Tumhara Nanoo

Tumhara Nanoo-ये पत्र हैं और डायरी भी

आजंकल के सूचना क्रान्ति और डिजिटल के युग में जब रिश्तों को परिभाषित करने और उनसे सम्पर्क बनाए रखने के लिए हमारे पास दूरसंचार और डिजिटल माध्यम के अनेक उपकरण एंव एप मौजूद हैं, ऐसे में एक-दूसरे का हाल लेने के पारम्परिक तरीके, जैसे की पत्रों का लिखा जाना वर्तमान समया में दुर्लभ हो चला है। एक वह भी दौर था, जब पत्र लेखन, साहित्य की एक विशिष्ट महत्वपूर्ण विधा मानी जाती थी। यह चिट्ठियां अपने और स्वजन के ऐसे आत्मीय ब्यौरे होते थे, जिनमें घर-आंगन से लेकर गांव के खेत-खलिहान और बाग-बगीचे तथा देश-विदेश की बातें, चिन्ताएं, विचार-विमर्श और विवरण समाहित होते थे। दुनियाभर के साहित्य में विभिन्न कला-माध्यमों के बड़े लोगों, विचारकों और राजनेताओं के पत्र चर्चित रहे हैं, जिनसे काल-विशेष को समझने और उस व्यक्ति की तत्कालीन समय में वैचारिकी को परखने के सूत्र मिलते हैं। आजकल के जमाने में पत्र न के बराबर लिखे जाते हैं, जिससे इस विधा विशेष की उपस्थिति लगभग लुप्त हो चुकी है। ऐसे में वरिष्ठ आलोचक और सम्पादक श्री नामवर सिंह की चिट्ठियों का संकलन को पढ़ना लुभाने के साथ ही अपनी स्मृतियों को खुद के द्वारा लिखे पत्रों के सन्दर्भ में स्मरणीय लगने लगता है।

Tumhara Nanoo And Samiksha Thakur

हाल ही में प्रकाशित Samiksha Thakur द्वारा सम्पादित Tumhara Nanoo एक अनूठा दस्तावेज है, जो कि पित्रा-पुत्री के बीच हुए दुर्लभ अन्तरालाप को रेखांकित करता है। अपने ज्ञान, अध्ययन और साहित्यिक जीवन को इन पत्रों में नामवर सिंह उसी तरह पिरोते हैं, जैसे कोई दक्ष चित्रकार कैनवास पर किसी विचार को गरिमा के साथ पिरोते होते हुए चित्र बनाता है। Tumhara Nanoo में कुल 64 पत्रों का यह करार पिता-पुत्री के बीच का अनुबन्ध है, जिसमें स्नेह से भरी हुई उष्मा उसी तरह महसूस होती है, जैसे एक छोटी बच्ची को उसका पिता संसार को देखने, समझने का कोई रंग-बिरंगा चश्मा मुहैया करा रहा हो।
वर्ष 1986-2005 के बीच संकलित इन पत्रों की पोथी Tumhara Nanoo में एक बेटी के पिता को समर्पित अनुराग से भरे हुए दो आलेख भी शामिल हैं, जिन्हें हम उनके आपसी सम्बन्धों के आलोक में लेखिका के संस्मरणों, स्मृतियों और विचारों की रोशनी में देख सकते हैं। 20 वर्ष के दौरान लिखी गई ये चिट्ठियां नामवर सिंह के शब्दों में कहें, तो डायरी भी हैं और पत्र भी, साथ ही एक टैक्स भी, जिसे एक पिता अपनी यात्राओं और व्यस्तताओं के चलते चिट्ठिया के माध्यम से अपनी बेटी को भर रहा था।
यहां Tumhara Nanoo में पत्रों का एक पूरा जीवन दर्शन समाहित है-विविधता से भरा हुआ, आत्मीय रिश्तों को हौले से स्पर्श करने वाली युक्ति से समृद्ध……पत्रों के भीतर झांकते हुए साहित्य की वह दुनिया खुलती है, जो आमतौर पर किसी सभा-समारोह, बातचीत, व्याख्यान या आलोचना पुस्तक में दर्ज नहीं होती है। उसमें आने वाले बहुतेरे अर्थ बहुल सन्दर्भ साहित्य का एक समानान्तर पाठ निर्मित करते हैं, जिनकी हल्की सी भी कौंध किसी बडे़ विमर्श, पुस्तक, व्यक्तित्व, विचार या आन्दोलन को समझने में मद्दगार हो सकती है। कई पत्रों से चुनकर कुछ अंशों को पढ़ना कारगर होगा- ‘केदार जी की वह कविता याद है न ? कोहरा उठा।…पथ दोहरा उठा। कुछ ऐसा ही। फिर निराला की ‘अणिमा’ की वह छोटी सी रेखाचित्रों वाली कविता- जलाशय के किनारे कुहरी थी।’….नेपाल में उस सर्वोंच्च शिखर को सागरमाथा कहते हैं, जबकि अंग्रेजों ने उसे एवरेस्ट का नाम दे रखा हैं।’ जो परम विरागी’ कहलाते थे, उनकी भी धीरता बेटी को देखते ही भाग गई। इस पर सन्त तुलसीदास का कैसा चुभता व्यंग्य है-ज्ञान की महा मरजाद मिट गई।….
हम पुस्तक Tumhara Nanoo को एक अलग तरह से पण्डित जवाहर लाल नेहरू की पुस्तक ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ के हवाले से भी समझ सकते हैं, जिसके माध्यम से अपनी पुत्री इन्दिरा ‘प्रियदर्शिनी’ को पूरे विश्व का दृष्टिकोण उन्होंने प्रदान किया था। अपनी बातचीत में आमतौर पर मिर्जा गालिब, फैज, हाफिज जालंधरी और यगाना चंगेजी के शेर, रघुवंशम, अभिज्ञान शाकुन्तलम और कुमार सम्भव के श्लोक, त्रिलोचन की कतिताएं, निराला की पक्तियां, सूरदास के पद, रहीम के दोहे के भरपूर इस्तेमाल नामवर सिंह के विशुद्ध अध्ययन को दर्शाता है। लेखिका बताती हैं कि दिलासा देने के लिए वे हमेशा चेखव की मजाकिया लहते में लिखी कहानी सुनाया करते-यदि आपके घर कोई अनजाना मेहमान आ गया है, तो दुखी होने की जरूरत नहीं है, इसकी जगह पुलिस भी आ सकती थी। यानी जो तकलीफ हुई वह कम थी, उससे ज्यादा तकलीफ भी तो हो सकती थी।’ शायद जीवन जीने का यही उनका सूत्र था, उनके मुहं से अनायास ही निकल उठता-‘जो नहीं उसका गम क्या ? पत्रों के आलोक में आलोचना के शिखर पुरूष नामवर सिंह के दृष्टिकोण, विचार, निजी जीवन और उनकी व्यक्तिगत बातचीत में हिन्दी साहित्य जगत के परिदृश्य को समझने के लिए एक ऐसी पठनीय और संग्रहणीय पुस्तक, जिसे पढ़ते हुए आप अतीत की उन गलियों में लौट जाते हैं, जहां स्वजन का प्रेम आपको भीतर तक आकंठ डूबने का निमन्त्रण देता है। एक ऐसी स्नेहिल पुकार के साथ, जहां आप किसी निजी सम्बोधन से घर-परिवार में बसते रहे हैं।
स्त्रोतः-
1. पुस्तक Tumhara Nanoo के पन्नों से (ऑनलाइन अमाजॉन से खरीदने के इस लिंक पर क्लिक करें)
2. दैनिक जागरण
इन्टरलन स्त्रोतः-द हिन्दूस ऑफ हिन्दुस्तान

By admin

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