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Plassey: The Battle That Changed The Course of Indian History
अंग्रेजी के चर्चिते इतिहास लेखक सुदीप चक्रवती ने इतिहास लेखन गम्भीरता से लिया है। उनकी नवीनतम Plassey: The Battle That Changed The Course of Indian History इस अर्थ में पठनीय है कि प्लासी के ऐतिहासिक युद्ध को लेकर भारत में ब्रितानी हुकूमत के आगमन और प्रभावों का दिलचस्प ब्यौरा पूरे रंग में यहां मौजूद है। यह किताब Plassey: The Battle That Changed The Course of Indian History एक हद तक इस पूरे प्रसंग में एक क्रानिकल तरह भी लगती है जिसे पढ़कर आप समृद्ध ही नहीं होते है बल्कि कुछ ऐसे प्रामाणिक तथ्यों से भी परिचित होते हैं, जो शायद इतिहास की पढ़ाई के बाद भी आंखों से ओझल रहते है।
चक्रवती अपनी भूमिका में लिखते है- प्लासी का कथानक दो ऐसे किरदारों के बीच फंसा हुआ है जहां महत्वकांक्षा, विश्वातघात, राजनीति और मुनाफा एक साथ पल रहे हैं। यह एक तरीके का रिएलिटी शो भी था, जिसने व्यापक स्तर पर भारत में मौजूद विपुल खजाने और सिंहासन पाने के खेल को साधने की कोशिश की है। 23 जून 1757 को सामने आती है, प्लासी के आम के बगीचे में लड़ी गयी लडाई में, जिसमें राबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेना को हरा दिया था। प्लासी सिर्फ एक युद्ध भर नहीं था, उससे परे भी बहुत कुछ था क्योंकि यह अपने शुरू होने के बाद थोड़े ही चन्द घण्टों में समाप्त भी हो गया था। हतिहासकार के रूप में कहीं न कहीं लेखक ने इस ओर इशारा किया है कि इस युद्ध या विगत में हुई सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की किसी घटना के कई पहलू भी होते है। उन्हें समग्रता में देखने की कोशिश ही उस घटना को एक बड़ी तारीख या कहानी में बदलती है।
इसे समझने के लिए लेखक ने जिन सिद्धान्तों के कामों को आधार बनाया है, उनमें जार्ज ब्रूस मालसन, जान के., क्रिस्टोफर बेली, नीरद सी. चौधरी, ईश्वरचंद विद्यासागर, अबुल कलाम मोहम्मद जकारिया जैसे इतिहासकार मौजूद हैं, जिन्होंने भारत की इस लडाई को अपनी दृष्टि से समझने का प्रयास किया है। सुदीप चक्रवती ईस्ट इंडिया कम्पनी के राबर्ट क्लाइव और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच हुए प्लासी के युद्ध को दो लोगों के बीच हुए आपसी सैन्य अभियान से अलग छल और लालच का ऐसा जघन्य कर्म मानते है जिसने आने वाली लगभग डेढ़ शताब्दी तक भारत का इतिहास बदलकर रख दिया था। यहां की सामाजिक संरचना को आघात पहुंचाते हुए भारत में ब्रिटिशों के आगमन, उनकी छल-छद्म से सत्ता पाने के कृत्यों और मसाले, सिल्क व अन्य चीजों के व्यापार के बहलावे में छुपे हुए भारत को उपनिवेश बनाने के काम की राह प्रशस्त कर दी थी। यह किताब Plassey: The Battle That Changed The Course of Indian History कुछ दिलचस्प किरदारों का भी ऐतिहासिक वृतान्त समेटे हुए है, जिसमें सिराजुद्दौला की सेना का वफादार सिपाही मीर मदन, जगत सेठ जो मुर्शीदाबाद का एक बड़ा साहूकार था और बंगाल के टकसाल को नियन्त्रित करता था, प्लासी युद्ध की जमीन बनाने वाला एक षड़यन्त्रकारी, मीर जाफर, एक दूसरा विश्वासघाती, जो अलीवर्दी खां और सिराजुद्दौला खां दोनों की ही सेनाओं में बड़े ओहदे पर था, की भूमिकाओं एक औपन्यासिक कथा की तरह पढ़ना रोमांचक अनुभव है। इस पूरे प्रकरण में घसेटी बेगम का किरदार भी दिलचस्प ढंग से उभरा है, जो अलीवर्दी खां की पुत्री और रिश्ते में सिराजुद्दौला की मौसी थी, जो नवाब के लिए हमेशा कष्ट और दण्ड की तरह रहीं है। उनके साथ के प्रसंग और इतिहास में उनकी दुरभिसन्धियों को भी पैनी निगाह से टटोला गया है, जो ऐतिहासिक आख्यान को मानवीय दुर्बलताओं से भरे हुए एक प्रामाणिक दस्तावेज में बदलता है।
यह अकारण नहीं है कि इतिहास में हुई ऐसी तमाम भूल-गलतियों में प्लासी का युद्ध अभिशाप की तरह रहा है जो ब्रिटिश की कू्ररता, उनकी दमनकारी नीतियों और आक्रामक ढंस से ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तिजारत के बहाने शासन करने कीे बेलगाम अंकुश के रूप् में स्थापित करता है।
यह किताब Plassey: The Battle That Changed The Course of Indian History (English में खरीदने के यहां क्लिक करें) तीन अध्यायों में विभक्त है। पहला पृष्ठभूमि प्रदान करता है अर्थात मुगल साम्राज्य का पतन, बंगाल सूबा का उदय, मुर्शिदाबाद का अपने बैंकरों के साथ व्यापार के केंन्द्र के रूप् में महत्व। धन की इस दुनिया मंे प्रवेश पाने के लिए यूरोपीय कम्पनियों के झगड़े, झड़पों और लालच पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। दूसरा खण्ड ‘संघर्ष के ऐतिहासिक क्षण का निर्माण’ है। लेखक फोर्ट विलियम की इमारत और कलकत्ता शहर की स्थापना का वर्णन करते हुए इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में ब्लैक होल त्रासदी के रूप में क्या दर्ज किया गया है, आकर्षक अध्ययन प्रस्तुत करता है। तीसरा और अन्तिम कालखण्ड है द बैटल। घटनाओं को आठ अध्यायों के माध्यम से एक-एक करके Plassey: The Battle That Changed The Course of Indian History में प्रस्तुत किया गया है। इस दस्तावेज की खूबसूरती इस बात में भी निहित है कि तथ्यों और सूचनाओं को बटोरने के क्रम में लेखक सुदीप चक्रवर्ती ने ब्रिटिश राज के दस्तावेजों, गजेटियरों, चिटिठ्योंु, संस्मरणें और अन्य स्त्रोतों से पाठ्य सामग्री की है। इसे लिखते हुए वे किताब Plassey: The Battle That Changed The Course of Indian History को इतिहास की बोझिल डायरी नहीं बनाते, बल्कि सहज ढंग से चौकन्ने बने हुए इतिहास की छिपी हुई परतों को उभारने की कोशिश भी करते हैं। इसे समझने के लिए उस दौर में और उस पूरी परम्परा पर जितने मिनिचेयर और तैलचित्र बने हैं, उनका समावेश भी किताब Plassey: The Battle That Changed The Course of Indian History में सन्दर्भ की तरह किया गया है। यह रोचक है ंऔर इस पूरे घटनाक्रम को एक विजुअल इम्पैक्ट देता है, जिससे नैरेटिव में मौजूद तनाव और नाटकीयता, दोनों ही उजागर होते है।
मिसाल के तौर पर 1760 ई0 में फ्रांसिस हेमेन द्वारा बनाया गया आयल आन कैनवास देखिए, जिसमें प्लासी युद्ध के बाद राबर्ट क्लाइव और मीर जाफर की मुलाकात दर्शायी गयी है। एक दूसरे तैलचित्र में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय 16 अगस्त, 1765 ई0 को राबर्ट क्लाइव के साथ एक सन्धि पर हस्ताक्षर करते हैं, जिसके अनुसार बंगाल की दीवानी कम्पनी बहादुर को सौपी जाती है। यह किताब Plassey: The Battle That Changed The Course of Indian History इतिहास के एक जरूरी पाठ की तरह सामने आती है, जिसकों पढ़ना, बडे कैनवास पर रची गयी फिल्म को उतने ही बडे पर्दे पर देखने जैसा लगता है।
स्त्रोत-दैनिक जागरण
द हिन्दू
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