देवी माँ के प्रसिद्ध मंदिर

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उत्तराखण्ड देवभूमि में स्थित देवी माँ के प्रसिद्ध मंदिर

Famous mata Temples In Uttarakhand

देवभूमि उत्तराखंड अपने दिव्य अवतारों में विभिन्न देवी शक्ति की पूजा करने के लिए जाना जाता है। उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में कई  देवी माँ के प्रसिद्ध मंदिर जहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। उत्तराखंड के ये देवी मंदिर देवता में अटूट आस्था की एक शानदार तस्वीर का प्रतिनिधित्व करते हैं और इसके साथ कई दंतकथाएं भी जुड़ी हुई हैं।

कालीमठ मन्दिर, रूद्रप्रयाग-रूद्रप्रयाग जिले में स्थित कालीमठ मन्दिर को महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के सिद्धपीठ के रूप में जाना जाता है। इस स्थल का वर्णन दुर्गा सप्तशती में भी है।

कालिंका माता, बीरोंखाल, पौडी गढवाल-पौडी गढवाल जिले में स्थित कालिका माता मन्दिर को माँ काली का स्वरूप माना जाता है। यहा हर 3 साल में सर्दियों के मौसम में प्रसिद्ध मेला लगता है।

कुन्जापुरी देवी मन्दिर, नरेन्द्र नगर-ऋषिकेश से लगभग 25 किमी की दूरी पर स्थित कुन्जापुरी देवी मंदिर महत्वपूर्ण देवी सती को समर्पित है। यहा यह मान्यता है कि माता शती के शरीर का उपरी भाग यहा गिरा था।

सुरकंडा देवी मन्दिर, कद्दूखाल, टिहरी-सुरकण्डा देवी मन्दिर टिहरी क्षेत्र में सुरकुट पर्वत पर लगभग 2757 मीटर की ऊचाई पर स्थित है। यह प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है।

ज्वालपा देवी मन्दिर, सतपुली– नबालिका नदी के किनारे स्थित ज्वालपा देवी मन्दिर लगभग 350 मीटर के क्षेत्र में फेला हुआ है। नवरात्रि के दौरान इस मन्दिर में विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है।

नंदा देवी मन्दिर, करूड़ (चमोली)-करूड़ में नन्दा देवी का मन्दिर गांव के शीर्ष पर देवसरि तोक पर स्थित है। करूड़ नन्दा को राजराजेश्वरी के नाम से भी पुकारा जाता है।

हाटकालिका मन्दिर, गंगोलीहाट-माता भगवती महाकालिका का यह दरबार दिव्य चमत्कारों से भरा पडा है। कहा जाता है कि जो भी भक्तजन श्रद्धापूर्वक महाकाली के चरणों में आराधना के पुष्प् अर्पित करता है उसके रोग, शोक, दरिद्रता एवं विपदाएं दूर हो जाती है।

पूर्णागिरि मन्दिर, टनकपुर-प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक माँ पूर्णागिरि मन्दिर टनकपुर से लगभग 21 किमी0 की दूरी पर स्थित है। चैत्र नवरात्रि के दौरान बडी संख्या में भक्त यहा दर्शन करने आते है।

गर्जिया देवी मन्दिर, गर्जिया, रामनगर– गर्जिया देवी मन्दिर माता पार्वती के प्रमुख मन्दिरों में से एक है। यह मन्दिर भक्तों की श्रद्धा एवं विश्वास के साथ खूबसूरत वातावरण, शान्ति एवं रमणीयता के लिए जाना जाता है।

कोटगाड़ी (कोकिला) देवी मन्दिर, पिथौरागढ़-थल से 9 किमी0 की दूरी पर स्थित कोटगाड़ी देवी का मन्दिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इस मन्दिर की मान्यता अन्तिम दिव्य अदालत के रूप में है जहाँ वंचित भक्त भगवान से अपनी इन्छाओं को पूरा करने की प्रार्थना करने आते है।

नन्दा देवी मन्दिर, अल्मोड़ा-कुमाऊँ क्षेत्र के पवित्र स्थलों में से एक नन्दा देवी मन्दिर का विशेष धार्मिक महत्व है। कुमाऊनी शिल्पविद्या शैली से निर्मित यह मन्दिर चन्द्र वंश की ईष्ट देवी को समर्पित है।

कसार देवी मन्दिर, अल्मोड़ा– अल्मोड़ा में कसार पर्वत पर स्थित कसार देवी मन्दिर अद्वितीय और चुम्बकीय शक्ति का केन्द्र है। कहा जाता है कि इस शक्तिपीठ में माँ दुर्गा साक्षात् प्रकट हुई थी।

चन्द्रबदनी मन्दिर, देवप्रयाग– चन्द्रबदनी देवी मॉ का मन्दिर देवी के प्रसिद्ध मन्दिरों में से एक है जो जनपद टिहरी गढ़वाल में चन्द्रकूट पर्वत पर स्थित है, इस मन्दिर में अखण्ड ज्योति निरन्तर प्रज्वलित रहती है। चंद्रबदनी मन्दिर में एक प्राकृतिक श्रीयंत्र स्थापित है, स्कन्दपुराण में चन्द्रबदनी मन्दिर को भुवनेश्वरी पीठ कहा जाता है। इस मन्दिर में पशु बलि प्रथा 1969 ई0 में समाप्त करने का श्रेय स्वामी मन्मथ को जाता है। देवप्रयाग से 33 किमी और कन्डीखाल से 10 किमी0 दूर स्थित माँ चन्द्रबदनी मन्दिर शक्तिपीठों और माता सती के पवित्र स्थलों में से एक है।

नागणी देवी, उत्तरकाशी-बालखिला पर्वत पर बसे नागणी मन्दिर का विशेष धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि मां नागणी के दर्शन से मनुष्य को सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। नवरात्र के दिनों में यहा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

हरियाली देवी मन्दिर, जसोली, रूद्रप्रयाग– रूद्रप्रयाग का माँ हरियाली देवी मन्दिर विशाल हिमालयन श्रणियों के बीच स्थित है। प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक इस मन्दिर की देवी को सीता माता, बाला देवी और वैष्णों देवी के नाम से भी जाना जाता है।

धारी देवी मन्दिर, श्रीनगर– अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित माँ धारी देवी मन्दिर एक प्राचीन सिद्धपीठ है । माता धारी देवी को देवभूमि उत्तराखण्ड की रक्षक देवी के रूप् में जाना जाता है।

वाराही मन्दिर, देवीधुरा– चम्पावत जिले के देवीधुरा में माँ वाराही देवी के मन्दिर के प्रागण में हर साल रक्षाबन्धन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को बग्वाल खेली जाती है।

नैना देवी मन्दिर, नैनीताल– नैना देवी मन्दिर नैनीताल में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है। यहा सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मन्दिर में दो नेत्र जो नैना देवी को दर्शाते हैं।

कोट भ्रामरी मन्दिर, बागेश्वर-कोट भ्रामरी मन्दिर को भ्रामरी देवी मन्दिर और कोट माई के नाम से भी जाना जाता है। यह बैजनाथ से 3 किमी की दूरी पर डंगोली के समीप स्थित है।

चैती (बाल सुदंरी) मन्दिर, काशीपुर-माता चैती (बाल सुंदरी) मन्दिर काशीपुर में स्थित है। यहा चैती मेला के नाम से चैत्र मास में प्रसिद्ध मेला लगता है। आदिशक्ति की बाल रूप में पूजा होने के कारण इसे बाल सुन्दरी मन्दिर कहा जाता है।

दूनागिरी मन्दिर, द्वाराहाट-माँ दूनागिरी मन्दिर द्वाराहाट से करीब 14 किमी की दूरी पर स्थित है। इस भव्य मन्दिर में माँ दूनागिरी वैष्णवी रूप में पूजी जाती है।

अखिलतारणी मन्दिर, लोहाघाट, चम्पावत– माँ अखिलतारणी मन्दिर को उप शक्तिपीठ माना जाता है जो घने हरे देवदार वनों के बीच में स्थित है। मान्याता के अनुसार यहां पाण्डवों ने घटोत्कच का सिर पाने के लिए माँ भगवती की प्रार्थना की थी।

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