Table of Contents
Triyuginarayan Temple
उत्तराखण्ड में रूद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ ब्लाक में Triyuginarayan Temple (त्रिजुगी नारायण) ऐसा मन्दिर है, जहां विवाह बन्धन में बन्धना युवा अपना सौभाग्य मानते हैं। इस मन्दिर में भगवान नारायण भूदेवी व देवी लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं। क्षेत्रवासियों की मान्यता है कि देवी पार्वती से भगवान शिव का विवाह इसी स्थान पर भगवान विष्णु की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ था। ब्रम्हा जी इस विवाह में यज्ञ के आचार्य बने थे।
Triyuginarayan Temple में अखण्ड ज्योति के लिए जाते हैं फेरे
उत्तराखण्ड में समुद्रतल से 6,495 फीट की ऊंचाई पर केदारघाटी स्थित सीमांत ग्राम पंचायत का Triyuginarayan Temple नाम इसी मन्दिर के कारण पड़ा। 295 परिवारों वाली इस पंचायत में Triyuginarayan Temple की स्थापना त्रेतायुग में हुई मानी जाती है। स्थापत्य शैली में केदारनाथ मन्दिर जैसे दिखने वाले इस मन्दिर भवन का सबसे बड़ा आकर्षण है यहां जल रही अखण्ड ज्योति। मान्यता है कि यह लौ भगवान शिव-माता पार्वती के दिव्य विवाह के समय से प्रज्वलित है और सदैव जलती रहेगी। इसी अखण्ड ज्योति को साक्षी मानकर गृहस्थ जीवन शुरू करने के लिए देश के विभिन्न राज्यों यथा दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु, पंजाब, उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों व विदेश से बड़ी मात्रा में लोग यहां आते है। यह संख्या वर्ष दर वर्ष बढ़ती चली जा रही है। जहां वर्ष 2021 में 48 जोडे यहां विवाह बन्धत में बधे, वहीं 2022 में यह संख्या बढकर 101 तक पहुच गयी।
पंजीकरण शुल्क 1100 रूपये
तीर्थ पुरोहित समिति Triyuginarayan Temple के सचिव सर्वेश्वर भट्ट के अनुसार वर्ष 2023 में सम्पन्न 55 विवाह समारोह मार्च तक सम्पन्न होने है। विवाह के लिए समिति को 1100 रूपये पंजीकरण, के अतिरिक्त अन्य कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है। इस शुल्क से विवाह मण्डप की व्यवस्था की जाती है। वर-वधु के परिवारों को रहने-खाने की व्यवस्था करनी पड़ती है। यहां भोजन शाकाहारी होता है।
प्रकृति की गोद में संस्कृति का समागम
त्रियुगीनारयण गांव आपको प्रकृति की गोद में होने की अनुभूति कराता है, साथ में उत्तराखण्ड की मनोहर वादियों के दर्शन भी कराता है। विवाह में गढ़वाली मंगल गीतों के साथ ढोल-दमाऊ और मसकबीन की सुमधुर लहरियां पहाड़ी संस्कृति के निकट ले जाती हैं। पारम्परिक गढ़वाली व्यंजन गहत, पहाड़ी उड़द, राजमा व तोर की दाल, चैंसू, काफली, झंगोरे की खीर, झंगोरे का भात, मंडुवे की रोटी, आलू के गुटखे, तिल-भट की चटनी आदि का भी स्वाद लिया जा सकता है। विशेष अवसरों पर मन्दिर में भंडारे का आयोजन भी होता है।
ऐसे पहुंच सकते हैं त्रियुगीनारायण, ठहरने की भी व्यवस्था
ऋषिकेश से 175 किमी0 की दूरी तय कर सोनप्रयाग पहुंचा जाता है। यहां से 12 किमी0 दूर Triyuginarayan Temple है। यहां से 12 किमी0 दूरी पर सोनप्रयाग, 31 किमी0 पर केदारनाथ और 44 किमी0 पर ऊखीमठ के तीर्थ हैं। ऋषिकेश से निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रान्ट, देहरादून है। मन्दिर में सात कुण्ड ब्रम्हाकुण्ड, रूद्रकुण्ड, विष्णु कुण्ड, सूरज कुण्ड, सरस्वतीकुण्ड, नारद कुण्ड व अमृत कुण्ड हैं। आसपास गौरीकुण्ड, सोनप्रयाग, ऊखीमठ व कालीमठ जैसे दर्शनीय स्थल हैं। ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मन्दिर भगवान केदारनाथ का शीतकालीन प्रवास स्थल है। यहां आप पांचों केदार केदारनाथ, मध्यमेश्वर, तुंगनाथ, रूद्रनाथ व कल्पेश्वर के दर्शन कर सकते है। ठहरने के लिए धर्मशाला व होटल पर्याप्त मात्रा में हैं।
स्त्रोत-
1. उत्तराखण्ड का समग्र ज्ञानकोश-डॉ राजेन्द्र प्रसाद बलोदी।
2. दैनिक जागरण समाचार पत्र।