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साहित्यकार गाब्रिएल गार्सिया मार्केस के कुछ चर्चित कथा संग्रह ‘‘Nirale musafir’’ उनके मूल स्पेनिश के ‘दोसे क्वेंतोस फेरेग्रीनोस’’ का हिंदी अनुवाद है। साहित्यिक अनुवाद महज भाषायी दक्षता नहीं, बल्कि यह दो सांस्कृतियों को जोड़ने की जटिल कला है, जिसे मनीषा तनेज़ा ‘‘निराले मुसाफिर में अपनी सृजनात्मक सूझबूझ से बख़ूबी अंजाम दी है। स्पेनिश भाषा के महानतम साहित्यकार गाब्रिएल गार्सिया मार्केस (1927-2014) की लेखनी के अद्भुत सामर्थ्य और मनोवैज्ञानिक चित्रण ने ऐसा जादुई संसार रचा, जहाँ यथार्थ और कल्पना की सर्जनशील संगम से वैश्विक साहित्य ने नवीन दिशा पाई। इसमें यूरोप में बसे लैटिन अमेरिकी किरदारों की 12 मार्मिक लघु कथाएं को दर्ज किया गया है।
Nirale musafir की 12 कहानियाँ
इसमें 12 कहानियाँ हैं, जिनका कैनवास की पृष्ठभूमि भूमि में जिनेवा, रोम, पेरिस, बार्सिलोना, नेपल्स और विएना जैसे शहर है।, जहां पात्र सस्ते होटलों, बेढब मकानों में रहते हैं। ये समाज के हर वर्ग से आते हैं-उनका परिवेश अलग हो सकता है, पर अंतर्मन एक जैसा है। वे विछोह और नास्टैल्जिया (बीते समय की यादों) से जूझते हैं-बिखरे परिवारों, टूटी उम्मीदों, अकेलेपन और हताशा के बीच जीवन की किसी अंतिम छलांग तलाश में।
हमारे पास मारिया दे ला लूज सेरवांतेस, मिगेल ओतेरो सिल्वा, प्रूदेंसिया लिनारो, फुलविया फ्लामिनेआ, नेना दाकोंते जैस कई मुसाफ़िर मौजूद हैं, जो केवल भौगोलिक नहीं, अपितु भावनात्मक विस्थापन को भी अनुभव करते हैं। प्रस्तुत कहानियों में मृत्यु विषाद, व्यंग्यात्मक हास्य और अप्रत्याशित अंत के बीच पाठक उस यात्रा में शामिल है, जहाँ निरंतर कुछ निर्मल, अदृश्य और असाध्य की तलाश शेष रहती है। इसे समझने हेतु मार्केस की प्रस्तावना पर गौर करें-‘‘मैंने सपना देखा कि मैं अपने स्वयं के अन्तिम संस्कार में शामिल हो रहा हूं’’ यहां कहानीकार हमें अपने गढ़े संसार और पात्रों की मनः स्थितियेां में पूरी तरह डूबों देते हैं।
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पहली कहानी, ‘आपकी यात्रा शुभ हो, राष्ट्रपति महोदय’ सत्ता से वंचित एक नेता से मिलवाती है, जो जिनेवा की गलियों में यादों और पछतावा से ग्रस्त अतीत के साए में भटकता और एक पुराने देशवाशी से अप्रत्याशित मुलाकात इसे आत्ममंथन के लिए विवश कर देती है। संत एक पिता की कथा है, जो अपनी दिवंगत बेटी को संत घोषित करवाने के लिए रोम की ओर निकलता है और रास्ते की बाधांए उसके विश्वास की दृढ़ता को उजाकर करती हैं। ‘‘मैं सिर्फ फोन करने आई थी’’ मारिया की दुखद कहानी है, जो खराब होने पर अजनबियों पर निर्भर होकर अनजाने में मानसिक चिकित्सालय में फस जाती है। ‘‘मारिया दोस प्रासेरेस’’ एक वृद्ध वेश्या, जो अकेली अपनी मृत्यु की तैयारियों में व्यस्त है। वह अपने कुत्ते की कब्रिस्तान में अपनी भविष्य की कब्र खोजने के लिए प्रशिक्षित करती है। एक अजीब दुर्घटना ‘बर्फ में खून के दाग’ में युा विवाहित नेना डाकोंते की अंगुली मे एक गुलाब का कांटा चुभता है और खून बहने से मर जाती है।
इस संग्रह Nirale musafir की कहानियां दुखान्त होते हुए भी हास्य से लिपटी हैं, जो हमें अन्त तक बांधे रखती हैं।
Dainik Jagran