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Swami Dayanand Saraswati-महान सुधारक
Swami Dayanand Saraswati का जन्म 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के राजकोट जिले के टंकारा में हुआ था
- डनके बचपन का नाम मूल शंकर था। उन्हें Swami Dayanand Saraswati नाम पूर्णानन्द सरस्वती द्वारा दिया गया।
- वे वैदिक विद्या और संस्कृत भाषा के प्रखर विद्धान थें।
- महर्षि दयानन्द सरस्वती ने कर्म और पुर्नजन्म के सिद्धान्त की वकालत की। उनके द्वारा 10 अप्रैल, 1875 ई0 को बॉम्बे में आर्य समाज की स्थापना की गई थी।
योगदान
- Swami Dayanand Saraswati ने महिलाओं के लिए शिक्षा के व भारतीय धर्मग्रंथों को पढ़ने के समान अधिकारों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। साथ ही “वेदो की ओर लौटो” का नारा दिया।
- Swami Dayanad Saraswati ने वेदो का अनुवाद किया और तीन पुस्तकें लिखी-हिन्दी में सत्यार्थ प्रकाश, वेद भाष्य भूमिका (उनकी वैदिक टिप्पणी का परिचय), और वेद भाष्य (यजुर्वेद पर तथा ऋगवेद के प्रमुख भाग पर संस्कृत में लिखित वैदिक टिप्पणी)।
- उस समय हिन्दू धर्म में प्रचलित मूर्तिपूजा और कर्मकाण्डी पूजा की निन्दा करते हुए उन्होंने वैदिक विचारधाराओं को पुनजीवित करने की दिशा में काम किया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह को भी प्रोत्साहित किया और बाल विवाह का विरोध किया। वह जाति व्यवस्था और ब्राह्मण रूढ़िवाद के सबसे प्रमुख विरोधियों में से एक थे, उन्होंने इसे निहित स्वार्थो द्वारा बनाई गई एक भ्रान्ति कहा।
राष्ट्रवाद के प्रेरक Swami Dayanad Saraswati
Swami Dayanad Saraswati ने भारतीयों के लिए भारत के रूप् में 1876 में सबसे पहले स्वराज्य का आहृवन किया था, बाद में लोकमान्य तिलक ने इसे अपनाया।
- उन्होंने मैडम भीकाजी कामा, लाला हरदयाल, मदन लाल ढींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, महादेव गोविन्द रानाडे, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा गांधी, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय आदि जैसे राष्ट्रवादियों की पीढ़ी को प्ररित किया।
- स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान उनकी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश भी राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणादायी रहीं।
Swami Dayanad Saraswati और आर्य समाज
- आर्य समाज एक एकेश्वरवादी भारतीय हिन्दू सुधार आन्दोलन है जो वेदों की अचूक शक्ति में विश्वास के आधार पर मूल्यों और प्रथाओं को बढ़ावा देता है।
- इसके संस्थापक Swami Dayanad Saraswati थे। यह हिन्दू धर्म में धर्मान्तरण शुरू करने वाला पहला हिन्दू संगठन था।
- आर्य समाज ने हिन्दुओं के आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन पर ब्राह्मणवादी प्रभुत्व को खारिज किया।
- आर्य समाज के अनुसार ईश्वर सभी सच्चे ज्ञान और उन सभी चीजों का मूल स्त्रोत है जिन्हें ज्ञान के माध्यम से जाना जा सकता है। वेद ही सच्चे ज्ञान ग्रन्थ हैं।
- Swami Dayanad Saraswati ने चार वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया लेकिन वर्ण व्यवस्था जन्म नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर होनी चाहिए।
- समाज में महिलाओं को समाज दर्जा दिलाने की वकालत की। विधवा पुनर्विवाह, स्त्री शिक्षा की वकालत की और बहुविवाह, बाल विवाह, सती आदि Swami Dayanad Saraswati का विरोध किया।
- हिन्दी और संस्कृत के प्रचार-प्रसार का समर्थन किया। अच्छी शिक्षा को एक अच्छी और ठोस सामाजिक व्यवस्था का आधार माना।