Swatantra Bharat ki 75 pramukh Rajneetik Ghatnayen

Swatantra Bharat ki 75 pramukh Rajneetik Ghatnayen

आजादी का अमृत महोत्सव भारत के गौरवमय स्वीधीनता संग्राम की गाथा को वर्तमान की छाती पर उकेरने का एक सुनहरा अवसर है। भारतीय स्वाधीनता के 75 वर्ष पूर्ण होने के इस पावन वेला में, यह वक्त है उन जाने-अनजाने अनन्त बलिदानियों को श्रद्धाजली अर्पित करने का, उनकी प्रति अपती कृतज्ञता व्यक्त करने का, जिनके खून से सींची गई जमीन पर आज हम भारतीय अपने सुकून की चादर ओड़ कर सो रहे हैं। अपने गरिमामय जीवन की बुनियाद रख रहें है।
भारत की स्वाधीनता के हीरक जयन्ती वर्ष में ज्ञान, विज्ञान, परम्परा, संस्कृति, अध्यात्म, राजनीति, दर्शन, शिक्षा, समाजशास्त्र, कला-विमर्श और साहित्य के दायरें में अनेकों शोधपरक किताबों के प्रकाशन ने स्वतन्त्रता की उत्सवधर्मिता को वैचारिक अभिप्राय प्रदान किए हैं। इस सारस्वत यात्रा ने कई ऐसी पुस्तकों को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है, जिनका सामाजिक अध्ययन महत्वपूर्ण ढंग से अपने क्षितिज का विस्तार करता है। हाल ही में शिक्षाविद् डॉ ममता चन्द्रशेखर ने इसी विचार के तहत भारतीय स्वाधीनता को उन प्रमुख राजनीतिक घटनाओं के आलोक में देखने की कोशिश की है, जिससे हमारे लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना के अन्तर्गत पिछले साढ़े सात दशकों में ढेरों उथल-पुथल भरी राजनीतिक घटनाओं समेत ऐसी बहुत सारी निर्णायक स्थितियां पैदा हुई, जिनके चलते हमारी भारतीय राजनीति की दशा और दिशा में अनगिनत परिवर्तन सम्भव हुए । यह पुस्तक Swatantra Bharat ki 75 pramukh Rajneetik Ghatnayen ऐसा तथ्यात्मक शोध अध्ययन भी है, जो एक ही समय में भारत की कई राजनीतिक समय को बड़े परिप्रेक्ष्य में रेखांकित करता है। इस पुस्तक में यह देखने वाली बात है कि किसी भी विषय से सम्बन्धित आधुनिक से आधुनिक अध्ययन भी तरह समग्रता की अवधारणा नहीं रचता। यह पुस्तक भी इससे अछूती नहीं है, बाबजूद यह किताब Swatantra Bharat ki 75 pramukh Rajneetik Ghatnayen अपने कलेवर और प्रस्तुति में एक रोचक पाठ की तरह रखी जा सकती है। हिन्दी में राजनीतिक लेखन की भी एक विशद परम्परा रही है, जिसमें बहुत सारे मूर्धन्य विद्वानों और पत्रकारों ने सफलतापूर्वक लेखन करते हुए कुछ दिलचस्प स्थापनाएं मुहैया कराई है। इनमें हम उन राजनीतिक शख्सियतों केा अलग रेखांकित कर सकते हैं, जिनका चिन्तन, सामयिक लेखन, राजनीतिक अनुभव, भाषण, पत्र साहित्य और संस्मरण अभूतपूर्व रहे हैं। महात्मा गांधी, भगत सिंह, विनायक दामोदर सावरकर, चन्द्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी आदि बडे़ राजनेताओं का लेखन मार्गदर्शी और कालजयी माना जाता है। इन सबकी वैचारिकी के शोध से भी बहुत सारे राजनीतिक विश्लेषकों ने ढेरों ऐसी पुस्तकें लिखी हैं, जिनसे हमारी भारतीयता की अवधारणा और हमारे लोकतान्त्रिक अधिकारों को समझने में मदद मिलती है। डॉ ममता चन्द्रशेखर ‘‘Swatantra Bharat ki 75 pramukh Rajneetik Ghatnayen’’ (खरीदनें के यहां क्लिक करें) के साथ एक रीडर लेकर उपस्थित हैं, जो राजनीति और समाज विज्ञान के शोधार्थियों के लिए उपयोगी पाठ की तरह मौजूद है।

भारतीय राजनीतिक घटनाओं का लेखा-जोखा-Swatantra Bharat ki 75 pramukh Rajneetik Ghatnayen

               75 छोटे अध्यायों में विभक्त यह पुस्तक Swatantra Bharat ki 75 pramukh Rajneetik Ghatnayen स्वाधीनता के जश्न से शुरू होकर कोरोना संकट व उसके राजनीतिक परिदृश्य के साथ समाप्त होती है। इसे राजनीति विषय लेकर परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों के लिए सार्थक नोटस की तरह भी पढ़ा जा सकता है, जिसे बेहद संक्षिप्त ढंग से सरल भाषा में समझाया गया है। विषय के अनुरूप पूरी पुस्तक का अनुक्रम तो नहीं दिया जा सकता, मगर स्वाधीनता के साथ भारत में होने वाली राजनीतिक घटनाओं का उसी कालानुक्रम में सुचिन्तित अन्वेषण देखना हैरान करता है। कुछ अध्यायों का स्मरण जरूरी होगा जैसे दर्द का विभाजन, महात्मा गांधी का यूं जाना, देसी रियासतों का एकीकरण, प्रथम आम चुनाव, केरल में साम्यवादी सरकार, गोवा मुक्ति, ताशकन्द समझौता, प्रिवी पर्स की समाप्ति, राष्ट्रिय आपातकाल, सिक्किम का विलय, आपरेशन ब्लू स्टार, कश्मीरी हिन्दुओं का नरसंहार, मण्डल आयोग, कारगिल युद्ध, करिश्माई मोदी युग, अनुच्छेद 370 की समाप्ति एवं राम मन्दिर का शिलान्यस…… इन अध्यायों के बीच में पूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या समेत भारत के कई राज्यों से सम्बन्धित वे महत्वपूर्ण राजनीतिक तिथियां अन्तर्गुफित हैं, जिनमें उत्तर, दक्षिण की राजनीति और पूर्वोत्तर आदि की समस्यांए शामिल हैं। लेखिका ने इस किताब Swatantra Bharat ki 75 pramukh Rajneetik Ghatnayen की लम्बी भमिका में उन सभी आनुषंगिक घटनाओं का भी जिक्र किया है, जिन्होने परोक्ष-अपरोक्ष रूप् से भारतीय राजनीति को प्रभावित किया। यह भूमिका गम्भीरता से लिखी गई है, जिसमें पूरी किताब Swatantra Bharat ki 75 pramukh Rajneetik Ghatnayen को समझने के सूत्र बिखरे हुए हैं। उनका मत है- इन 75 सालों में हमने क्या खोया है, क्या पाया है, क्या पाया जा सकता है। क्यों 75 साल के बाद भी भारत वैश्विक महाशक्ति नहीं बन पाया है ? इन तमाम पहलुओं पर हम सबको मिलकर विचार करना है….। इन मूलभूत पहलुओं पर हम सबको मिलकर विचार करना है….। इन मूलभूत प्रश्नों को थोड़ी गम्भीरता से विश्लेषित करते हुए लेखिका उन अवधारणाओं को टओलने का श्रम करती हैं, जिनके चलते ये महत्वपूर्ण घटनांए भारतीय राजनीति के आकाश में सम्भव हुई।
विभिन्न अध्यायों से उनकी स्ािापनांए देखने लायक हैं, भले ही अपनी सहमति-असहमति रखते हुए कोई अध्येता या पाठक इसे विमर्श के दायरे में लाना चाहे। उल्लेखनीय है कि जिस भूमि सुधार आन्दोलन के प्रणेता गांधी और विनोभा भावे थे, उस आन्दोलन को सर्वप्रथम कार्यरूप् देने का श्रेय सी0पी0आई0 को जाता है। परन्तु लामाओं और खांबाओं ने यह फेसला कर लिया-चाहे जो हो जाए, वे जिएं या मरें, लेकिन उनके भगवान दलाई लामा को चीनियों के हाथ कभी नहीं लगने देंगे। लाहौर बस यात्रा के कारण भारत को कारगिल युद्ध लड़ना पड़ा…रोचकबयानी, चुस्त सम्पादन, विषयानुकूल भाषा का चयन और तथ्यों को जस का तस रखने की युक्ति ने इस शोधपरक राजनीतिक अध्ययन Swatantra Bharat ki 75 pramukh Rajneetik Ghatnayen को पठनीय बना दिया है, जो स्वाधीनता के 75 वर्ष को एक दस्तावेज के रूप् में सामने लाती है।

Vinoba Bhave (विनोबा भावे) 

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