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क्यों बढ़ रहा है Landline का चलन?
अगर आपका बच्चा 4 से 12 साल की उम्र के बीच है ?
अगर आपका बच्चा 4 से 12 साल की उम्र के बीच है, तो संभावना है कि उसने आपसे कम से कम एक बार यह ज़रूर पूछा होगा द- “मुझे मोबाइल फोन कब मिलेगा?” आज की दुनिया में, जहाँ दंत चिकित्सक के क्लिनिक से लेकर कक्षा तक हर जगह स्क्रीन हावी हैं, डिजिटल दुनिया से परिचय बहुत जल्दी शुरू हो जाता है। और बड़े होने की जल्दी, दोस्तों से जुड़ने और अपने पसंदीदा यूट्यूब वीडियो देखने की चाह में, आजकल छोटे बच्चों से लेकर किशोरावस्था तक के लगभग सभी बच्चे अपने स्मार्टफोन के मालिक बनना चाहते हैं।
लेकिन माता-पिता के लिए यह तय करना आसान नहीं है कि बच्चों को स्मार्टफोन कब दिया जाए और कब नहीं दिया जाए। यह जीवन बदलने वाला फैसला होता है, और इससे जुड़ी चिंता व असमंजस भी रहता है – माता-पिता और अभिभावकों को सामाजिक दबाव, मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ, दिमाग पर नकारात्मक असर और बच्चों के लगातार स्क्रॉल करने की आदत लग जाने का डर सताता है।
इसीलिए कुछ माता-पिता स्मार्टफोन या फ्लिप फोन की बजाय तीसरा विकल्प चुन रहे हैं – ऐसा विकल्प जो बच्चों को जुड़ाव और सामाजिक बातचीत का मौका देता है, लेकिन जो डिजिटल स्पेस तक उनकी पहुँच को सीमित करता है – पुराना, पारंपरिक Landline फोन। माता-पिता इन लगभग अप्रचलित उपकरणों को पहचानते हैं और अब स्मार्टफोन देने से पहले इन्हें अपने घरों में वापस ला रहे हैं।
पुराने जमाने में Landline फोन लगवाना किसी बड़े कारनामे से कम नहीं था। उस दौर में टेलीफोन विभाग में आवेदन करने के बाद लोगों को सालों तक इंतज़ार करना पड़ता था। गाँवों और कस्बों में तो यह इंतज़ार इतना लंबा होता था कि लोग मज़ाक में कहते- “फोन लगाने के लिए बच्चा फॉर्म भरता है और उसके शादी होने तक कनेक्शन मिलता है।” आवेदन करने के बाद हर महीने टेलीफोन एक्सचेंज के चक्कर लगाना, लाइनमैन से पहचान बढ़ाना और अधिकारियों के आगे-पीछे घूमना रोज़मर्रा का हिस्सा था।
अगर किसी को जल्दी फोन चाहिए होता, तो उसके लिए सिफ़ारिश और रिश्वत दोनों का सहारा लेना पड़ता था। नेताओं और बड़े अफसरों से रेफ़रेंस दिलाना, या फिर लाइनमैन की जेब गर्म करना लगभग जरूरी सा हो गया था।
तकनीकी दिक़्क़तें भी बहुत थीं। हर जगह केबल बिछी नहीं होती थी, और अगर आपके मोहल्ले में खंभे नहीं लगे थे, तो समझ लीजिए फोन लगने में महीनों लग जाएंगे। कई बार फोन लग तो जाता था, लेकिन हफ्तों तक “डेड लाइन” रहती थी, और लाइनमैन को बुलाने के लिए भी ‘‘चाय-पानी’’ की जरूरत पड़ती थी।
फोन लगने का खर्च भी आम लोगों के लिए भारी होता था। सिक्योरिटी डिपॉज़िट और इंस्टॉलेशन चार्ज मिलाकर यह एक बड़ी रकम बन जाती थी। यही वजह थी कि जिनके घर फोन होता था, उन्हें पूरे इलाके में इज्ज़त की नज़र से देखा जाता था।
जब किसी घर फोन लगता था, तो पूरा मोहल्ला खुश हो जाता था। उस घर का फोन सबका फोन बन जाता। कोई दिल्ली से कॉल करे तो घर का बच्चा दौड़कर गली के कोने पर आवाज़ लगाता-“अरे राणा जी! आपके लिए फोन आया है!” और राणा जी हड़बड़ाते हुए दौड़ते हुए आते। कभी-कभी तो कॉल करने वाला आधा मोहल्ला सुन रहा होता था, क्योंकि स्पीकर का जमाना नहीं था, फिर भी सब कान लगाकर बातें सुन लेते थे।
रात में अगर किसी के रिश्तेदार का फोन आ जाए, तो फोन बजते ही पूरा घर जग जाता। दादी, चाची, मम्मी सब लाइन में खड़े होकर रिसीवर पकड़ने का इंतज़ार करते। बात खत्म होने के बाद हर कोई पूछता-“क्या कहा? ठीक से सुनाया? हमारी तरफ से नमस्ते बोला?” यानी एक कॉल का मज़ा पूरा परिवार उठाता।
उस जमाने में STD कॉल करना बहुत महंगा होता था। लोग मिनट गिन-गिनकर बात करते। बच्चे टाइमर पकड़कर खड़े रहते और कहते- “बस दो मिनट पूरे हो गए, फोन काटो!”
कुछ माता-पिता बच्चों को तकनीक से देर से जोड़ रहे हैं –
जो Landline कभी लगभग विलुप्त होने की कगार पर थी, अब फिर से वापसी कर रही है। परिवारों को पुरानी तकनीक की तरफ लौटते देखना यह दिखाता है कि माता-पिता समझ रहे हैं कि जल्दी ज़्यादा तकनीक देना बुद्धिमानी नहीं है। धीरे और सोच-समझकर पहुँच देने से बच्चों को ऑनलाइन जीवन के खतरों और तनाव से बचाया जा सकता है। मैंने कभी ऐसे माता-पिता नहीं देखे जो कहते हों कि काश उन्होंने बच्चों को पहले ही तकनीक दे दी होती – लेकिन हाँ, बहुतों ने यह ज़रूर कहा है कि काश उन्होंने और देर की होती। Landline का यह ट्रेंड दरअसल कम-तकनीक वाली बचपन की ओर बढ़ने का संकेत है।
Landline ट्रेंड क्यों पकड़ बना रहा है
अपने घर में Landline लगाना भले ही बड़ा कदम लगे, लेकिन कुछ माता-पिता अब थक चुके हैं और उन्हें ऐसा समाधान चाहिए जो बच्चों को ऑनलाइन खतरों से बचाए – चाहे वह सोशल मीडिया से शरीर की छवि (इवकल पउंहम) से जुड़ी समस्या हो या अजनबियों का खतरा।
कई माता-पिता अपनी पुरानी, निष्क्रिय Landline को एक मुख्य कारण से फिर से चालू कर रहे हैंरू यह 99% तक स्मार्टफोन से सुरक्षित है। Landline में न ऐप्स होते हैं, न टेक्स्टिंग, न वेब ब्राउज़र और न सोशल मीडिया। इन्हें सिर्फ घर के अंदर ही इस्तेमाल किया जा सकता है। Landline रखने से, बिना स्मार्टफोन पर दिए, कई समस्यायों हल हो जाती हैं।
माता-पिता बच्चों से जुड़ सकते हैं जब वे घर पर अकेले हों।
बिना माता-पिता का फोन लिए, बच्चे अपने दादा-दादी, परिवार के अन्य सदस्यों जैसे चाचा, बुआ और दोस्तों से बात कर सकते हैं। चूँकि लैंडलाइन अक्सर घर पर साझा जगह जैसे किचन, बैठक रूम या लिविंग रूम में होता है, जिससे माता-पिता कुछ हद तक बच्चों की निगरानी कर सकते हैं।
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माता-पिता ने क्यों चुना Landline
माता-पिता ने च्ंतमदजे पत्रिका को बताया कि उन्होंने लैंडलाइन इसी कारण लगाई – वे बच्चों को बाहरी दुनिया से पूरी तरह काटना नहीं चाहते, लेकिन साथ ही चाहते हैं कि ऑनलाइन उनके बच्चों को किससे और क्या सामना करना पड़ता है, इस पर उनका थोड़ा ज़्यादा नियंत्रण हो।
बच्चे वास्तव में Landline पर बात करने का मज़ा लेते हैं
6 साल की बेटे को उसके जन्मदिन पर Landline दिया। बेटा पहली ही बातचीत में इसे पसंद करने लगा। हालाँकि हमें उसे डायल करना सिखाना पड़ा। हमने उसे एक नोटबुक भी दी, जिसमें उसने दोस्तों और परिवार के नंबर लिख लिए। अब वह अपने दादा-दादी, नाना और अन्य परिवार जनों को कॉल करता है, जिससे वह दादा-दादी, नाना से और अधिक जुड़ा हुआ महसूस करता है और बच्चों में सामाजिक कौशल और बातचीत में सुधार होता है।
Landline हो सकती है एक लंबी अवधि का निवेश
पारिवारिक Landline बच्चों के लिए पहला स्मार्टफोन देने से पहले एक अहम पड़ाव हो सकता है। और यहाँ तक कि जब बच्चों को स्मार्टफोन दे दिया जाए, तब भी Landline बनी रह सकती है – यह स्क्रीन टाइम कम करने और घर पर बच्चों की बातचीत पर नज़र रखने का तरीका है। पहला स्मार्टफोन, जब समय आए, ऐसा होना चाहिए जो खासतौर पर बच्चों के लिए बनाया गया हो, जैसे की-पैड फोन। ऐसे लॉक्ड डिवाइस को सिर्फ कॉल और मैसेज करने के लिए कॉन्फ़िगर किया जा सकता है, जो कि पारंपरिकLandline से बहुत अलग नहीं है।
Landlines Are Making a Comeback and They’re Helping Families in a Major Way