Hamara Samvihan : Bhav Evam Bharat

Hamara Samvidhan : Bhav Evam Rekhankan: संविधान में चित्रों और रेखांकन का मूल्यांकन

भारत की सार्वभौमिक पहचान अनेकता में एकता रही है। भारत की आत्मा उसके संविधान में रचता-बसता है। दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान भारतीय संविधान है, जो निर्माण के समय से ही भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न एंव लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने रखने के साथ ही धार्मिक बहुलतावाद, षान्ति और सहिश्णुता जैसे उसूलों के प्रति समर्पित रहा है।

समकालीन समय के समाजसेवी एंव बहुभाशाविद लेखक ‘लक्खी दा’, लक्ष्मीनारायण भाला की Hamara Samvidhan : Bhav Evam Rekhankan एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप की तरह उभरती है, जिसमें भारत के संविधान में संलग्न चित्रों के विष्लेशण से भारतीय नियम, कायदे और अनुषासन से विभिन्न मसौदे समझाए गए हैं।

यह एक ऐसा चित्रात्मक मूल्यांकन है, जिसमें पहली बार संविधान में प्रदत्त नीतियों, अधिकारों, अनुषासन और नियमों को संविधान सभा द्वारा प्रस्तावित उन विषिश्ट अंकनों के माध्यम से समझने की कोषिष की गई है, जिसे हमारे संविधान में स्थान दिया गया।

भारतीय जनता पार्टी के नेता रविषंकर प्रसाद ने पुस्तक की प्रस्तावना विस्तार से हमारे संविधान की गरिमा के अनुरूप लिखी है। उनका मत है-‘‘भारत में एक लोकतान्त्रिक उत्तरदायी षासन व्यवस्था है, जहां भारत के हर नागरिक को वोट देने का अधिकार है, चाहें उसकी जाति, पूजा पद्धति, समुदाय कोई भी हो और भले ही वह षिक्षित हो या न हो।

हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत की संस्कृति, संस्कार और सभ्यतामूलक इतिहास के प्रवाह को भी विभिन्न छवियों के द्वारा संविधान में स्थान दिया।’’

संविधान निर्माण के समय भारतीय संविधान सभा का कार्य कई वर्शों में सम्पन्न हुआ, भारत के प्रख्यात चित्रकार नन्दलाल बोस के मार्गदर्षन में संविधान के साज-सज्जा का कार्य सम्भव हुआ था। उन्होंने चित्रों के माध्यम से संविधान को एक जीवन्त स्वरूप प्रदान किया। कुल 284 कलात्मक चौखटों के अन्दर चुनिन्दा 28 चित्रों के माध्यम से भारत की 5000 वर्श की सभ्यता और संस्कृति को समावेषी तौर पर दर्षाया गया।

आज यह देखकर बहुत ही आष्चर्य होता है कि नन्दलाल बोस की परिकल्पना में संविधान के अनुच्छेदों के अनुसार ही सटीक ढंग से भारतीयता की व्याख्या की गई, जो समय-समय पर विभिन्न कालखण्डों में हुए मानक अभियानों को केन्द्रस्थानीय ढंग से यहां चित्रण या रेखांकन के माध्यम से व्याख्यायित करती है।

इन चित्रों की ओर देखने पर हम पाते हैं कि हमारे भारत को रेखांकित करने के उद्देष्य से मोहनजोदड़ों का प्रतीक चिन्ह लिया गया है, जबकि नागरिकता और षिक्षा के लिए वैदिक काल का गुरूकुल उपस्थित है। इसी तरह, नीति-नियामक तत्वों को आकल्पित करने वाले अध्याय में श्रीकृश्ण द्वारा अर्जुन को गीता का उपदेष जैसा चित्र अंकित है।

कार्यपालिका को परिभाशित करने के लिए सिद्धार्थ के वैराग्य से गौतम बुद्ध के देषाटन तक का मामला षामिल किया गया। यहां तक कि व्यापार, वाणिज्य नीति के सन्दर्भ में भगीरथ प्रयास से गंगावतरण का चित्र है, तो केन्द्र राज्याधीन सेवाओं को निर्देषित करने के लिए अकबर का दरबार उकेरा गया है।

बहुतेरे अन्य प्रसंगों में छत्रपति षिवाजी, गुरू गोविन्द सिंह, रानी लक्ष्मीबाई, नेताजी सुभाश चन्द्र बोस और आजाद हिन्द फौज आदि का चित्रांकन भी मूल्यवान तरीके से संविधान के नियमों में अर्थसम्भव वृद्धि करता है। जब संविधान निर्माताओं ने राज भाशा तथा भाशा नीति का अध्याय जोड़ा, तो वहां लाठी लेकर चलते महात्मा गांधी का चित्र षामिल है।
पुस्तक के अध्यक्षीय अभिमत में प्रो0 गोविन्द प्रसाद शर्मा ने यह सही लक्ष्य किया है कि ‘यह क्षोभ व आश्चर्य की बात है कि भारतीयों को भारत के संविधान के सम्बन्ध में तो बताया जाता है, पर भारत के संविधान में उकेरे गए चित्रों एवं उनके निहितार्थों के महत्व व जानकारी से अभी तक अनभिज्ञ रखा गया है।’

लेखक लक्खी दा ने शोधपूर्ण और अत्यन्त परिश्रम से तैयार की गई विश्लेषणात्मक अवधारणा में संविधान को उसके कलात्मक अवयवों के साथ पकड़ने की नायाब कोशिश की है।

अधिकांश भारतीयों को शायद ही इस सन्दर्भ में इतनी गहराई से जानकारी होगी कि यह संविधान अपनी चित्रात्मकता में भी उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम का एक समन्वयकारी संयोजन है, बल्कि यह हर प्रकार से भारतीय इतिहास में घटी महत्वपूर्ण गौरवशाली घटनाओं, परम्पराओं और वैचारिकी का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है।

संविधान के उनके सुसज्जित पृष्ठों को जस का तस यहां छायाप्रति के रूप में समाहित किया गया है, जिससे पाठकीय स्वाद बढ़ता है। प्रत्येक चित्र की विशिष्टता और औचित्य को संक्षिप्त टिप्पणियों के अन्तर्गत विश्लेषित करने की उनकी युक्ति कारगर है। वे उस समय को आधार बनाकर संविधान में सम्मिलित की जाने वाली इन कलाकृतियों को इतने वैज्ञानिक ढंग से समझाते हैं कि यह व्याख्या किसी कला पुस्तक को समझने की भी कुंजी प्रदान करती है।

ऐतिहासिक सन्दर्भों, घटनाओं, उस दौर के आन्दोलनों की विमर्शकारी प्रस्तुति के साथ हमारे अतीत की गौरव-गाथा का सटीक व्याख्या लेखक लक्खी दा ने किया है। यह समझने वाली बात है कि इस सर्वसमावेशी संस्कृति, जिसने आधुनिक भारत की नींव रखी, जो भारतीयता को इन आदर्शवादी प्रतीकों के माध्यम से लोकतान्त्रिक बाना प्रदान करते हैं। Hamara Samvidhan : Bhav Evam Rekhankan एक संग्रहणीय दस्तावेज।
स्त्रोतः-
1. हमारा संविधान: भाव एंव रेखांकन- लक्ष्मीनारायण भाला ‘लक्खी दा’
2. दैनिक जागरण

By admin

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