Tarapur Massacre

Tarapur Massacre

15 फरवरी 1931 को युवा स्वतन्त्रता सेनानियों के एक समूह ने तारापुर के थाना भवन में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने की योजना बनाई।

  • पुलिस को योजना की जानकारी थी, और कई अधिकारी मौके पर मौजूद थे, यहां तक कि पुलिस ने क्रूर लाठीचार्ज किया, परन्तु फिर भी एक स्वतन्त्रता सेनानी गोपाल सिंह थाना भवन में झण्डा फहराने में सफल रहें ।
  • 4000 लोगों की भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया, जिसमें नागरिक प्रशासन का एक अधिकारी घायल हो गया।जबावी कार्यसवाही में पुलिस ने भीड़ पर अंधाधुंध गोली चलाई।
  • करीब 34 स्वतन्त्रता सेनानी मौके पर ही शहीद हो गए, हालांकि ऐसा माना जाता है कि Tarapur Massacre में इससे कहीं अधिक बड़ी संख्या में स्वतन्त्रता सेनानी शहीद हुए।

Tarapur Massacre की पृष्ठभूमि

  • 29 मार्च, 1931 को लाहौर में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फांसी से पूरे देश में शोक और आक्रोश की लहर दौड़ गई।
  • गांधी-इरविन सन्धि के पतन के बाद, महात्मा गांधी को 1932 की शुरूआत में गिरफ्तार कर लिया गया तथा कांग्रेस को एक अवैध संगठन घोषित किया गया और नेहरू, पटेल एंव राजेन्द्र प्रसाद को भी जेल में डाल दिया गया।
  • मुंगेर में, स्वतन्त्रता सेनाना श्रीकृष्ण सिंह, नेमधारी सिंह, निरापद मुखर्जी, पंडित दशरथ झा, दीनानाथ सहाय, जयमंगल शास्त्री और बासुकीनाथ को गिरफ्तार कर लिया गया।
  • मुंगेर में स्वतन्त्रता सेनानियों के लिए गतिविधि को दो केन्द्र थेः-तारापुर के पास ढोल पहाड़ी और संग्रामपुर में सुपौर-जमुआ गांव। इसके बाद कांग्रेस नेता सरदार शार्दुल सिंह कविश्वर ने तारापुर में सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने का आहृवान किया।
  • Tarapur Massacre के स्वतन्त्रता सेनानियों को उनका हक कभी नहीं मिला, जबकि तारापुर में घटित यह नरसंहार ब्रिटिश पुलिस द्वारा 1919 अमृतसर के जलियांवाला बाग में किए गय नरसंहार के बादी सबसे बडा हत्याकाण्ड था।

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