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प्रसिद्ध विद्धान और अधिवक्ता जे0साई0 दीपक की ‘‘India that is Bharat: उपनिवेशिकता, सभ्यता, संविधान’ बौद्धिक हस्तक्षेप है, जिसमें रचनाकार ने विचारक की भूमिका में उतरकर अपनी सभ्यता की समस्यओं के पीछे मिलने वाले गूढ़ रहस्यों को समझने की कोशिश की है। इसी श्रंखला मंे लिखी जा रही पुस्तक त्रयी का यह एक भाग है, जो भारतीयता के सन्दर्भ में अपने इतिहास, संस्कृति और सभ्यता को गर्व से समझने के कुछ सूत्र मुहैया कराती है, यह किताब India that is Bharat।
बाकायदा हमें यह कहना चाहिए कि लेखक व्यावहारिक तरीके से उपनिवेशवाद के विधिक इतिहास और इसके साथ भारत के दुर्भाग्यपूर्ण मुखामुखम का पता लगाने में गहरे डूबता है। इस जतन में वे महत्वपूर्ण ढंग से औपनिवेशिक चेतना के उभार और उसके सम्यक प्रभावों की खोजपरक जांच में जुटते हैं।
शायद इसीलिए उनकी अचूक दृष्टि ने सभ्यागत स्वतन्त्रता की पैरोकारी में इसके निरन्तर विघटित होते जाने वाले परिर्वतनों और प्रभावों को तथ्यपरक ढंग से उजागार किया है।
India that is Bharat: उपनिवेशिकता, सभ्यता, संविधान
भारतीय मनीषा में आज के युग में इस तरह के मौलिक लेखन की एक सार्थक पीढ़ी परिदृश्य पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। इसी के साथ भारत को व्याख्यायित करने वाले विदेशी दृष्टियों, आयातित विचारों और पूरी तरह से अन्तरदेशीय ताने-बाने को न समझ पाने की आधी-अधूरी व्याख्या निरन्तर प्रश्नांकित होती जा रही है।
हिन्दी और अंग्रेजी के फलक पर जे.साई. दीपक की तरह ही ऐसे ढेरों विद्धान सक्रिय हैं, जिन्होंने अपने मार्गदर्शी चिन्तन से बहुत सारा धुंधलका साफ करने की सफल कोशिश की है, जो भारतीय जनमानस के दीमाग में घर गयी थी। इनमें एस0 जयशंकर, संजीव सान्याल, विक्रम सम्पत आदि की चिन्तना से उपजी कृतियों का विशेष अभिप्राय है।
प्रस्तुत किताब India that is Bharat एक तरह से भारत के अतीत और वर्तमान के बीच सन्तुलन बनाती हुई ऐसी समाजविज्ञानी पड़ताल भी है, जिससे गुजरकर हम उपनिवेशिकता को तार्किक अर्थों में समझ सकते हैं। एक तरह से यह कृति भारत और भारतीय संविधान के मूल स्वरूप पर पड़ने वाले प्रभावों का लेखा-जोखा भी है।
पश्चिमी प्रभावों और प्रमुख अन्तरराष्ट्रिय घटनाक्रमों के समानान्तर भारत की अपनी यात्रा को प्रभावी ढंग से स्पष्ट करने की भूमिका के तहत भी हम ‘India that is Bharat’ को एक सन्दर्भ-ग्रंथ की तरह देख सकते हैं।
अर्थशास्त्री डा. गौतम सेन ने इसकी भूमिका में यह स्पष्ट किया है कि कैसे यह किताब India that is Bharat उपनिवेशवादी शक्ति के पीछे ईसाई विचार को एक बड़ी भूमिका की तरह मूल में देखती है और किस तरह मूल में देखती है और किस तरह इस चेतना ने दूसरी संस्कृतियों को दास बनाकर अपना हित साधने के प्रयत्न किए। वे यह भी लक्षित करते हैं कि इस वैचारिक सन्दर्भ के बनने की शुरूआत में वी0एस0 नायपाल की प्रसिद्ध पुस्तक ‘ए मिलियन म्यूटिनीज नाउ’ उत्प्रेरक की तरह मौजूद रही।
किताब तीन खण्डों में विभक्त है, जो क्रमशः उपनिवेशिकता, सभयता और संविधान के विश्लेषण पर आधारित है। जे0 साई0 दीपक अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख करते हुए विमर्श के केन्द्र में यह विचार लाते हैं कि उपनिवेशिकता और संविधान के बीच के द्वंद्व ने यहां के धर्म, भाषा, प्रकृति, जाति और जनजातियों पर क्या प्रभाव डाला है? वे अनूठे ढंग से इस बात की चर्चा करते हैं कि अब समय ठोस बदलाव लाने का है, जो केवल विचाराधारा सम्बन्धित आन्दोलन नहीं ला सकते। आप अनेक तर्कों से सहमत/असहमत हो सकते हैं परन्तु अन्ततः सुलझे हुए ढंग से उन तर्कों के करीब जा सकते हैं, जिसके तहत रचनाकार ने उपनिवेशवाद को समझने के प्रयोग और उपकरण सुझाए हैं। ये तर्क बहुस्तरीय ढंग से हमें सोचने को विवश करते हैं।
प्रमाणों, तर्कों, तथ्यों और आंकड़ों के सटीक प्रयोग से इस गम्भीर विषय को ज्यादा सरल ढंग से व्याख्यायित करने की कोशिश की गई है, जो समाज और राजनीति जैसे शुष्क विषय को भी सरस और पठनीय बना देती है।
जे0साई0 दीपक इसके विस्तार को थाह तक जाते हुए बताते हैं कि यह पुस्तक India that is Bharat क्रिस्टोफर कोलम्बस की 1492 की यात्रा से अर्थात खोज के युग के प्रारम्भ से लेकर 1919 के भारत संविधान अधिनियम तक, भारत के इतिहास और उसकी चेतना के अन्तर्गत बदलाव की बात करती है।
India that is Bharat का पहला खण्ड पश्चिम मानक ढांचे की उत्पत्ति की चर्चा से सम्बन्धित है, जिसमें यह जानने का प्रयत्न किया गया है कि इसके पीछे छुपी मजहबी प्रेरणा क्या थी ? साथ ही आधुनिकता के ताने-बाने और वि-उपनिवेशिकता क्या है ?
India that is Bharat का दूसरा खण्ड सार्वभौमिक लगने वाले सिद्धान्तों के पड़ताल पर एकाग्र है, जिसमें सहिष्णुता, सेकुलरवाद और मानववाद आते हैं। कैसे ईसाईयत ने मूल भारतीय चेतना को सार्वभौमिक सुधारवाद और सेकुलरवाद के नाम से विकृत किया ? यह असरदार ढंग से व्याख्यायित होता है।
India that is Bharat का तीसरा खण्ड 1858 से 1919 के बीच की अवधि की चर्चा करता है, जब ब्रिटिश क्राउन ने सीधे भारत का प्रभार सम्भाला था और भारत के लिए पहला ब्रिटिश निर्मित संविधान यानी भारत सरकार अधिनियम पारित किया था।
पुस्तक India that is Bharat की पठनीयता का प्रामाणिक बनाने वाले इसके उद्धरणों को गौर से पढ़ा जाना चाहिए, जो परिशिष्ट में दिए गए हैं। भारतीयता को उसकी मूल अवधारणा दिलाने के विश्वास के साथ गहरे श्रम से रची गई कृति एक गहरा शोध अध्ययन है, जिसके माध्यम से अभी और भी कई आयाम विमर्श के लिए नया रास्ता खोलेंगे। वैचारिक रूप से समृद्ध करने वाली किताब India that is Bharat|
स्त्रोत दैनिक जागरण
Plassey: The Battle That Changed The Course of Indian History