विजय नगर साम्राज्य (VIJAY NAGAR EMPIRE)

राजनीतिक इतिहास

  • 1336 ई0 में VIJAY NAGAR EMPIRE की स्थापना विशेषतः दक्षिण भारत की तथा सामान्यतः भारत के इतिहास की एक महान घटना है। दक्षिण भारत में तुगलक सत्ता के विरूद्व होने वाले राजनीतिक तथा सांस्कृतिक आन्दोलन के परिणामस्वरूप इसकी स्थापना हुई।
  • VIJAY NAGAR EMPIRE की स्थापना संगम के पांच पुत्रों में से हरिहर एवं बुक्का ने 1336 ई0 में की, जो बारंगल में काकतियों के सामन्त थे और बाद में काम्पिली राज्य में मंत्री भी बने।
  • तुंगभदा के दक्षिणी तट पर स्थित अनेगोण्डो के सामने विजयनगर (विद्या नगर) शहर की स्थापना की। अपने इस साहसिक कार्य में हरिद्वार एवं बुक्का को अपने गुरू विद्यारण्य तथा वेदों के प्रसिद्व भाष्यकार सायण से प्रेरणा मिली।
  • VIJAY NAGAR EMPIRE की राजधानियां बेनुगोण्डा तथा चन्द्रगिरि।
राजवंश संस्थापक शासनकाल
1-    संगमवंश हरिहर प्रथम एवं बुक्का 1336-1485 ई0
2-    सालुववशं नरसिंह सांलुब 1485-1505 ई0
3-    तुलुववशं वीर नरसिंह 1505-1570 ई0
4-    अराबीडुवंश तिरूमल्ल (तिरूमाल) 1570-1650 ई0 लगभग
  • हम्पी (हस्तिनावती) विजयनगर की पुरानी राजधानी का प्रतिनिधित्व करता है।
  • विजयनगर का वर्तमान नाम हम्पी (हस्तिनावती) है।

संगम वंश

  • हरिहर प्रथम-विजयनगर का संस्थापक। पहली राजधानी अनेगोण्डी तथा बाद में विजयनगर को राजधानी बनाया।
  • 1346 ई0 में उसने होयसल राज्य को जीतकर नगर साम्राज्य में मिलाया।
  • बुक्का प्रथम-1374 ई0 में बुक्का प्रथम ने चीन में एक दूत मण्डल भेजा था।
  • देवराय प्रथम– देवराय प्रथम ने अनेक जनकल्याणकारी योजनाएं प्रारम्भ की। 1410 ई0 में तुंगभद्रा पर बांध बनवाकर अपनी राजधानी विजय नगर तक (जलसेतु या जलप्रणाली) निकलवाई।
  • देवराय प्रथम के शासन काल में इतालवी यात्री निकोलीकोण्टी ने विजयनगर की यात्रा की।
  • देवराय प्रथम अपने राजप्रसाद के मुक्ता “सभागार” में प्रसिद्व व्यक्तियों को सम्मानित किया करता था।
  • देवराय द्वितीय (1422-1446 ई0)- वंश का महानतम शासक। इस शासक के अभिलेख सम्पूर्ण विजयनगर साम्राज्य में प्राप्त हुए हैं और उसका शासन काल संगम युगीन विजयनगर साम्राज्य के वैभव और समृद्वि की पराकाष्ठा का सूचक है।
  • देवराय द्वितीय के समय फारसी (ईरानी) राजदूत अब्दर्रज्जाक ने विजयनगर की यात्रा की थी। यह विजयनगर को संसार के सबसे शानदार नगरों में से एक मानता है।
  • देवराय द्वितीय साहित्य का महान संरक्षक था और स्वयं संस्कृत का एक निष्णात विद्वान था उसे दो संस्कृत ग्रन्थों महानाटक सुधानिधि एंव वादरायण के ब्रहमसूत्र पर टीका की रचना करने का गौरव प्राप्त है।
  • मल्लिकार्जुन-चीनी यात्री माहुआन 1451 ई0 में मल्लिकार्जुन के समय में विजय नगर आया था।
  • विरूपाक्ष द्वितीय-वंश का अन्तिम शासक।

सालुव वशं (1485-1505 ई0)

  • VIJAY NAGAR EMPIRE में व्याप्त अराजकता की स्थिति को देखकर साम्राज्य के एक शक्तिशाली सामन्त-शासक नरसिंह सालुव ने 1485 ई0 में राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार संगम वंश ‘प्रथम बलापुहार’ के द्वारा उखाड़ फेंक दिया गया।

तुलुव वशं (1505-1570 ई0)

  • वीर नरसिंह के राजगद्दी पर अधिकार करने को VIJAY NAGAR EMPIRE के इतिहास में द्वितीय बलापहार की संज्ञा दी गई है।
  • कृष्णदेवराय (1505-1529 ई0)विजयनगर साम्राज्य में महानतम एंव भारत के महान शासकों में से था।
  • सर्वप्रथम उसने विद्रोही सामन्तों का दमन किया। 1513 ई0 में उसने गजपति शासन के उदयगिरी जीता तथा सबसे महत्वपूर्ण 1520 ई0 में उसने बीजापुर को पराजित करके सम्पूर्ण रायचूर दोआब पर अधिकार कर लिया।
  • कृष्ण देवराय एक महान सेनानायक एंव विजेता ही नहीं अपितु एक महान प्रशासक भी थे। अपने प्रसिद्व तेलुगू ग्रन्थ आमुक्तमाल्यद में अपने राजनीतिक विचारों और प्रशासकीय नीतियों का विवेचन किया ।
  • उसका शासन काल तेलगु साहित्य का क्लासिकी युग माना जाता है। उसके दरबार को तेलुगु के आठ महान विद्वान एवं कवि (अष्टदिग्गज) सुशोभित करते थे। अतः उसे आन्ध्र भोज भी कहा जाता है।
  • अष्टदिग्गज तेलूगु कवियों में पेडुडाना सर्वप्रमुख थे जो संस्कृत एंव तेलगू दोनों भाषाओं के ज्ञाता थे, जिन्हें कृष्ण देवराय ने विशेषरूप से सम्मानित किया।
  • उन्होंने अनेक मंदिरों मण्डपों, तालाबों आदि का निर्माण कराया। अपनी राजधानी विजयनगर के निकट नागलापुर नामक नगर की स्थापना की
  • शासन काल में पुर्तगाली यात्री डोमिगी पायस ने विजयनगर साम्राज्य की यात्रा की और कुछ समय तक कृष्ण देवराय के दरबार में भी रहा।
  • बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में कृष्ण देवराय को भारत का सर्वाधिक शाक्तिशाली शासक बताया।
  • उसने हजारा मंदिर तथा विटल स्वामी के मंदिर का निर्माण कराया।
  • अच्युत देवराय (1529-1542 ई0) कृष्ण देवरराय ने 1529 ई0 में अपनी मृत्यू से पूर्व अच्युत देवराय को अपना उत्तराधिकारी नामजद किया।
  • इसके शासन काल में पुर्तगाली यात्री नृनिज विजय नगर साम्राज्य की यात्रा की थी। अच्युत ने महामण्डलेश्वर नामक एक नये अधिकारी की नियुक्ति की।
  • सदाशिव (1542-1570 ई0) सदाशिव राय विजयनगर साम्राज्य का नाम मात्र का शासक था। शासन की वास्तविक शक्ति आरवीडु वंशीय मंत्री रामराय के हाथों में थी।
  • तालकोटा (राक्षसी-तंगडी) का युद्व (23 जनवरी, 1565 ई0) विजयनगर की बढ़ती हुई शक्ति से दक्षिणी सल्तनतें इतनी आशंकित हो गई थी कि उन्होंने पुराने मतभेदों को भुलाकर आपस में एक होने का निश्चय किया। इस महासंघ में अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्ड तथा बीदर शामिल थे।
  • तालीकोट यु़द्व के समय विजयनगर का शासक सदाशिवराय था।
  • 23 जनवरी, 1565 ई0 में संयुक्त सेनाओं ने तालीकोटा (राक्षसी तंगड़ी या बन्नी हटटी) के यु़द्व में विजयनगर को सेना को बुरी तरह पराजित किया। रामराय वीरता पूर्वक लड़ा।
  • इस युद्व का प्रत्यक्षदर्शी ‘सेवेल’ था उसने लिखा है “तीसरे दिन के अन्त का प्रारम्भ देखा। विजयी मुसलमान रणक्षेत्र में विश्राम तथा जलपान के लिए ठहरे थे, पर जब वे राजधानी पंहुच चुके थे तथा उस समय के बाद से पॉच महीनों तक विजयनगर को चैन नहीं मिला।“ उन्होंने नदी के निकट विट्ठल स्वामी के मंन्दिर के शासन से सजे हुए भवनों में भंयकर आग लगा दी।

आरवीडु वंश (1570-1649 ई0)

  • तालीकोटा के युद्व के बाद रामराय के भाई तिरूमाल के वैनगोंडा (पेणुगोण्डा) को विजयनगर के स्थान पर अपनी राजधानी बनाई।
  • 1612 ई0 में राजा ओएडयार ने उसकी (वेंकट द्वितीय) अनुमति लेकर रंगपट्टम की सुबेदारी के नष्ट होने पर मैसूर राज्य की स्थापना की।

विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन

  • कृष्ण देवराय ने अपने अनुपम ग्रन्थ “आमुक्त माल्यद” में राजा के आदर्श को बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है “अपनी प्रजा की सुरक्षा और कल्याण के उददेश्य को सदैव आगे रखो तभी देव के लोग राजा के कल्याण की कामना करेंगे और राजा का कल्याण तभी होगा जब देश प्रगतिशील और समृद्वि शील होगा।“

नायंकार व्यवस्था

  • विजयनगर साम्राज्य की प्रान्तीय प्रशासन व्यवस्था के सन्दर्भ में नायंकार व्यवस्था उसका एक बहुत महत्वपूर्ण अंग थी। इसे विजयनगर साम्राज्य की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता बताया गया है।
  • कुछ अन्य इतिहासकारों का कहना है कि नायक वस्तुतः भू-सामन्त थे जिन्हें वेतन के बदलें अथवा अधीनस्थ सेना के रख-रखाव के लिए विशेष भू-खण्ड अमरम प्रदान की जाती थी। अमरम भूमि का उपभोग करने के कारण इन्हें अमरनायक भी कहा जाता था।
  • नायक की स्थिति प्रान्तीय गवर्नर की तुलना में निम्न दृष्टियों से भिन्न होती थी।

1 प्रान्तीय गवर्नर राजा का प्रतिनिधि होता था और वह राजा के नाम से शासन करता था, जबकि नायक केवल एक सैनिक सामन्त होता था उसे सैनिक एवं वित्तीय दायित्वों की पूर्ति के लिए कुछ जिले या प्रदेश प्रदान किये जाते थे।

2 गवर्नर की तुलना में नायकों को अपने अमरम् प्रान्त में कहीं अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त थी। राजा सामान्यतः नायकार प्रदेशों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता था।

3 नायकों का स्थानान्तरण नहीं होता था जबकि गवर्नर प्रशासकीय आवश्यकता के अनुरूप स्थानान्तरित या पदच्युत भी किया जा सकता है।

4 गवर्नरों को प्रायः दण्डनायक कहा जाता था और अधिकांशतः वे ब्राहमण हुआ करते थे।

5 नायकों के पद धीरे-धीरे आनुवंशिक हो गये जबकि गवर्नर आनुवंशिक नहीं थे।

  • नायंकार व्यवस्था में सामन्तवादी लक्षण बहुत अधिक थे जो विजयनगर साम्राज्य के विनाश का कारण बनी।
  • ब्रहमदेय ग्रामों (ब्राहमणों को भू-अनुदान के रूप में प्रदत्त ग्राम) की सभाओं को चतुर्वेदि मंगलम् कहा गया है।
  • नाडु-गॉव की एक बड़ी राजनीतिक इकाई। इसकी सभा को नाडु तथा सदस्यों को नत्तवार कहा जाता था।
  • विजयनगर सम्राटों ने आयगार-व्यवस्था द्वारा स्थानीय प्रदेशों के शासन की व्यवस्था प्रचलित की। नायंकर और आयगार व्यवस्था का विकास ही विजयनगर काल में स्थानीय संस्थाओं के पतन के लिए पर्याप्त रूप से उत्तरदायी भी था।

आयगार व्यवस्था

  • विजय नगर काल में ग्रामीण प्रशासन की एक महत्वपूर्ण विशेषता आयगार व्यवस्था थी।
  • बारह शासकीय अधिकारियों के समूह को आयगार कहा जाता था।
  • बारह आयगार ग्रामीण कर्मचारियों में कर्णिकम् गॉव का एकाउन्टेन्ट या प्रधान लिपिक होता था। तलारी ग्राम का पुलिस कर्मी या चौकीदार होता था।

राजस्व प्रशासन

  • कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था होने के कारण लगान आय का प्रमुख साधन था। इसके अतिरिक्त अन्य प्रमुख स्रोत थे जैसे-सम्पत्ति कर, व्यापारिक कर, व्यावसायिक कर, उद्योग कर, सामाजिक और सामुदायिक कर, अर्थदण्ड आदि।
  • शिष्ट नामक कर राज्य की आय का प्रमुख स्रोत था केन्द्रीय से राज्य को अठावने (अस्थवन या अथवन) कहा जाता था।
  • सैनिक एवं असैनिक अधिकारियों को विशेष सेवाओं के बदले जो भूमि जाते थे ऐसी भूमि को अमरम् कहा जाता था। इसके प्राप्त कर्ता आयगार कहलाते थे। इस भू-धारण व्यवस्था को नायंकार व्यवस्था कहते थे।
  • प्रारम्भ में नायंकर-व्यवस्था केवल सेवा की शर्तों पर आधारित थी परन्तु बाद में यह आनुवांशिक हो गई।
  • उंबलि-ग्राम में कुछ विशेष सेवाओं के बदले जिन्हें लगान मुक्त भूमि दी जाती थी ऐसी भूमि को उंबलि कहते थे।
  • रत्त (खत) कोडगै-युद्व में शौर्य प्रदर्शित करने वालों या अनुचित रूप से युद्व में मृत लोगों के परिवार को दी गई भूमि रत्त (खत्त) कोडगै का था।
  • कुट्टगि-इस युग में ब्राहमण, मन्दिर और बडे़ भू-स्वामी, जो स्वयं खेती नहीं करते थे। एसे पटटे पर दी गई भूमि को कुटट्गि कहा जाता था
  • कुदि-खेती में लगे कृषक मजदूर कुदि कहलाते थे। भूमि के क्रय-विक्रय के साथ उक्त कृषक-मजदूर भी हस्तान्तरित हो जाते थे।

मुद्रा व्यवस्था

  • विजयनगर का सर्वाधिक प्रसिद्व सिक्का स्वर्ण का वराह था जिसे विदेशी यात्रियों ने हूण, परदौस या पगोडा के रूप में उल्लेख किया है।
  • सोने के छोटे सिक्के को प्रतप तथा फणम् कहा जाता था। चॉदी के छोटे सिक्के तार कहलाते थे। विजयनगर को वराह एक बहुत सम्मानित सिक्का था जिसे सम्पूर्ण भारत तथा विश्व के प्रमुख व्यापारिक नगरों में स्वीकार किया जाता था।

सामाजिक जीवन

  • मुख्य वर्गो में शेटटी या चेटटी नामक एक बहुत बड़ा समूह था। इनकी अनेक शाखॉए या उपशाखॉए थी इनका विजयनगर युग में बहुत प्रभाव था। अधिकांश व्यापार इन्हीं के हाथों में था।
  • चेटि बहुत अच्छे लिपिक एवं कार्यो में दक्ष थे।
  • चेटियों के ही समतुल्य व्यापार करने वाले तथा दस्तकार वर्ग के लोगों को वीरपाचाल कहा जाता था।
  • कैकोल्लार (जुलाहे) कंबलत्तर अर्थात चपरासी तथा शस्त्रवाहक नाई और आन्ध्र क्षेत्र में रेड्डी कुछ महत्वपूर्ण समुदाये थे।
  • इस काल में उत्तर भारत से बहुत बड़ी संख्या में लोग दक्षिण में आकर बस गये थे। इन्हें बडवा कहा जाता था। इन उत्तर भारतीय नवागान्तुकों ने पुराने दक्षिणवासियों के व्यापार को हथिया लिया।

विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख पदाधिकारी तथा उनके कार्य

अधिकारी                       कार्य

1 नायक                                  ये ग्राम सभाओं के कार्यवाहीयों के निरीक्षण करने वाले अधिकारी थे।

2    रायसम्                               सचिव

3    कर्णिकम्                           लेखाधिकारी (एकाउन्टेंट)

4    अमरनायक (जगीरदार)      सामन्तों का वह वर्ग जो राज्य को सैन्य मद्द देने के लिए बाध्य था।

5    आयगार                        ये वंशानुगत  ग्रामीण अधिकारी थे।

6    फ्लाइयागार (पालिगार)      सेनापति अथवा नायक कहलाते थे।

7    स्थानिक                          मन्दिरों की व्यवस्था (प्रबन्ध) करने वाले अधिकारी थे।

8    मानेय प्रधान                    गृहमंत्री।

9    परूत्यागार                किसी स्थान विशेष में राजा या गवर्नर का प्रतिनिधि होता था।

10   मध्यस्थ                 यह एक निर्णायक होता था जिनकी सेवाओं  का क्रय विक्रय के दौरान उपयोग किया                                 जाता था।

  • युद्व में वीरता दिखाने वाले पुरूषों के लिए गंडपेद्र नामक पैर में ध्यान करने वाले कड़े को सम्मान का प्रतीक माना जाता था। प्रारम्भ में इसे युद्व वीरता का प्रतीक माना जाता था परन्तु बाद में इसे सम्मान का प्रतीक माना जाने लगा।
  • shorturl.at/awHRW

शिक्षा एवं मनोरंजन

  • उन्होंने मठों और असंख्य अग्रहारों की स्थापना करके शिक्षा और ज्ञान का प्रोत्साहन दिया। मन्दिर, मठ एवं अग्रहार विद्या के केन्द्र थे।
  • प्रत्येक अग्रहार में ज्ञान की किसी विशेष शाखा में पारंगत ब्रहामण होते थे। अग्रहारों में मुख्यतः वेदों की शिक्षा दी जाती थी।
  • बोमलाट एक छाया-नाटक था जिसका आयोजन मण्डपों में किया जाता था।

स्मरणीय तथ्य

  • बहमनी मुद्रा हून तथा विजयनगर की मुद्रा पराडो थी।
  • सोनार की बेटी का युद्व विजयनगर शासक देवराय तथा बहमनी शासक फिरोजशाह के बीच हुआ था।
  • विजयनगर की राजभाषा तेलगु तथा बहमनी की राजभाषा मराठी थी।
  • विजयनगर की पहली राजधानी अनेगोन्दी थी उसके पश्चात् क्रमशः हम्पी (विजयनगर), वेकोगोण्डा (पेनुकोण्डा) तथा चन्द्रगिरि थी।
  • देवराय द्वितीय ने दो संस्कृत ग्रन्थो महानाटक सुधानिधि एवं बादरायण के ब्रहमसूत्र पर टीका की रचना करने का गौरव प्राप्त है।
  • कालीकट विजयनगर का प्रमुख बन्दरगाह था।
  • विजयनगर राज्य में भूमिका को शिष्ट कहते थे। यह उपज का 1/6 भाग तथा राज्य के आय का प्रमुख स्रोत था। राजस्व विभाग को अठावन कहा जाता था। कर, मुद्रा एवं अनाज दोनों रूपों में दिये जाते थे।

shorturl.at/eguLP

By admin

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