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“Me vs. Myself: The Silent War No One Talks About | Why We Work Against Ourselves”
मैं बनाम मैं : वह खामोश जंग जिसके बारे में कोई नहीं बोलता
अगर आत्म-विनाश के लिए कोई अवॉर्ड मिलता तो,
तो मुझे पूरा यक़ीन है कि – मैं ही उसे जीत लेता।
लेकिन क्यों?
और अगर मुझे यह पता होता कि मैं खुद अपने खिलाफ़ काम करता हूँ,
तो मैं कुछ ऐसा क्यों नहीं करता जिससे मैं….. अपने ही खिलाफ़ ना काम करूँ?
शायद मुझे बस एक और चाय या कॉफी चाहिए।
आह!!
ये और भी बदतर होता जा रहा है।
मैं खुद से बार-बार यही कहता रहता हूँ
“मुझे यह लेख लिखने से पहले एक कफ कॉफी चाहिए।”
घड़ी देखता हूँ – 4:37 PM।
ठीक है, मैं 5:00 बजे से पढ़ना शुरू करूँगा।
और फिर, निश्चित ही, मैं यह नहीं करता।
पर मैं सोशल मीडिया पर घंटों समय बिता देता हूँ।
फिर खुद से कहता हूँ – “अबकी बार यह बिल्कुल नहीं!
कल से मैं आर्ट बनाऊँगा।”
पर वो कल भी कभी नहीं आता।
बस मोबाइल पर स्क्रॉलिंग चलती रहती है।
मैं खुद से कहता हूँ –
“मुझे लैपटॉप खोलकर वो न्यूज़लेटर लिखना चाहिए।”
लेकिन इसके बजाय मैं Ipad पर बैठा
दूसरे लोगों के न्यूज़लेटर पढ़ने में खोया रहता हूँ।
मैं फिर स्वयं से कहता हूँ –
“मुझे इंस्टाग्राम पर लोगों के डांस वाले रील्स देखने की जगह
कुछ अच्छे आर्टिकल या अच्छी से बुक पढ़नी चाहिए।”
लेकिन नहीं।
मैं बस फिर से स्क्रॉल करता रहता हूँ –
जब तक कि मुझे खुद पर गुस्सा या बेवकूफ़ी महसूस न हो।
मैं सोचता हूँ –
“मुझे अपने खुद की रील्स बगैरा बनाना चाहिए,
ऐसे जो लोगों की ज़िंदगी बदल सकें।”
लेकिन इसके बजाय मैं उन लोगों को जज करता हूँ
जो सोशल मिडिया पर रील्स बना रहे हैं –
उन्हें मैं “ cringe” या “नकली” कह देता हूँ।
और जब दूसरों को जज करने से फुर्सत मिलती है,
तो फिर खुद को जज करने लगता हूँ।
असली दुश्मन कौन है?
ना तो किस्मत।
ना भगवान।
ना ही दुनिया की कोई रुकावट।
अगर मेरा कोई दुश्मन है तो
वह मैं खुद हूँ।
मेरी आदतें।
मेरे बहाने।
मेरी टालमटोल की जिन्दगी।
वो हिस्सा जो असफलता के डर से कभी शुरू ही नहीं हुआ।
जो आराम को शांति समझ लेता है।
हम खुद के खिलाफ क्यों काम करते हैं?
क्योंकि कुछ करना मतलब –
असफल होने का जोखिम लेना।
देखे जाने का डर झेलना।
यह मान लेना कि हमें सच में फर्क पड़ता है –
और फर्क पड़ना हमें कमजोर बना देता है।
इसलिए हम बचते हैं।
हम टालते हैं।
हम सुन्न हो जाते हैं।
और खुद से झूठ बोलते हैं –
“मैं बाद में शुरू करूँगा…..”
और वो “बाद में” कभी नहीं आता।
बाहर निकलने का रास्ता
सच कहूँ तो कोई जादुई उपाय नहीं है।
बस एक पल होता है –
जब आप टालना छोड़कर शुरू करना चुनते हैं।
आपको कॉफी की जरूरत नहीं।
मोटिवेशन की भी नहीं।
आपको बस शुरुआत करनी है –
तैयार होने से पहले ही।
क्योंकि हर बार जब आप
कार्यवाही को टालने से ऊपर रखते हैं –
तो आप हमेशा जीतते हैं,
सबसे बड़ी जंग में-
Me vs. Myself की नहीं है|
बल्कि आप बनाम आप।