।
- सिक्खों ने 1764 में पंजाब से अफगान आक्रमणकारियों के प्रभाव को खत्म कर देग, तेग और फतेह मुद्रा लेख युक्त यु़द्व चॉदी के सिक्के का प्रचलन करवाये जो पंजाब में सिक्ख प्रभुता के प्रथम उद्घोंषक माने जाते है।
रणजीत सिंह और पंजाब (1792-1839 ई0)
- काबुल के शासक जमनशाह (अब्दाली का पुत्र) ने रणजीत सिंह को उसकी महत्वपूर्ण सैन्य सेवाओं के लिए 1798 में राज की उपाधि प्रदान की और लाहौर की सूबेदारी सौंपी, लेकिन रणजीत सिंह ने 1801 ई0 में खुद को पंजाब का महाराजा घोषित कर दिया।
- 1799 से 1805 के बीच रणजीत सिंह ने भंगी सिमल के अधिकार से लाहौर और अमृतसर को छीन कर लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।
- महाराजा रणजीत सिंह का अंग्र्रेजो से सीधा टकराव हुआ। 1806 ई0 में उन्होने अंग्रेजो से एक सन्धि के तहत पंजाब से मराठा शक्ति को निष्कासित किया।
- अंग्रेजों तथा विरोधी सिक्ख राज्यों के भय के कारण रणजीत सिंह ने 1809 ई0 में लार्ड मिंटो के दूत चार्ल्स मेटकाफ से ‘अमृतसर की संधि’ कर ली। सन्धि से रणजीत सिंह ने सतलुज नदी को अपनी पूर्वी सीमा के रूप में स्वीकार किया।
- 1809 ई0 में महाराजा रणजीत सिंह ने हिमााचल में कांगड़ा के राजा संसार चंद की मदद की तथा गोरखा शक्ति को हराकार कांगड़ा को अपने राज्य में मिला लिया।
- उत्तर-पश्चिम में अपने राज्य का विस्तार करते हुए रणजीत सिंह ने 1818 में मुल्तान, 1819 ई0 में कश्मीर तथा 1823 में पेशावर पर अधिकार कर लिया।
- राजा रणजीतसिंह को अफगान शासक शाहसुजा से ही वह प्रसिद्व कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ जिसे नादिरशाह लाल किले से लुटकर ले गया था।
- सिक्ख सेनापति हरिसिंह नलवा ने जमरूद तथा पेशावर को अपने कब्जे में छीन लिया।
- अफगानस्तिान में रूस के हस्तक्षेप से चिंतित ईस्ट इंडिया कंपनी से मुहम्मद को हटा कर शाहशुजा को काबुल का शासक बनाया तभी एक त्रिपक्षीय संधि (1838 में शाहशुजा, रणजीत सिंह और) जिसके द्वारा ब्रिटिश सेना को पंजाब से गुजरने का अवसर प्राप्त हो गया। में
- 27 जून, 1839 को रणजीत सिंह की मृत्यू हो गई।
प्रशासन
- राजा रणजीत सिंह की स्थायी सेना ‘फौज-ए-आइन’ के नाम से जानी जाती थी।
- रणजीत सिंह ने लाहौर में तोपनिर्माण का कारखाना खोला, जिसमें मुस्लिम तोपची नौकरी पर रखे गये।
- रणजीत सिंह भारत के प्रथम शासक थे जिन्होने सहायक संधि को अस्वीकार कर अंग्रेजों के समक्ष समर्पण नहीं किया।
- प्रथम आंग्ल-सिख युद्व (1845-46) के समय अंग्रेजी सेना ने लाहौर पर अधिकार कर लिया। लार्ड हार्डिग्ज गवर्नर-जनरल तथा लार्ड गफ यु़द्व के समय भारत के प्रधान सेनापति थे।
- लाहौर की संधि 8 मार्च, 1864 को सम्पन्न हुई। इस संधि को शर्तो के अनुसार सिक्खों ने सतलज नदी के दक्षिणी ओर के सभी प्रदेशों को अंग्रेजों को सौंप दिया।
- द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्व (1848-49) का तात्कालिक कारण था-मुल्तान के सूबेदार मूलराज का विद्रोह, मूलराज शेरसिंह और छत्तर सिंह ने पंजाब को ब्रिटिश प्रभाव से मुक्त कराने के लिए विद्रोह किया।
- चिलियानवाला युद्व जो 13 जनवरी, 1849 ई0 को लड़ा गया, में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व लार्ड गफ ने किया, सिक्ख सेना शेर सिंह के नेतृत्व में लड़ी , यह युद्व अनिर्णीत समाप्त हुआ।
- द्वितीय आंगल – सिख युद्व के समय के गवर्नर -जनरल लार्ड डलहौजी थे । डलहौजी ने चिलियानवाला युद्व के परिणाम के बारे में कहा कि “हमने भारी खर्च उठाकर एक ऐसी विजय प्राप्त की है ,जो पराजय के बराबर है ।“
- युद्व के बाद डलहौजी ने गफ के स्थान पर चार्ल्स नेपियर को प्रधान सेनापति बनाया । नेपियर ने सिक्ख सेना को 21 फरवरी, 1849 को ‘गुजरात युद्व’ में बुरी तरह पराजित किया ।
- गुजरत के युद्व को ‘तोपों के युद्व’ के नाम से भी जाना जाता है । इस युद्व को जीतने के बाद हेनरी लारेंस, लार्ड एलनबरो की इच्छा के विरूद्व डलहौजी ने 30 मार्च, 1949 को चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।
बंगाल
- मुगल कालीन सूबों में बंगाल सबसे धनी प्रांत था अपनी समृद्वि और राजधानी दिल्ली से दूरी के कारण यहां के शासक प्रायः केन्द्रिय सता के विरूद्व विद्रोह करते रहते थे ।
- औरंगजेब की मृत्यु के बाद बंगाल मुर्शीदकंली खां के नेतृत्व में पूर्ण स्वतंत्र हो गया । 1701 ई0 में मुर्शीद को औरंगजेब ने बंगाल को सूबेदार नियुत्क किया था ।
- बंगाल का अगला नवाब अलीवर्दी खां (1740 से 1756ई0) हुआ, जो बंगााल का अंतिम शाक्तिशाली नवाब सिद्व हुआ