किसी भी किताब की तुलना किसी दूसरी किताब से हो ही नहीं सकती है। हम समानता की बात तो कर सकते हैं। यह साम्य सही हो जरूरी नहीं है। दो कलम एक भाव रच सकते हैं, किन्तु संवेदित होने की प्रक्रिया अलग ध्वनि बोध का परिचायक होती हैं।
studiadda
किसी भी किताब की तुलना किसी दूसरी किताब से हो ही नहीं सकती है। हम समानता की बात तो कर सकते हैं। यह साम्य सही हो जरूरी नहीं है। दो कलम एक भाव रच सकते हैं, किन्तु संवेदित होने की प्रक्रिया अलग ध्वनि बोध का परिचायक होती हैं।