Revolt of 1857

1857 का विद्रोह (Revolt of 1857)

  • भारत में अग्रेजी नीति के विरूद्व पनप रहे असन्तोष का शायद शासक वर्ग को पूर्वाभास हो चुका था इसलिए कभी कैनिंग ने यह आशंका व्यक्त की थी कि “हमें यह कदाचित नहीं भूलना चाहिए कि भारत के इस शांत आकाश में कभी भी एक छोटी सी बदली उत्पन्न हो सकती है जिसका आकार पहले तो मनुष्य की हथेली से बड़ा नहीं होगा, किन्तु जो उत्तरोत्तर विराट रूप धारण करके अंत में वृष्टिस्फोट के द्वारा हमारी बर्बादी का कारण बन सकती है।“
  • Revolt of 1857 के फूटने से पूर्व ही भारत में कई स्थानों पर विद्रोह के स्वर फूटने लगे थे जो इस प्रकार है-

1    1764 में बक्सर के युद्व के समय हैक्टर मुनरों के नेतृत्व में लड़ रही सेना के कुछ सिपाही विद्रोह का मीरकासिम से मिल गये।

2    18060 में बेल्लोरमठ में कुछ भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों द्वारा अपने सामाजिक, धार्मिक रीति रिवाजों में हस्तक्षेप के कारण विद्रोह कर मैसूर के राजा का झण्डा फहराया।

3    1842 में वर्मा युद्व के लिए भेजी जाने वाली ब्रिटिश भारत की सेना की 47वीं पैदल सैन्य टुकड़ी के कुछ सिपाही उचित भत्ता न मिलने के कारण विद्रोह कर दिया।

4    1825 में असम स्थित तोपखाने में विद्रोह हुआ।

5    1844 अभाव में सिंध के सैन्य अभियान पर जाने से इंकार कर दिया।

6    1849-50 में पंजाब स्थित गोविन्दगढ़ की एक रेजिमेंट विद्रोह पर  आई।

विद्रोह के कारण

  • परन्तु आधुनिक खोज से बात करीब-करीब सिद्व हो जाती है कि सैनिक असन्तोश के लिए चरबीयुक्त कारतूस तो एक मात्र कारण है न सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण।
  • Revolt of 1857 को जन्म देने वाले कारणों में राजनैतिक समाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक सभी कारण जिम्मेदार है।
  • श्राजनीतिक कारणों में डलहौजी की ‘व्यपगत नीति’ और वेलेजली की ‘सहायक संधि’ का विद्रोह को जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिाका रही।
  • डलहौजी ने अपने व्यपगत नीति द्वारा जैतपुर, सम्भलपुर, झांसी, नागपुर आदि राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य के विलय कर लिया। साथ ही अवध के नवाब की गददी से उतार दिया, भूतपूर्व पेशवा की पेंशन जब्त कर ली, यह सब कारण व्यापक असन्तोष फैलाने के लिए पर्याप्त था।
  • डलहौजी ने तंजौर और कर्नाटक के नवाबोें की राजकीय उपाधियां जब्त कर ली, मुगल बादशाह को अपमानित करने के लिए उन्हें नजर देना, सिक्कों पर नाम खुदवाना आदि परम्परा को डलहौजी ने समाप्त करवा दिया, साथ्ज्ञ ही बादशाह को लाल किला छोड़कर कुतुबमीनार में रहने का आदेश दिया।
  • मुगल बादशाह चूॅकि भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करता था इसलिए उसके अपमान में जनता ने अपना अपमान महसूस किया और विद्रोह के लिए मजबूर हुए।
  • राजनीतिक कारणों के साथ ही प्रशासनिक राजनीतिक कारण भी विद्रोह के लिए जिम्मेदार थे। प्रशासनिक कार्यो में भारतीयों की भागीदारी जातीय श्रेष्ठ पर आधारित थी। कोई भी भारतीय सूबेदार से ऊचें पद तक नहीं पहुंच पता था, न्यायिक क्षेत्र में अंग्रेजों को हर स्तर पर भारतीयों से श्रेष्ठ माना गया।
  • प्लासी के युद्व के बाद निरन्तर भारत का शोषण होता रहा जो शायद जन असन्तोष का सबसे महत्वपूर्ण कारण था।
  • आर्थिक शोषण और उसके पारम्परिक आर्थिक ढ़ाचे का पूर्णतया विनाश किसानों, दस्तकारों और हस्तशिल्पकारों तथा बड़ी संख्या में परम्परागत जमींदारों को दरिद्र बना दिया।
  • ब्रिटिश भू और भू-राजस्व नीतिया कानून तथा प्रशासन की प्रणालियों ने बड़ी संख्या में किसानों और जमीेदारों की भूमि को उनके अधिकार से अलग कर दिया।
  • जमीदारों और किसनोें का उत्पीड़न तथा उनसे बड़ी मात्रा में धन की उगाही आदि ऐसे कारण थे जिन्होने असन्तोष को जन्म दिया, परिणामस्वरूप विद्रेाह की भूमिका बनी।
  • Revolt of 1857 के सैनिक कारणोें में अनेक ऐसे कारण थे जिन्होेंने इस विद्रोह पृष्ठभूमि तैयार की। अंग्रेजी सेना में कार्यरत भारतीय सैनिक में अधिकांश कनिष्ठ अफसर थे, उन्हें पदोन्नति का कोई फायदा नहीं जाता था।
  • पदोन्नति से वंचित, वेतन की न्यून मात्र भारत की सीमाओं से बाहर युद्व के लिए भेजा जाना तथा समुदाय भत्ता न देना आदि ऐसे कारण थे जिन्होंने भारतीय सैनिकों में असन्तोष को जन्म दिया और वे विद्रोह के लिए विवश हुए।
  • चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग को Revolt of 1857 का तात्कालिक कारण माना जाता है।

Revolt of 1857 की योजना

  • कुछ इतिहासकार मानते हैं कि नाना साहब (धुन्धू पंत) के निकटस्थ अजीमुल्लाखां तथा सतारा के अपदस्थ राजा के निकटवर्ती रणोजी बापू ने लंदन में विद्रोह की योजना बनाई
  • अजीमुल्ला ने बिठुर (कानपुर) में नाना साहब के साथ मिलकर विद्रोह की योजना को अंतिम रूप देते हुए 31 मई, 1857 को क्रांति का दिन निश्चित किया।
  • क्रांति के प्रतीक के रूप में कमल और रोटी को चुना गया। कमल के फूल को उन सभी सैन्य टुकड़ियों तक पहुंचाया गया जो विद्रेाह में शामिल थी तथा रोटी की एक गांव तक पहुंचाता था।

घटनाक्रम

  • चर्बीयुक्त कारतूसों के प्रयोग के विरूद्व पहली घटना 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर की छावनी में घटी जहॉ मंगल पाण्डे नामक एक सिपाही ने चर्बी लगे कारतूस के प्रयोग से इंकार करते हुए अपने अधिकारी लेफ्टिनेंट बाग और लेफ्टिनेंट जनरल हयूसन की हत्या कर दी।
  • मंगल पाण्डे उ0प्र0 के तत्कालीन गाजीपुर (अब बलिया) जिले का रहने वाला था। वह बंगाल स्थित बैरकपुर छावनी की इनफैन्ट्री का जवान था।
  • 8 अप्रैल, 1857 को सैनिक अदालत के निर्णय के बाद मंगल पाण्डे को फांसी की सजा दे दी गई।

विद्रोह का प्रसार

  • भारतीय स्वतंत्रता हेतु प्रथम सशस्त्र विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ स्थित छावनी की 20 एन0आई0 तथा तीन एल0सी0 की पैदल सैन्य टुकड़ी ने चर्बी वाले कारतूस के प्रयोग से इंकार कर विद्रोह कर दिया।
  • कानपुर में 5 जून, 1857 को विद्रेाह की शूरूआत हुई। यहां पर पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब (धुन्धू पंत) ने विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया, जिसमें उनकी सहायता तांत्यटोपे ने की।
  • दिल्ली में 82 वर्षीय बहादुरशाह ने बख्त खॉ के सहयोग से विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया 20 सितम्बर, 1857 को बहादुरशाह ने हुमायुॅ के मकबरे में अंग्रेज लेफ्टिनेंट डब्ल्यू0 एस0 आर0 हडसन के समक्ष समर्पण कर दिया।
  • बहादुरशाह को शेष जीवन रंगुन में निर्वासित बिताना पड़ा वहीं उनकी मृत्यू हो गई। रंगून (बर्मा) में स्थित बहादुरशाह की मजार पर लिखा है कि “जफर इतना बदनसीब है कि उसे अपनी मातृभूमि में दफन के लिए दो गज जमीन भी नसीब न हुई।
  • लखनऊ में 4 जून, 1857 को विद्रोह की शुरूआत हुई। बेगम हजरत महल ने अपने अल्पायु में भी विरजिस कादिर को नवाब घोषित किया तथा लखनऊ स्थित ब्रिटिश रेजिडेंसी पर आक्रमण किया।
  • लखनऊ के बाद बेगम हजरत महल ने मौलवी अहमदुल्ला के साथ शाहजहांपुर में भी विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया। वे शीघ्र पराजित हो गई और भाग कर नेपाल चली गई जहां उनकी गुमनाम मौत हो गई।
  • झॉसी में 4 जून, 1857 की रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में विद्रोह की शुरूआत हुई, जिसमें रानी ने अपने साहसी नेतृत्व में अंग्रेजों के साथ वीरतापूर्वक युद्व किया, परन्तु झॉसी के पतन के बाद रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर की और प्रस्थान कर गयी।
  • ग्वालियर में तात्या टोपे के साथ विद्रेाह को नेतृत्व प्रदान किया। अनेक युद्वों में अंग्रेजों को पराजित करने के बाद अंग्रेजी जनरल हयूरोज से लड़ते हुए 17 जून, 1858 कसे वीरगति को प्राप्त हो गयी।
  • तात्यटोपे जिनका वास्तविक नाम ‘रामचन्द्र पांडरंग’ था ग्वालियर के पतन के बाद अप्रैल, 1859 में नेपाल चले गये, जहॉ पर एक जमींदार मित्र मानसिंह के विश्वसघात के कारण पकडे गये तथा 18 अप्रैल, 1859 को फांसी पर लटका दिये गये। तात्यटोपे की गिरफ्तारी मध्य भारत में Revolt of 1857 की अन्तिम घटना थी।
  • जगदीशपुर (आरा, बिहार)में वहाँ के प्रमुख जमींदार कुवंर सिंह ने Revolt of 1857 के समय, विद्रोह का झंडा फहराया।
  • फैजाबाद में 1857 के विद्रोह को मौलवी अहमदुल्ला ने अपना नेतृत्व प्रदान किया।
  • विभिन्न धर्मानुयायियों को आहवान करते हुए अहमदुल्ला ने कहा कि “सारे लोग अंग्रेज काफिर के विरूद्व खेड़ हो जाओ और उन्हें भारत से बाहर खदेड़ दे। “
  • अहमदुल्ला कि गतिविधियों से अंग्रेज इतने चिंतित थें कि उन्होंने इन्हें पकड़ने के लिए 50000 रू0 का नकद इनाम घोषित किया। 5 जून, 1858 को रूहेलखण्ड की सीमा पर पोवायां में इनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई।
  • रूहेलखण्ड में खान बहादुर खां ने Revolt of 1857 को नेतृत्व प्रदान किया, इन्हें मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय ने सूबेदार के पद पर नियुत्क किया था । कालांतर में इन्हें पकड़कर फांसी दे दी गई।
  • Revolt of 1857 के प्रमुख कर्णधार थे- राणा तृलाराम, तांत्या टोपे, नाना साहब, मौलवी अहमदल्ला, बेगम हजरत महल, रानी लक्ष्मीबाई, राजा कुंवर सिंह, अमर सिंह आदि।
  • असम में 1857 के विद्रोह के समय वहां के दीवान मनीराम दत्त ने वहां के अंतिम राजा के पोते कंदपेश्वर सिंह को राजा घोषित कर विद्रोह की शुरूआत की, शीघ्र ही विद्रोह असफल हुआ, मनीरा को फांसी हो गई।
  • उड़ीसा में संबलपुर के राजकुमार सुरेन्द्रशाही और उज्जवल शाही ने विद्रोह किया। गंजाम में साबरो ने राधाकृष्ण दंडसेन के नेतृत्व में पराल की मेडी में विद्रोह किया।
  • राजा नाहर सिंह (1823-1858)राजा नाहर सिंह हरियाणा के फरीदाबाद जिले में बल्लभगढ़ की रियासत के एक जाट राजा थे। Revolt of 1857 में राजा नाहर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ बढ़.चढ़ कर भाग लिया। इसमें   इनका साथ दिया था अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने। बहादुरशाह जफर ने राजा नाहर सिंह की बहादुरी को देखते हुए उन्हें अपना आंतरिक प्रशासक नियुक्त किया।  राजा नाहर सिंह की वीरता से अंग्रेजों की सेना कांपती थी। अंग्रेजों ने सोचा कि जब तक राजा नाहर सिंह को नहीं दबोचा जाएगाए तब तक बहादुरशाह जफर का तख्ता पलटना मुश्किल है। आखिरकार राजा नाहर सिंह अंग्रेजों के चुंगल में फंस गए। वे अंग्रेजों के ऊपर विश्र्वास करके उनके साथ दिल्ली चले गए। जैसे ही राजा नाहर सिंह लाल किले के अंदर घुसेए उन्हें अंग्रेजों ने बंदी बना लिया। 9 जनवरी, 1858 को उन्हें दिल्ली के चांदनी चौक के लाल कुआं पर राजा नाहर सिंह को सरेआम फांसी पर लटका दिया।
  • दक्षिण भारत जिसका अधिकांश हिस्सा विद्रोह से अलग रहा, में 9वीं अनियमिता सेना (घुड़सवार) के वजीर खां ने अजनाला में विद्रोह किया, लेकिन शीघ्र ही इन सब को फांसी दे दी गई।
  • दक्षिण भारत जिसका अधिकाशं हिस्सा विद्रोह के समय शांत था, के सतारा और कोल्हापुर में Revolt of 1857 का कुछ प्रभाव देखने को मिला।
  • बंगाल, पंजाब, राजपूताना, पटियाला, जींद, हैदराबाद, मद्रास, आदि ऐसे क्षेत्र थे जहाँ पर विद्रोह नहीं पनप सका, यहॉ के शासकों ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजी सरकार की मदद भी की।
  • Revolt of 1857 में व्यापारी पढ़े-लिखे लोग, भारतीय शासकों ने हिस्सेदारी नहीं ली।

विद्रोह की असफलता के कारण

  • विद्रोह की असफलता के कई कारण थे, जिनमें प्रमुख था एकता, संगठन और साधनों की न्यूनता।
  • विद्रोह का स्वरूप सामंतीय था एक तरफ अवध, रूहेल खण्ड तथा उत्तरी भारत के सामंतो ने विद्रोह का नेतृत्व किया वहीं पटियाला, जींद, ग्वालियर तथा हैदराबाद के राजाओं ने विद्रोह के दमन में सरकार की भरपूर मदद की।
  • जहां विद्रोहियों के पास इक्का-दुक्का (तांत्या टोपे, लक्ष्मीबाई) नेता थे, वही कंपनी के पास लारेन्स बंधु निकोलस आउट्रम, हैवलॉक, एडवर्डस जैसे योग्य सेनापति थे जिन्होंने विद्रोह को कुचलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
  • केवल ब्रिटिश सरकार के प्रति घृणा ही एक ऐसी भावना थी जिसके कारण विद्रोही एकजुट थे अन्यथा उनके पास न तो कोई राजनीतिक दृष्टि थी, न ही भविष्य की योजना।
  • 1857 के विद्रोह की उपलब्धि के बारे में निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि यदि किसी ऐतिहासिक घटना का महत्व उसकी तात्कालिक उपलब्धि तक सीमित नहीं रहता तो 1857 का विद्रोह एक ऐतिहासिक त्रासदी भर नही थी इसने अपनी असफलता में अपने महान उदेश्यों को पूरा किया।
  • राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन का प्रेरणास्रोत बनकर 1857 के विद्रोह ने उस उपलब्धि को प्राप्त किया, जो अन्य विद्रोहों के लिए संभव नहीं था।

विद्रोह का स्वरूप

  • कुछ अंग्रेज इतिहासकारों द्वारा 1857 के संग्राम को ‘कट्टर पंथियों’ द्वारा ईसाइयों के विरूद्व संग्राम (एल00आर0 रीज) ‘सभ्यता और बर्बरता के बीच संघर्ष’ (टी0आर0 हाम्ज) कहा गया जो बिल्कुल प्रासंगिक नहीं है।

महत्वपूर्ण पुस्तक

  • First war of Independence- वी0डी0 सवाकर
  • The Great Rebellion- अशोक मेहता
  • Scopy Mutiny and the Revolt of 1857- आर0सी0 मजूमदार
  • Eighteen Fifty Seven- आर0एन0 सेन

विद्रोह का परिणाम

  • भारत में एक व्यवस्थित शासन प्रणाली स्थापित हो सके इसके लिए, भार सरकार अधिनियम 1858 पारित हुआ जिसके द्वारा पिट्स इंडियन एक्ट के द्वारा की गई व्यवस्था समाप्त हो गई।
  • 1858 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा सेना के पुनर्गठन के लिए स्थापित पील कमीशन की रिपोर्ट पर सेना में भारतीय सैनिकों की तुलना में यूरोपियनों का अनुपात बढ़ा दिया गया।
  • इण्डियन हाईकोर्ट एक्ट 1861 का इण्डियन सिविल सर्विस एक्ट पारित किया गया।

स्मरणीय तथ्य एक नजर में

  • 1857 के विद्रोह की शुरूआत मेरठ से 10 मई, 1857 को हुई विद्रोह मुख्यतः दिल्ली कानपुर, जगदीशपुर, (बिहार), झांसी, रूहेलखण्ड, मेरठ, लखनऊ, फैजाबाद, बरेली में केन्द्रित रहा।
  • 1857 विद्रोह के समय के विद्रोही नेता मौलवी अहमदल्ला की गिरफ्तारी के लिए अंग्रेजी सरकार ने 50000 रू0 का इनाम रखा था।
  • 1857 के विद्रोह के बारे में आर0सी0 मजूमदार ने कहा कि तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम न तो प्रथम था, न ही राष्ट्रीय और नही स्वतंत्रता संग्राम।
  • ब्रिटिश सांसद डिजरायली ने 1857 के विद्रोह को राष्ट्रीय विद्रोह कहा।
  • वी0डी0 सावरकर ने 1857 के विद्रेाह को सुनियोजित ‘स्वतंत्रता संग्राम’ की संज्ञा दी।
  • 1857 के भारतीय परिशद अधिनियम द्वारा भारत में कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया। भारत का गवर्नर जनरल वायसराय कहा जाने लगा।
  • 1857 के विद्रोह के समय भारत के गवर्नर-जनरल लार्ड कैनिंग थे।
  • भारत के प्रथम वायसराय लार्ड कैनिंग थे।

Mahatma Gandhi

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