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Collegium System
Collegium System की शुरूआत तीन फैसलों से हुई। इन्हें ही कालान्तर में थ्री जजेस केसेज भी कहा गया। एसपी गुप्ता मामले (30 दिसम्बर, 1981) को फस्र्ट जज केस कहते हैं। इस मामले में सुनाए गए फैसले से न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका को न्यायपालिका के ऊपर प्रधानता मिल गई। इस फैसले के 12 साल बाद 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्तियों के लिए Collegium System की शुरूआत की और कहा कि नियुक्ति के मामले में परामर्श का अर्थ सहमति है। इसमें यह भी कहा गया कि सीजेआइ की राय व्यक्तिगत नहीं होगी, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली गई एक संस्थागत राय होगी। 1998 में एक फैसले के माध्यम से कलेजियम का वर्तमान पांच सदस्यीय स्वरूप् सामने आया।
यह है व्यवस्था
सुप्रीम कोर्ट के लिए-मुख्य न्यायाधीश सहित चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों से बना कलेजियम किसी जज की नियुक्ति की अनुशंसा करता है। यह सिफारिश विचार और स्वीकृति की लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी जाती है। नियुक्त प्रक्रिया में लगने वाला औसत समय एक माह है।
हाई कोर्ट के लिए-सम्बन्धित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कलेजियम से सलाह मशविरे के बाद प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजते है। फिर देश के मुख्य न्यायाधीश के पास यह प्रस्ताव आता है। बाद में इसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास विचार और स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। नियुक्ति में लगने वाला औसत समय छह माह होता है।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग
- अगस्त 2014 में संसद ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम के साथ 99वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया था, जिसके माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की Collegium System को प्रतिस्थापित करने के लिए एक स्वतन्त्र आयोग के निर्माण का प्रावधान किया गया।
- 99 वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत 6 सदस्यीय संवैधानिक निकाय के रूप् में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन किया गया था।
संयोजन और सदस्य
भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षकता वाले इस आयोग में कुल छह सदस्य प्रस्तावित हैं। सदस्यों में सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जज भी होंगे। कानून मंत्री इसके पदेन सदस्य हांेगे। दो प्रबुद्ध नागरिक भी शामिल किए जांएगे, जिनका चयन प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में नेता विपक्ष वाली तीन सदस्यीय समिति करेगी। अगर लोकसभा में नेेता विपक्ष नहीं होगा तो सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता चयन समिति में होगा। दो प्रबुद्ध व्यक्तियों में से एक सदस्य एससी-एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक या महिला वर्ग से होगा।
सिविल सोसायटी की सहभागिता
अभी तक किसी भी देश ने जजों की नियुक्ति के लिए सिविल सोसायटी को थर्ड अम्पायर की भूमिका में नहीं रखा है। इस सन्दर्भ में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की राय है कि चयन प्रक्रिया में इस तरह की रणनीतिक नियुक्तियों में सिविल सोसायटी का पर्यवेक्षक बनाना सुसंगत होगा। इस प्रकार एनएसी में कमोबेश वे सारे तत्व हैं, जिनकी न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता के लिए ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल वकालत करता है।
आयोग का काम
- भारत के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करना।
- हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के स्ािानान्तरण की सिफारिश करना।
- यह सुनिश्चित करना कि जिसकी सिफारिश की गई है वह व्यक्ति योग्य और निष्ठावान हो।
ऐसी होगी प्रक्रिया
- मुख्य न्यायाधीश पद के लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश के नाम की सिफारिश की जाएगी।
- तय नियमों और प्रविधानों के मुताबिक वरिष्ठता एवं अन्य योग्यताओं और पद के लिए उपयुक्तता को ध्यान में रखते हुए उपलब्ध योग्य न्यायाधीशों में से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए सिफारिश की जाएगी।
- आयोग वरिष्ठता क्रम को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद पर नियुक्ति की सिफारिश करेगा। इसमें मेरिट व अन्य मानदण्डों का भी ध्यान रखा जाएगा।
- राष्ट्रपति चाहें तो नियुक्ति की सिफारिश पुनर्विचार के लिए आयोग को वापस भेज सकते हैं। अगर आयोग ने पुनर्विचार के बाद एक राय से अपनी सिफरिश पर फिर मुहर लगा दी तो राष्ट्रपति उस सिफारिश के आधार पर नियुक्ति को स्वीकृति देंगे।
क्या कहता है संविधान
अनुच्छेद 124 के तहत सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति की जाती है। इसके अनुसार राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर अन्य जजों की नियुक्ति करते हैं। हाई कोर्ट के जजों की नियुक्तियों का प्रविधान अनुच्छेद 217 में किया गया है। इसके अनुसार राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश और राज्य के राज्यपाल से विचार-विमर्श के बाद जजों की नियुक्ति होगी।
न्यायिक नियुक्ति आयोग Collegium System से किस प्रकार भिन्न था ?
- एनजेएसी अधिनियम के अनुसार भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की सिफारिश न्यायिक नियुक्ति आयोग द्वारा वरिष्ठता के आधार पर की जानी थी, जबकि सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के अन्य न्यायाधीशों की सिफारिश क्षमता, योग्यता व अन्य मानदण्डों के आधार पर की जानी थी।
- अधिनियम ने न्यायिक नियुक्ति आयोग के किसी भी दो सदस्यों को किसी सिफारिश पर असहमत होने की स्थिति में वीटो करने का अधिकार दिया था।
- वहीं दूसरी ओर Collegium System में वरिष्ठतम न्यायाधीशों के एक समूह द्वारा उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्तियां की जाती हैं। Collegium System का संविधान में उल्लेख नहीं है। यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विकसित की गई व्यवस्था है।
- संविधान सिर्फ इतना कहता है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, यह परामर्श की प्रक्रिया की बात करता है अनुच्छेद 124 (2)।
- Collegium System में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों का एक फोरम होता है, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानान्तरण की सिफारिश करता है।
- यह व्यवस्था करीब तीन दशक से चल रही है। इससे पहले, न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अन्य न्यायाधीशों के परामर्श से की जाती थी, यदि वह उपयुक्त समझे।
Collegium System की आलोचना क्यों की जाती है ?
- Collegium System एक संविधानेत्तर निकाय है तथा इसकी कार्य प्रणाली और निर्णयन प्रक्रिया के बारे में कोई सार्वजनिक सूचना उपलब्ध नहीं होती
- चूंकि काॅलेजियम की बैठकें बन्द दरवाजे में आयोजित की जाती हैं। ऐसे में यह व्यवस्था न्यायिक प्रणाली मंे अपारदर्शिता को जन्म देती है।
- इस व्यवस्था में एक ऐसी प्रणाली का निर्माण हुआ है, जिसमंे कुछ न्यायाधीश पूरे गोपनीय तरीके से अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं। इस व्यवस्था में पक्षपात तथा भाई-भजीतावाद की सम्भावना बनी रहती है।
स्त्रोत-दैनिक जागरण