गुरू तेग बहादुर (Guru Teg Bahadur)

 Guru Teg Bahadur: सिखों के नौवें गुरू

  • मुगलों द्वारा जबरन धर्मान्तरण के खिलाफ होने वाले 9वें सिख Guru Teg Bahadur का जन्म 21 अप्रैल, 1621 को अृमतसर में माता नानकी और छठे सिख गुरू गुरू हरगोविन्द के यहां हुआ था, जिन्होंने मुगल के खिलाफ सेना खड़ी की और योद्धा सन्तों का अवधारणा पेश की।

Guru Teg Bahadur के बारे में

  • किशोरावस्था में, Guru Teg Bahadur को उनके सन्यासी स्वभाव के कारण ‘त्याग मल’ कहा जाता था।
  • उन्होंने अपना प्रारम्भिक बचपन भाई गुरूदास के संरक्षण में अमृतसर में बिताया¸ जिन्होंने उन्हें गुरूमुखी, हिन्दी, संस्कृत और भारतीय धार्मिक दर्शन सिखाया, जबकि बाबा बुद्ध ने उन्हें तलवार बाजी, तींरदाजी और घुड़सवारी का भी प्रशिक्षण दिया।
  • 13 वर्ष की उम्र में एक मुगल सरदार के खिलाफ लड़ाई में उनकी बहादुरी और तलवारबाजी ने उन्हें तेग बहादुर का नाम दिया।
  • गुरू के रूप में उनका कार्यकाल 1665 से 1675 तक चला। उनके एक सौ पन्द्रह भजन गुरू ग्रन्थ साहिब में है।

Guru Teg Bahadur की शहादत

  • मुगल शासन के आदेश को नकारने और उसकी अवेहलना करने के कारण वर्ष 1675 में दिल्ली में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर सार्वजनिक रूप से उनकी हत्या कर दी गई।
  • औरंगजेब के शासन के दौरान, उन्होंने सिख, हिन्दुओं और कश्मीरी पण्डितों के इस्लाम में जबरन धर्मांन्तरण का विरोध किया था।
  • 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा, पर गुरू साहब ने कहा सीस कटा सकते हैं, केश नहीं।

“धरम हेत साका जिनि कीआ

सीस दीआ पर सिरड न दीआ।“

-एक सिख स्त्रोत से

  • दिल्ली में गुरूद्वारा सीस गंज साहिब और गुरूद्वारा रकाब गंज साहिब गुरू तेगबहादुर की शहादत को दर्शाते हैं। दिल्ली के चादनी चौक में स्थित गुरूद्वारा सीस गंज साहिब उस जगह पर बनाया गया है, जहां उनकी हत्या की गई थी। वहीं गुरूद्वारा रकाबगंज साहिब में उनके पार्थिव शरीर का अन्तिम संस्कार हुआ था|
  • Guru Teg Bahadur की शहादत का प्रभाव

  • उनकी शहादत ने धार्मिक दमन और उत्पीड़न के खिलाफ सिखों के संकल्प को मजबूत किया।
  • गुरू तेगबहादुर साहब का धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धान्त की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में उनका स्थान विश्व इतिहास में अद्वितीय है।
  • उनकी शहादत ने मानवाधिकारों की सुरक्षा को सिख पहचान का केन्द-बिन्दु बनाने में सभी सिख पंथो का मजबूत करने में मदद की।
  • उनसे प्रेरित होकर, उनके नौ वर्षीय बेटे, गुरू गोबिन्द सिंह जी ने अन्ततः सिख समूह को एक विशिष्ट, औपचारिक, प्रतीक-पैटर्न वाले समुदाय में संगठित किया, जिसे खालसा (मार्शल) पहचान के रूप में जाना जाने लगा। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के नोएल किंग के शब्दों में, “गुरू तेगबहादुर की शहादत दुनिया में मानवाधिकारों के लिए हुई पहली शहादत थी”।
  • गुरू तेगबहादुर जी को प्यार से “हिन्द दी चादर” के रूप में याद किया जाता है।

गुरू जी का 400 वाँ प्रकाश पर्व

गुरू जी के जन्म की 400वीं जयन्ती 21 अप्रैल, 2022 को विशेष के रूप में मनायी गयी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली के लाल किले में Guru Teg Bahadur जी के 400वें प्रकाश पर्व के समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री जी एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किया। देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से आये रागी और बच्चों ने ‘शबद कीर्तन’ प्रस्तुत किया, जिसे प्रधानमंत्री ने गौर से सुना।

अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री जी कहा कि उस समय भारत को अपनी पहचान बचाने के लिए एक बडी उम्मीद Guru Teg Bahadur साहब के रूप में दिखी थी। औरंगजेब की धार्मिक उन्मादी सोच के सामने उस समय गुरू तेग बहादुर साहब जी¸ हिन्द दी चादर बनकर एक चट्टान बनकर खडे हो गये। औरंगजेब और उनके अत्याचारियों ने भले ही अनेकों सिर को धड़ से अलग करा गया हो लेकिन वह हमारी आस्था को हमसे अलग नहीं कर सके। गुरू तेगबहादुर जी के बलिदान ने, भारत की अनेक पीढ़ियों को अपनी संस्कृति की मर्यादा की रक्षा के लिए, उसके सम्मान के लिए जीने और मर-मिट जाने की प्रेरणा दी। बड़ी-बड़ी सत्ताएँ मिट गई, बडे-बडे तूफान शान्त हो गए पर आज भी भारत अमर खडा है, आगे बढ़ रहा है।

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गुरू तेग बहादुर सहाब
वैदिक संस्कृति और अस्मिता के रक्षकः गुरू तेग बहादुर सहाब

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