पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिला अपनी संपूर्ण उत्तरी और पूर्वी सीमाएँ अंतर्राष्ट्रीय होने के कारण, एक रणनीतिक महत्व रखता है और भारत की उत्तरी सीमा के साथ एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील जिला है। तिब्बत से सटे अंतिम जिला होने के कारण, लिपुलेख, कुंगरीबिंगरी, लंपिया धुरा, लावे धुरा, बेलचा और केओ के दर्रे तिब्बत के लिए खुले होने के कारण इसका अत्यधिक सामरिक महत्व है। Pithoragarh- हिमालय की सांस लेने वाली सुंदरता, घास के मैदान, गरजती बारहमासी धाराएं, वनस्पतियों और जीवों की एक शानदार विविधता, शुद्ध प्रकृति अभी तक अछूती, देखने वाले को अपनी तह में ले जाती है, सुंदरता की एक अलग आकर्षक दुनिया है ।

24 फरवरी 1960 को अल्मोड़ा जिले के एक बड़े हिस्से को Pithoragarh District के रूप में बनाया गया था, जिसमें Pithoragarh शहर में मुख्यालय के साथ चरम सीमावर्ती क्षेत्र भी शामिल थे। 15 सितंबर 1997 को Pithoragarh के अंतर्गत आने वाली चंपावत तहसील को चंपावत जिले के रूप में बनाया गया ।

Pithoragarh शहर समुद्र तल से 1645 मीटर की ऊंचाई पर सोर घाटी में स्थित है। इसे छोटा कश्मीर भी कहा जाता है। यहा पर एक पुराना किला है जिसे गोरखों ने बनाया था जिसे सिमलगढ़ के नाम जाना जाता है। अंग्रेजों ने इसे लन्दन फोर्ट नाम दिया। नगर के समीप ही चण्डाक मन्दिर स्थित है। जिला 29.4 डिग्री से 30.3 डिग्री उत्तरी अक्षांश और 80 डिग्री से 81 डिग्री पूर्वी देशांतर के बीच मध्य हिमालय के पूर्वी और दक्षिणी भाग के साथ भारत-तिब्बत वाटरशेड डिवाइड के साथ स्थित है। काली नदी नेपाल और Pithoragarh (भारत) के बीच प्राकृतिक सीमा बनाती है।

पूर्व में नेपाल के साथ एक सतत सीमा है। Pithoragarh जिला अल्मोड़ा, चंपावत की राष्ट्रीय सीमाओं से घिरा हुआ है।

पर्यटक चंडक, थल केदार, गंगोलीहाट जैसे काली मंदिर, पाताल भुवनेश्वर, बेरीनाग (चौकोरी का चाय बागान ) जैसे कई दर्शनीय स्थल के लिए भ्रमण की योजना बना सकते हैं। डीडीहाट, मुनस्यारी (मिलम, रालम और नामिक ग्लेशियर के लिए ट्रेक के लिए आधार शिविर), धारचूला (कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए आधार शिविर, आदि कैलाश यात्रा, नारायण स्वामी आश्रम) और जौलजीबी आदि कई प्रसिद्ध स्थल है। ।

मुनस्‍यारी (Munsiari)-भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल के Pithoragarh ज़िले में स्थित एक पर्वतीय नगर है। जोहार क्षेत्र का प्रवेश द्वार मुनस्यारी जिसका नाम  मुनि का सेरा, शायद तपस्वियों का तपस्थल होने के कारण इसका नाम मुनस्यारी पड़ा । यह एक खूबसूरत पर्वतीय स्थल है जो नेपाल और तिब्बत की सीमा के समीप स्थित है। मुनस्‍यारी चारो ओर से पर्वतो से घिरा हुआ है। मुनस्‍यारी के सामने विशाल हिमालय पर्वत श्रंखला का विश्‍व प्रसिद्ध पंचचूली पर्वत (हिमालय की पांच चोटियां) जिसे किवदंतियो के अनुसार पांडवों के स्‍वर्गारोहण का प्रतीक माना जाता है, बाई ओर नन्‍दा देवी और त्रिशूल पर्वत, दाई ओर डानाधार जो एक खूबसूरत पिकनिक स्‍पॉट भी है । जोहार घाटी के मुख पर बसा मुनस्यारी समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित विभिन्न ग्रामों का एक समूह है। गोरी गंगा मुनस्यारी से होकर बहती है। गोरी घाटी में स्थित जंगलों में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां रहती हैं। मुनस्यारी की शाल, दन, कालीन, पंखी, जड़ी-बूटिया आदि मिलती है। यहां से रालम, नामिक और मिलम ग्लेशियर को रास्ता जाता है।

गंगोलीहाट-Pithoragarh जिले में स्थित गंगोलीहाट महाकाली मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। यहां से कुछ दूरी पर रावल गांव मे पुरातात्विक महत्व का जान्हवी नौला गुप्त गंगा के नाम से प्रसिद्ध है। यह 13 वीं सदी का बना माना जाता है।

हाटकालिका मन्दिर in Pithoragarh-

गंगोलीहाट में स्थित हाटकालिका देवी रणभूमि में गये जवानों की रक्षक मानी जाती है। यह महिषासुरमर्दिनी का सिद्ध पीठ है। मन्दिर के अन्दर रात्रि में बिस्तर की व्यवस्था कर बाहर से ताला लगाया जाता है, सुबह ताला खोलने पर बिस्तर पर किसी के शयन करने के चिन्ह दिखाई पड़ते है।

पाताल भुवनेश्वर-गंगोलीहाट के पास पाताल भुवनेश्वर मन्दिर एक गुफा के भीतर स्थित है। जिसमें सूर्य, विष्णु, उमा-महेश्वर, महिषासुरमर्दिनी आदि की कई प्राचीन व उत्कृष्ट मूर्तिया है।

मिलम ग्लेशियर-Pithoragarh जनपद के मुनस्यारी तहसील में स्थित यह ग्लेशियर कुमाऊ का सबसे बड़ा ग्लेशियर है। यहा जाने के लिए परगनाधिकारी से प्रवेश पत्र लेना होता है। मार्ग पर भोजपत्रों के घने जंगल, जड़ी बूटी व कस्तूरी मृग देखने को मिलते है। इसके बाद किंगरी-विंगरी दर्रा पड़ता है।

रामेश्वर-रामगंगा और सरयू नदी के संगम पर स्थित  प्रसिद्ध तीर्थ स्थान पर शिव मन्दिर स्थित है। यहा हर वर्ष मकर संक्रान्ति का मेला लगता है।

अस्कोट-कत्यूरी राजाओं की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध यह स्थान जनपद मुख्यालय से 54 किमी दूर स्थित है। यहा पुराने किले अभी भी विद्यमान हैं। यहा सर्वाधिक कस्तूरी मृग वाला वन्य जीव विहार स्थित है।

धारचूला-यह Pithoragarh में काली नदी के तट पर भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है। यहा से कैलाश मानसरोवर, छोटा कैलाश तथा नारायण आश्रम के लिए मार्ग जाता है। यह ऊनी कालीन, लोई आदि के प्रसिद्ध है।

थलकेदार-नैसर्गिक सौन्दर्य एवं प्राकृतिक सुषमा से सुसज्जित यह स्थल Pithoragarh जनपद में स्थित है। इसे केदार ज्यू के नाम से भी जाना जाता है।

छिपालेकेदार-छिपालेकेदार का मुनिस्यारी एवं धारचूला के लोगों के लिए हरिद्वार के समान महत्व है। यहां के लोग जात के रूप में छिपालेकेदार की यात्रा करते हैं।

चौकाडी-सोर क्षेत्र चाय बागानों व फलोद्यान के लिये प्रसिद्ध है।

बेरीनाग-चाय बागान के लिए प्रसिद्ध है।

ओम पर्वत-इसे आदि कैलश या छोटा कैलाश भी कहा जाता है। यह स्थान Pithoragarh के सुदूर उत्तर में तिब्बत की सीमा पर स्थित है। एकान्त क्षेत्र में स्थित शिव का यह स्थल बहुत रमणीय है। यहा पार्वती ताल है।

नारायण आश्रम- आश्रम की स्थापना नारायण स्वामी ने 1936 में Pithoragarh से लगभग 136 किलोमीटर उत्तर में और तवाघाट से 14 किलोमीटर दूर की थी। यह आध्यात्मिक सह सामाजिक शिक्षा केंद्र सुंदर परिवेश के बीच 2734 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसमें स्थानीय बच्चों के लिए एक स्कूल है और स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करता है। एक पुस्तकालयए ध्यान कक्ष और समाधि स्थल भी है।

अस्कोट वन्य जीव विहार- Pithoragarh से लगभग 54 किमी दूर समुद्र तल से 5412 फीट की ऊंचाई पर बसा यह खूबसूरत अभयारण्य। इसकी स्थापना वर्ष 1986 में गयी थी। वन्यजीव प्रेमियों के बीच यह बहुत लोकप्रिय है। यह हिम तेंदुओंए हिमालयी काले भालू, कस्तूरी मृग, बर्फ के मुर्गे, तहरा, भराल, चीड़, कोकला, तीतर और चुकोर के लिए एक आश्रय स्थल है। मंदिरों से युक्त हरा-भरा अभयारण्य क्षेत्र भी हिमालय की सुंदरता को देखने के लिए यह एक बेहतरीन जगह है।

ध्वज मंदिर-ध्वज मंदिर एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर है जो भगवान शिव और मां जयंती को समर्पित है और सड़क मार्ग से लगभग 10 किमी और Pithoragarh से 4 किमी की पैदल दूरी पर है। यह चारों ओर से बर्फ से ढकी चोटियों का मनमोहक दृश्य भी प्रदान करता है।

तालेश्वर- यह पवित्र तीर्थ स्थल कालीगंगा एवं कटिपानीगाढ़ नदी के संगम पर स्थित है। यहा कुमाऊ के अलावा नेपाल के लोग भी आते है।

असुर चुला मन्दिर-सोरघाटी के कई गांव में असुरी पूजा की जाती है। Pithoragarh के नजदीक जाखपन्त और मड़ गांव की पहाडी पर इनके मन्दिर है।

हिलजात्रा-उत्तराखण्ड में कुमाऊ मण्डल के Pithoragarh जनपद की सोरघाटी में मनाया जाने वाला गतिशील लोकनाट्य है। इसमें कृषक, बैलों की जोड़ी, पौधे रोपने वाला (पुतरिया), ग्वाला, घोड़ा, बकरी आदि पशुओं की प्रतीकात्मक भूमिका में धान रोपने, हल चलाने आदि का अभिनय किया जाता है।

राजधर्म के पालन का दृष्टान्त-Abhyutthanam

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