Mahalwari System (महालवारी बंदोबस्त)
- Mahalwari System में भू-राजस्व का निर्धारण ‘महाल’ या समूचे ग्राम के उत्पादन के आधार पर किया जाता था और महाल के समस्त कृषक भू-स्वामियों के अपने मुखिया या प्रतिनिधियों के द्वारा एक निर्धारित समय सीमा के अन्दर लगान की अदायगी की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते थे।
- Mahalwari System ब्रिटिश भारत के कुल क्षेत्रफल के तीस प्रतिशत हिस्से पर लागू थी। इस व्यवस्था के अन्तर्गत दक्कन के कुछ जिले, उत्तर भारत (संयुक्त प्रान्त) आगरा, अवध, मध्य प्रांत तथा पंजाब के कुछ हिस्से शामिल थे।
- Mahalwari System का परिणाम ग्रामीण समुदाय के विखण्डन के रूप में सामने आया। सामाजिक दृष्टि से यह व्यवस्था विनाशकारी और आर्थिक दृष्टि से विफल सिद्व हुई।
- बंगाल में जूट, पंजाब में गंहॅू, बनारस, बिहार, बंगाल तथा मध्य भारत व मालवा में अफीम के व्यापार के लिए पोस्ते की खेतो बर्मा में चावल जैसे वाणिज्यक फसलों को कंपनी के शासन काल मे उगाया जाता था।
- वाणिज्यिक फसलों से जहां व्यापारी वर्ग तथा सरकारी कंपनी को अनेक तरह के लाभ मिले वहीं किसान की इससे गरीबी और बढ़ गई।
- व्यापारी वर्ग खड़ी फसलों को खेत में ही कम कीमत पर क्रय कर लेता था, किसान अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी फसल मंडी में न ले जाकर कटाई के समय खेत में ही बेंच देता था। वही अनाज जिसे किसान खेत में ही बेंच देता था, को 6 महीने बाद वह अधिक कीमत देकर बाजार से क्रय करता था जो उसकी तबाही का कारण बनता था।
- Mahalwari System में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में चूकिं भारत में औद्योगिक आवश्यकताओं (ब्रिटेन की) को ही ध्यान में रखकर फसलें उगाई जाती थी, इसलिए खाद्यान्नों की भारी कमी होने लगी, अकाल पड़ने लगे, जिससे व्यापक तबाही हुई।
- कंपनी शासन से पूर्व भारत में पड़ने वाले अकाल का कारण धन का अभाव न होकर “यातायात के साधनों” का अभाव होता था, लेकिन ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में पड़ने वाले अकाल के लिए ब्रिटिश औद्योगिक एंव कृषि नीति जिम्मेदार थी।
Mahalwari System का परिणाम
- निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि कृषि के वाणिज्यिीकरण से भारत में गरीबी बढ़ी, अकाल पड़े, कुछ हद तक अर्थव्यवस्था को मौद्रीकरण हुआ, गांवों का शहरों से सम्पर्क बढ़ा और नये शोषणपूर्ण श्रम-सम्बन्धों की शुरूआत हुई।
- 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट 1734 के पिट्स इंडिया एक्ट और एडम स्मिथ की पुस्तक वेल्थ ऑफ नेशन्स में व्यक्त किये गये विचारों के आधार पर ब्रिटेन के उभरते हुए नए औद्योगिक वर्ग ने 1813 में कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त करके मुक्त व्यापार के द्वारा खोल दिये, जिसके परिणामस्वरूप भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दूसरे चरण प्रारम्भ हुआ।
- भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दूसरे चरण में जिसे औद्योगिक मुद्रा व्यापार (1813-1858) का चरण कहा जाता है, में भारत को ब्रिटिस के आयात का मुक्त बाजार बना दिया गया।
- 1833 के बाद भारत के सभी शहर, कस्बे, गांव, जंगल, खाने, उद्योग, तथा जनसंख्या का विशाल मानव समुदाय ब्रिटिश संसद द्वारा ब्रिटिश पूंजीपतियों के मुक्त प्रयोग के लिए खुला छोड़ दिया गया।
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