Chola dynasty

संगम साहित्य से तमिल प्रदेश के तीन राज्यों Chola Dynasty, चेर तथा पाण्ड्य का विवरण प्राप्त होता है। उत्तर-पूर्व में Chola Dynasty, दक्षिण पश्चिम में चेर तथा दक्षिण-पूर्व में पाण्ड्यों का राज्य स्थित था।

Chola Dynasty

  • कदापि चोलों का राजनीतिक उत्कर्ष दसवीं शताब्दी के मध्य में प्रारम्भ हुआ था परन्तु इनका प्रारम्भिक इतिहास संगम युग (तीसरी शताब्दी) से प्रारम्भ होता है।
  • कल्लि, वलावन, सेम्बिदास तथा सेनई जैसे नामों से प्रसिद्ध चोल मण्डलम पेन्नार और कावेरी नदियों के मध्य पूर्वी समुद्र तट पर स्थित था। इस राज्य का प्राचीनतम उल्लेख कात्यायन ने किया था।
  • Chola Dynasty की प्रारम्भिक राजधानी उत्तरी मनलूर थी, उसके बाद उरैयर तथा तंजाबूर को भी राजधानियां बनाया गया। उरैयर कपास के व्यपार के लिए प्रसिद्ध था।
  • ईसा पूर्व दूसरी शती में एलारा नामक चोल राजा ने श्रीलंका पर विजय प्राप्त की और लगभग 50 वर्षों तक वहा शासन किया।
  • Chola Dynasty का उदय नौवी शताब्दी में हुआ। इसकी स्थापना विजयालय (850-887 ई0) ने की थी। उसने तंजाबूर पर अधिकार करके ’नरकेसरी’ की उपाधि धारण की।

करिकल

यह प्रारम्भिक चोल राजाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था। इनका काला लगभग 190 ई0 माना जाता है। इसने चोलों के तटीय राजधानी पुहार की स्थापना की थी। इसने वेणी के युद्ध में चेर तथा पाण्ड्य राज्य के ग्यारह राजाओं के समूह को पराजित किया। करिकल के अलावा पेरूनरकिल्लि नामक एक अन्य चोल राजा का भी उल्लेख भी मिलता है जिसने राजसूय यज्ञ किया था।

संगम युगीन चोल शासकों ने तीसरी-चैथी शती तक शासन किया। तत्पश्चात उरैयर के चोलवंश का इतिहास अन्धकारपूर्ण हो जाता है।दक्षिण भारत में 9 वीं शदी के प्रारम्भ होने तक विभिन्न शक्तियों का अविर्भाव हो चुका था, जिनमें से चोल, चेर और पांड्य प्रमुख हैं। नवीं शताब्दी के मध्य विजयालय के नेतृत्व में पुनः चोल सत्ता का उत्थान हुआ।

आदित्य प्रथम

  • इसने चोलों का पूर्णरूप् से स्वतन्त्र घोषित किया। पल्लवों को परास्त करके कोदाण्डराम की उपाधि धारण की।

परान्तक प्रथम (907-955 ई0)

  • द्रविड़ देश में Chola Dynasty की स्थापना वास्तव में परान्तक प्रथम (907) के समय में हुई। उसने मदुरा के पाण्ड्य राजा को हराया और ’मदुरैकोण्ड’की उपाधि धारण की।
  • राष्टकूट नरेश कृष्ण तृतीय ने पश्चिमी गंगो की सहायता से चोलों पर आक्रमण करा तथा तोक्कोलम युद्ध मेमं चोलों को बुरी तरह पराजित किया और साम्राज्य का उत्तरी भाग राष्ट्रकूट साम्राज्य में मिला लिया गया।

राजाराज प्रथम (880-907)

  • परान्तक द्वितीय का पुत्र अरिमोलिवर्मन सन् 985 ई0 के मध्य राजराज के नाम से गद्दी पर बैठा। इनके राज्यारोहण के साथ ही चोल इतिहास की महानता का युग आरम्भ हुआ।
  • चोल अभिलेखों से विदित होता है कि राजराज ने कलिंग सहित 12000 पुराने द्वीपों वाले सामूद्रिक प्रदेशों, जिसकी पहचान लक्षद्वीप एवं मालद्वीप के साथ की गई है को विजित किया।
  • 1000 ई0 में उसने भूराजस्व के निर्धारण के लिए भूमि का सर्वेक्षण कराया और अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहन दिया।
  • चेल स्थापत्य कला के क्षेत्र में राजराज द्वारा निर्मित तंजौर में वृहदेश्वर या राजराजेश्वर मंदिर (शिव मंदिर) तमिल स्थापत्य के सर्वाधिक सुन्दर स्मारकों में से एक है।

राजेन्द्र प्रथम (1012-1044 ई0)

  • राजेन्द्र प्रथम ने शासन के पाॅचवे वर्ष (1017 ई0 में) सम्पूर्ण श्रीलंका को विजित किया और वहा के शासक महिन्द पंचम के बन्दी बना लिया।
  • बंगाल के पाल शासक महीपाल को पराजित किया। इस गंगा घाटी के अभियान की सफलता पर राजेन्द्र ने ’गंगैकोण्ड चोल’ की उपाधि धारण की और ’गंगैकोण्डचोपुरम’ नामक नयी राजधानी की स्थापना की। चोलगंगम् नामक विशाल तालाब का निर्माण करवाया।

राजाधिराज प्रथम (1044-1052 ई0)

राजेन्द्र प्रथम की मृत्यु के बाद राजाधिराज प्रथम शासक बना। चालुक्य की राजधानी कल्याणी पर विजय के उपलक्ष्य में अपना वीराभिषेक किया तथा विजयराजेन्द्र की उपाधि धारण की। कोप्पम के युद्ध में (1052-53 ई0) राजाधिराज चालुक्य नरेश सोमेश्वर के हाथों मारा गया।

राजेन्द्र द्वितीय (1052-1064 ई0)

  • कोप्पम के युद्ध में (1052-53 ई0) राजाधिराज की हत्या के बाबजूद उसने सोमेश्वर को पराजित किया और युद्ध में ही अपना राज्यभिषेक किया।
  • सन् 1062 ई0 में Chola Dynasty की सेनाओं ने कूडल संगगम् के युद्ध में भी चालुक्य नरेश सोमेश्वर को पराजित किया।

वीर राजेन्द्र (1064-1070 ई0) -वीर राजेन्द्र ने तुगभद्रा नदी के किनारे विजय स्तम्भ की स्थापना की और राजकेसरी की उपाधि धारण की। वीर राजेन्द्र का पुत्र अधिराजेन्द्र Chola Dynasty का शासक बना किन्तु एक वर्ष के भीतर पूर्वी चालुक्य नरेश द्वारा अपदस्थ कर दिया गया।

कुलोत्तुंग प्रथम (1070-1120 ई0)

  • सन् 1070 में राजेन्द्र, कुलोत्तुंग प्रथम के नाम से Chola Dynasty का शासक बना।
  • चीनी ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार 1077 ई0 में कुलोत्तंुग एक मण्डल भेजा। यह मण्डल एक व्यापारिक शिष्ट मण्डल था, जिसे व्यापार के लिए चीन से अधिक सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भेजा गया था।
  • चोल लेखों एंव परम्पराओं में उसे शुड़ग्म तवित्र्त (करों को हटाने वाला)कहा गया है।

कुलोत्तंग के बाद Chola Dynasty में विक्रम चोल, कुलोत्तंग द्वितीय, राजराज द्वितीय, राजाधिराज द्वितीय, कुलोत्तंग तृतीय और राजराज तृतीय शासक बने।

राजेन्द्र तृतीय

  • यह Chola Dynasty का अन्तिम शासक था।
  • सन् 1251 ई0 में पाण्डय वंश का शासन जटावर्मन सुन्दरपाण्ड्य नामक एक शक्तिशाली राजा के हाथ में आ गया जिसने चालुक्य, होयसल तथा काकतीय राज्यों को जीता और चोल शासक राजेन्द्र तृतीय को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया।
  • राजेन्द्र तृतीय सन् 1279 ई0 तक पाण्ड्य नरेश के सामन्त के तौर पर शासन किया।
  • सन् 1279 ई0 में पाण्ड्य शासक कुलशेखर से पराजित हुआ और Chola Dynasty का अन्त हुआ। पाण्ड्य नरेश कुलशेखर समस्त Chola Dynasty का सार्वभौम शासक बन गया।

Chola Dynasty  प्रशासन

  • केन्द्रीय प्रशासन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति सम्राट था। चोल शासक अपना राज्यभिषेक तंजोर, गंगैकोण्डचोलपुरम, चिदम्बरम, कांचीपुरम आदि स्थानों में कराते थे। वे चक्रवर्तिगल, त्रिलोक सम्राट जैसी उच्च सम्मानपरक उपााधियां ग्रणह करते थे।
  • प्रशासन की सुविधा के लिए विशाल Chola Dynasty प्रान्तों में विभाजित था और प्रान्त को मण्डलम कहा जाता था। चोल साम्राज्य की प्रमुख इकाईयां थी-राज्य, मण्डल, वलनाडु, नाडु, कुर्रम या कोट्टम।
  • बडे-बडे शहर या गाॅव स्वयं एक अलग कुर्रम बन जाते थे और तनियूर या तंकुरम कहलाते थे।
  • मण्डल प्रशासन से लेकर ग्राम प्रशासन तक शासकीय कार्यो की सहायता करने हेतु स्थानीय सभाएं होती थीं। नाडु की स्थानीय सभा को नटटार तथा व्यापारिक संघ की सभा को नगरट्टार (नगरम्) कहते है।
  • भूमि कर के अतिरिक्त चोल राजा व्यापार कर तथा निकटवर्ती क्षेत्रों की लूटमार में अपनी आय बढ़ाते थे। विवाह समाहारो पर भी कर लगता था।
  • सोने के सिक्के को कलंजु यो पोन कहा जाता था।
  • वेलि भूमिमाप की इकाई थी।

Chola Dynasty स्थानीय स्वशासन

  • चोल सम्राट परान्तुक के शासन के 12वें एवं 14वें वर्ष के प्रसिद्व उत्तमेरूर अभिलेखों से चोल कालीन स्थानीय स्वशासन एवं ग्राम प्रशासन व्यवस्था का समग्र चित्र उपलब्ध होता है।
  • चोल सम्राटों ने स्थानीय प्रशासन व्यवस्था समिति प्रणाली को लागू किया जिसे वारियम कहा जाता था।
  • चोल अभिलेखों में मोटे तौर पर तीन प्रकार की ग्राम सभाओं का उल्लेख प्राप्त होता है, वे हैं-उर, सभा या महासभा और नगरम।
  • ’उर’ एक सामान्य प्रकार की (सर्वसाधारण लोगों की) ग्राम सभा थी जिसमें ग्राम, पुर या नगर दोनों सम्मिलत थे। उर का शाब्दिक अर्थ पुर है। इसकी कार्यकारिणी समिति को आलुंगुणम् कहा जाता था।
  • ’सभा’ या महासभा’ गाॅवों के वरिष्ठ ब्राहमणों जिन्हें अग्रहार कहा जाता था, की सभा थी अर्थात् यह मूल रूप से अगहारों अथवा ब्रहामण बस्तियों की संस्था थी।
  • गाॅवों के कारोबार की देखरेख एक कार्यकारणी समिति करती थी जिसे वारियम कहा जाता था।
  • वारियम (कार्यकारिणी समिति) की सदस्यता के लिए पैतीस से सत्तर वर्ष की आयु वाले व्यक्ति का नामांकन होता था जिसके पास लगभग डेढ़ एकड़ भूमि हो तथा जो अपनी भूमि पर बने मकान में रहता हो साथ ही वैदिक मंत्रों का ज्ञाता हो।
  • महासभा को पेरूंगुर्रि तथा समिति के सदस्यों को वारियप्पेरूमक्कल कहा जाता था। सभा की बैठक गाॅव के मंदिर, वृक्ष के नीचे या जलाशय के किनारे होती थी।
Chola Dynasty  में समाज
  • Chola Dynasty में दक्षिण वर्गीय (वलंगई) तथा वामवर्गीय (इडंगई) औद्योगिक वर्गीय दो समूह थे। दक्षिण वर्गीय जातियाॅ मुख्यतः कृषक एवं श्रमिक जातियाॅ थी तथा वामवर्गीय जातियाॅ हस्तशिल्पकारों या दस्तकारों की जातियाॅ थी।

कला

  • ईटों के स्थान पर पत्थरों का प्रयोग चोलों के काल में आरम्भ हुआ तथा जिसका सर्वोत्तम उदाहरण कांचीपुरम् के मंदिरों में देखा जा सकता है।
  • चोल मंदिर निर्माण कला की मुख्य विशेषताएं थी-वर्गाकार या उचे विमान, मण्डप, गोपुरम, कलापूर्ण स्तम्भों से युक्त बृहत्सदन आदि।
  • राजराज प्रथम द्वारा निर्मित तंजौर के वृहदीश्वर मंदिर को द्रविड शिल्पकला की सर्वोत्तम कृति है।
  • चोलकालीन सर्वाधिक सुन्दर कांस्य मूर्तियां नटराज शिव की है।
  • विजयालय ने चोलेश्वर मन्दिर का निर्माण करवाया।

south bharat

Key Points

  • नाडु के अन्तर्गत अनेक ग्राम संघ थे जिन्हें कुर्रम कहा जाता था।
  • व्यवसायियों एवं शिल्पियों की सभाओं को क्रमशः श्रेणी एवं पूग कहा जाता था।
  • मंदिरों को प्रदत्त भूमि देवदान, देवाप्रहार, देवभोग तथा मठो को दी जाने वाली भूमि पडप्पुर कहलाती है।
  • समुदाय विशेष (ब्रहामण) की सामूहिक भूमि अग्रहार या गणभोग्य कही जाती थी।
  • अययावोल घुमक्कड़ व्यापारियों का एक वर्ग था।
  • व्यापारिक श्रेणियों में प्रथम ’मनीग्रामम्, 9वीं से 18वीं शती के अंत तक समुद्र तटीय एवं आन्तरिक व्यापार में संलग्न था।
  • चेलकाल में ’अंजुवणम् तथा ’वीरवनंजूस’ नामक व्यापारियों की प्रसिद्व श्रेणीयाॅ थी।
  • राजेन्द्र प्रथम सबसे पहला भारतीय शासक था जिसने अरब सागर पर पानी प्रभुता कायम की।
  • चोल राजाओं ने उत्तराधिकारी या युवराज चुनने की प्रथा आरम्भ की और अपने जीवन काल में उसे शासन में भाग लेने का मौका दिया।
  • एकल इकाई के रूप में शासित विशाल ग्रामों को चोल साम्राज्य में तनियर कहा जाता था।
  • महाबलीपुरम, कावेरी पत्तनम्, शालियूर और कोरकई चोल युगीन पत्तन थे।
  • उत्तमेरूर अभिलेख से स्थानीय महासभा की कार्य संचालन प्रणाली पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। यह सभा परान्तक प्रथम के समय मंे स्थापित हुई थी।
  • व्यापारिक निगमों में सर्वाधिक शक्तिशाली नानादेशि नामक निगम थे।
  • बेल्लाल, बडे भूस्वामी थे। इन्हें स्थानीय करों से मुक्ति मिली थी।
  • पल्लियों को खेतीहर मजदूर कहा जाता था।
  • कम्माल, दस्तकार थे। जो चोलकाल में मन्दिरों के निर्माण में उपयोगिता होने के कारण श्रेष्ठ सामाजिक स्थिति में थे।
  • तमिल लेखकों में सर्वाधिक प्रसिद्व जयन्गोन्दार था। वह चोल शासक कुलोत्तुंग प्रथम का राजकवि था और उसने कलिंगत्तुंपर्णि नामक ग्रन्थ की रचना की।
  • कम्बन कुलोत्तंग तृतीय के शासन काल में प्रसिद्ध कवि था जिसने तमिल रामायण की रचना की, जो तमिल साहित्य का महाकाव्य माना जाता है।
  • 11 वीं सदी में कंवन, ओट्टक्कुट्टन और पुगलेनिद नामक तीन विद्वान रचनाकर हुए जिन्हें तमिल साहित्य के तित्ररत्न के रूप में स्मरण किया जाता है।

Lingayat 

By admin

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