Truck De India

Truck De India: a Hitchhiker’s Guide to Hindustan

ट्रक चालकों की बहुआयामी यात्राओं का ब्यौरा

यात्रा, इस शब्द को सुनते ही हम सभी की आत्मा में एक अजीब सा उत्साह उत्पन्न होता है। यह एक संवेदना है, जो हमें एक नई सोच, विचारधारा, संस्कृति और दृष्टिकोण की ओर ले जाती है। इस दुनिया में हम सभी विविधाताओं होने के बाबजूद हम सभी यात्राओं के माध्यम से एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। प्राचीन काल से ही यात्राएं मानव जीवन का अटूट हिस्सा रही हैं, जिससे हम सभी को जीवन के असीम सार को समझने की अनूठी क्षमता विकसित हुयी है। हमारे इस सफर में साथ चलते हैं यात्रा वृतांत’, वही अनूठी आंखों-देखे अविस्मरणीय और रोमांचक किस्स, जो हमारी रहगुजर में रंग भरते हैं। एक ऐसा रंग-बिरंगा जहाज, जिसमें हर किसी की अपनी कहानी होती है और उसे पढ़ते समय हम भी उस सफर का हिस्सा बन जाते हैं। ‘Truck De India: a Hitchhiker’s Guide to Hindustan’ लेखक रजत उभयकर का एक ऐसा ही यात्रा-वृतांत है, जिसमें वे विशाल भारत के राजमार्गों पर चक्कर लगाने वाले गुमनाम ट्रक चालकों की जिन्दगियों, परेशानियों, विश्वासों और आशाओं को अपनी ट्रक-यात्रा के माध्यम से बेहद संवेदनशील और रोचक अंदाज में प्रस्तुत करते हैं। लेखक रजत उभयकर के अनुसार यह पुस्तक Truck De India, भारत में बिछे हुये हाईवे की माइक्रो-इकोनमी और उससे जुडे़ मानवीय सम्बन्धों की पड़ताल करती है। ट्रक चालाक हमारी शरीर की रक्त शिराओं की तरह है, जो हमारे देशरूपी शरीर में दौड़ती हैं और राजमार्ग रूपी धमनियों से अनिवार्य सामान की आक्सीजन को लाने और ले जाने का काम करती हैं। बेहद हैरान करने वाली बात यह है कि देश की अर्थव्यवस्था में अमूल्य योगदान देने वाले ट्रक चालकों पर लेखन की संख्या न के बराबर है, इस कारण भी लेखक रजत उभयकर द्वारा लिखित यह पुस्तक Truck De India साहित्य सर्जन में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

रजत उभयकर द्वारा लिखित यह पुस्तक Truck De India

लेखक रजत उभयकर लगभग 10,000 किलोमीटर लम्बी, 100 प्रतिशत अनियोजित भारत की यात्रा के लिए परिवहन का एक असामान्य तरीका चुनते हैं ट्रक। लेखक बताते हैं कि ट्रक चालकों से लिफ्ट लेते हुए यात्रा का पहला चरण मुम्बई से शुरू हुआ और पश्चिमी व उत्तरी भारतीय राज्यों गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश से होते हुए अन्त में जम्मू और कश्मीर में श्रीनगर तक, दूसरा चरण मणिपुर और नागालैण्ड से होते हुए उत्तर-पूर्वी भारत और तीसरा पड़ाव मुम्बई से कन्याकुमारी तक जो महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्यों से होकर गुजरा। इस पुस्तक Truck De India में अंजान लोगों से दर्शाती दोस्ती, राजमार्गों के भूतिया किस्से, मिलनसार देश के ढाबे वाले, पंजाब की रंगीन ट्रक कला, कश्मीरी बंजारे चरवाहों के साथ यात्रा, उत्तर पूर्व भारत में ट्रक चालक दल, बागियों से घिरा नागालैण्ड और मणिपुर राजमार्ग, अजनबियों की बेशर्त सहायता, खलासियों का आतिथ्य, जिसमें वे कहते हैं, ‘आप तो हमारे मेहमान हैं’, जैसे अनेक संस्मरण मिलते हैं। इसके अलावा लेखक ट्रक-व्यवसाय में होने वाली बातचीत जैसे स्थिर गति बनाकर माइलेज को नियन्त्रित रखने की आवश्यकता, माल ढुलाई शुल्क, वाहन रखरखाव, परमिट और टोल कैसे काम करते हैं। साथ ही, ट्रक ड्राइवरों के प्रति देश में फैले हुए मिथक का खण्डन भी करते हैं, जिनमें उन्हें असभ्य, गंवारा, तेज बोलने वाले, धूम्रपान नशा करने वाले और हाईवे में लापरवाही से गाड़ी चलाने वाले बताया जाता है। लेखक ट्रक चालकों की नियमित समस्याओं का उल्लेख करते हुए सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समझ की पड़ताल भी करते हैं।
राजिन्दर, श्याम, जोरा, किशोर, राजू, महेन्द्र, मोहम्मद, राहुल बोरा, मस्तान, राव जैसे कई चालकों के साथ लेखक की बातचीत में शामिल अंश मसलन ‘लंगोटिया यार हैं हम, एक ही गांव में पले-बढ़े,’ धीरे-धीरे चलोगे, बार-बार मिलोगे, तेज चलोगे, सीधा हरिद्वार मिलोगे’, ‘अमीरों की जिन्दगी चलती है, बिस्कुट और केक से, ड्राइवरों की जिन्दगी स्अेरिंग और ब्रेक से’, ‘यहां का ट्रक ड्राइवर अपना मालिक है, किसी से नहीं डरता और किसी की नहीं सुनता’, ‘ सैतिसवीं ंजात कहलाते हैं हम ट्रक डाइवर और छततीसवीं जात हैं ये ट्रासंपोटर्र, जो हम जैसे जानवरों को पालते हैं, सभी शानदार हैं। शीर्षक ‘गोली अन्दर,यार जलंधर, में गर्मी के समय राजस्थान-हरियाणा बोर्डर के बारे में लिखते हैं-‘यह इलाका हल्की भूरी सी रंगत लिए है, ट्रक की खिड़की से अन्दर आने वाली गर्म हवा किसी शैतान की गर्म सांसों जैसी लगती है’’ । लगभग भारत शीर्षक का सैनिकों को श्रद्धाजंलि देता हुआ कोहिमा समाधि-लेख ‘जब तुम घर जाओ, तो हमारे बारे में बताना और कहना-‘तुम्हारे आने वाले कल के लिए, हमने अपना आज कुर्बान किया है’ का जिक्र करते हुए लेखक कहते हैं कि मानो इतिहास की रक्जरंजित धंुध के पीछे से बलिदानी सैनिकों हर ओर से, एक सुर में यह बात मुझसे कह रहे हों। कन्याकुमारी, सफर के अन्तिम पड़ाव पर लेखक के शब्द- ‘‘मैं सोचकर चकित हूं कि उस क्षितिज के पार ही कहीं अंटार्कटिका है। यह ने केवल मेरे ट्रिप का सहज अन्तिम बिन्दु है, परन्तु भूमि सम्बन्धी कल्पना भी यहीं समाप्त हो जाती है’ बेहद जिग्ज्ञासापूर्ण है। वास्तक में पुस्तक Truck De India के हवाले से भारतीय ट्रक ड्राइवरों की दुनिया में प्रवेश करना दिलचस्प है, जो आजीविका और लाखों अजनबियों का जीवन सरल बनाने के लिए अधिकांश जीवन अपने प्रियजनों से दूर राजमार्गों की जटिल परिस्थितियों और अनिश्चितताओं के साथ रहते हैं।
स्त्रोत-
1. Truck De India: a Hitchhiker’s Guide to Hindustan  के पन्नों से
2. दैनिक जागरण, The Hindu

बाहरी कड़ी- ‘Truck De India’ review: The road to highways

Hamara Samvidhan : Bhav Evam Rekhankan 

By admin

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