Vinoba Bhave

Vinoba Bhave (विनोबा भावे) 

Vinoba Bhave एक अहिंसा कार्यकर्ता (Non-violence Activist) स्वतंत्रता आन्दोलनकारी, समाज सुधारक और आध्यात्मिक शिक्षक (Spiritual Teacher) थे। महात्मा गांधी के एक उत्साही अनुयायी, Vinoba Bhave ने अहिंसा और समानता के अपने सिद्वांतों को बरकरार रखा। इनका जन्म 11 सितम्बर, 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोड़ा (Gagoda) गांव में हुआ था। इनका मूल नाम विनायक नरहरि था। हुआ था।

महात्मा गांधी के सहयोगी

Vinoba Bhave, महात्मा गांधी के विचारधाराओं और सिद्वान्तों के प्रति आकर्षित थे तथा वे गांधी को राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टि से अपना गुरू मानते थे। उन्होंने बिना किसी भेदभाव गांधी के नेतृत्व का अनुसरण किया।स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए उनकी राजनीतिक विचारधारा शान्तिपूर्ण असहयोग के सिद्धान्तों से निर्देशित थी।

  • Vinoba Bhave और महात्मा गांधी ने समाज के लिए रचनात्मक कार्यक्रमों में भागीदारी की थी। Vinoba Bhave  ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा गांधी द्वारा आरम्भ किए गए विभिन्न कार्यक्रमों को लागू करने में बिताया।
  • 8 अप्रैल, 1921 को उन्होंने गांधी के निर्देशों के तहत वर्धा में गांधी-आश्रम का प्रभार संभाला। वर्धा में अपने प्रवास के दौरान, उन्होंने मराठी में एक मासिक पत्र भी निकाला, जिसका नाम ’महाराष्ट्र धर्म’ था। मासिक पत्र में उपनिषदों पर उनके निबंध शामिल थे।
  • वह स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए गांधी के शातिपूर्ण असहयोग के सबसे बड़े प्रबल समर्थक थे। महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने असहयोग आंदोलन के कार्यक्रमों और विशेष रूप से विदेशी आयात के बजाय स्वदेशी निर्मित वस्तुओें के उपयोग के आहवन में भाग लिया।
  • 1932 में, ब्रिटिश सरकार ने विनोबा भावे पर शासन के खिलाफ साजिश का आरोप लगाते हुए, सरकार ने उन्हें छह महीने के लिए धूलिया (महाराष्ट्र) जेल भेज दिया। विनोबा भावे ने ऐसे पहले नेता थे, जिन्होने 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में सर्वप्रथम हिस्सा लिया।

समाजिक कार्य

Vinoba Bhave ने सामाजिक बुराइयों को मिटाने की दिशा में अथक प्रयास किया। गांधी द्वारा स्थापित उदाहरणों से प्रभावित होकर, उन्होंने छुआछूत जैसे सामाजिक मुददा उठाया।

  • विनोबा भावे ने वर्ष 1916 से पूर्व गांधी जी के साथ पत्राचार शुरू किया, गांधी जी ने विनोबा भावे से प्रभावित होकर उन्हें अहमदाबाद के कोचराब आश्रम में आमन्त्रित किया। आश्रम के एक अन्य सदस्य मामा फड़के द्वारा उन्हे विनोबा नाम प्रदान किया गया था।
  • महात्मा गांधी के विचारधाराओं और सिद्धान्तों के प्रति विनोबा भावे आकर्षित थे और गांधी जी को वे अपना राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टि से गुरू मानते थे।
  • गांधी ने जिस तरह के समाज की कल्पना एक स्वतंत्र भारत में की थी, उसकी स्थापना को Vinoba Bhave ने उपना लक्ष्य बनाया। उन्होंने गांधी द्वारा दिए गए शब्द सर्वोदय को अपनाया जिसका अर्थ है ’सभी के लिए प्रगति’। उनके अधीन सर्वोदय आंदोलन ने 1950 के दशक के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों को लागू किया, जिनमें से भूदान आंदोलन प्रमुख है।
  • गरीबों एवं दलितों के उत्थान के लिए 1951 में आन्ध्र प्रदेश से भूदान आन्दोलन की शुरूआत की। 13 साल चले इस आन्दोलन से उन्होनें देशभर में गरीबों के लिए 44 लाख एकड़ भूमि दान के रूप में प्राप्त करने में सफलता पाई। 15 नवम्बर, 1982 को उनका निधन हो गया।

भूदान आन्दोलन

  • विनोबा भावे ने तेलंगाना के हिंसाग्रस्त क्षेत्र में वर्ष 1951 में पैदल अपनी शान्ति-यात्रा शुरू की।
  • पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने 18 अप्रैल 1951 में उनसे लगभग 80 एकड़ जमीन उपलब्ध कराने को अनुरोध किया।
  • यह भूदान आन्दोलन की शुरूआत थी। जिसमें विनोबा भावे ने गांव के जमींदारों को आगे आने और हरिजनों को बचाने के लिए कहा। लगभग 13 वर्षों तक यह आन्दोलन जारी रहा और विनोबा भावे ने कुल 58741 किलोमीटर की यात्रा तय की थी।
  • लगभग 4 मिलियन एकड़ जमीन एकत्र करने में वे सफल रहे और जिसमें गरीब भूमिहीन किसानों के बीच लगभग 1.3 मिलियन एकड़ भूमि वितरित की गयी।
  • इस आन्दोलन ने विश्व भर में ख्याती प्राप्त की और स्वैच्छिक सामाजिक न्याय का उत्प्रेरित के लिए अपनी तरह का एकमात्र प्रयोग होने के लिए इस आन्दोलन की सहारना की गई।

धार्मिक कार्य

  • भगवद् गीता से विनोबा भावे बहुत प्रभावित थे और इस पवित्र पुस्तक के सिद्धान्तों पर उनके विचार और प्रयास आधारित थी।
  • जीवन के एक सरल तरीके को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई आश्रम स्थापित किए।
  • महात्मा गांधी की शिक्षाओं की तर्ज पर उन्होंने 1959 में आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से एक छोटा से समुदाय ब्रह्म विद्या मन्दिर की स्थापना महिलाओं के लिए की।
  • गो हत्या पर उन्होंने कड़ा रूख अपनाया और भारत में प्रतिबन्धित होने तक उपवास पर जाने की घोषणा की ।

साहित्यिक रचना
अपने जीवनकाल में भावे उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं थी जिनमें से अधिकांश पुस्तकें आध्यात्मिक सामग्री पर आधारित थी। स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन, तीसरी शाक्ति आदि उनके द्वारा कुछ लिखी गयी कुछ मुख्य पुस्तकें हैं। उन्होंने कन्नड़ लिपि को विश्व लिपियों की रानी कहा था। उन्होंने भगवतगीता का अनुवाद मराठी में किया था।
पुरस्कार
सन् 1958 में रेमन मैगसेस पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले अन्तराष्ट्रीय व्यक्ति विनोबा भावे थे तथा उन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

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