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Ad-hoc Judges (तदर्थ न्यायाधीश)
अन्य न्यायाधीशों के विपरीत Ad-hoc Judges का चयन एक निर्धारित समय अवधि के लिए सामान्य प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है। Ad-hoc Judges को केवल एक विशेष मामले या आशय या एक सीमित अवधि कि लिए पृथक प्रक्रिया द्वारा नामित किया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय में Ad-hoc Judges की नियुक्ति-
भारतीय संविधाान के अनुच्छेद 127 के तहत, भारत के मुख्य न्यायाधीश एक निर्दिष्ट समय के लिए किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय के तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नामित कर सकते हैं। यदि किसी समय उच्चतम न्यायालय के लिए न्यायाधीशों की गणपूर्ति न हो तो राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से मुख्य न्यायमूर्ति उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश से न्यायालयों की बैठकों में उपस्थित रहने के लिए लिखित रूप् से अनुरोध कर सकेगा। जिस न्यायाधीश को निमन्त्रित किया जाता है वह उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए अर्हित होना चाहिए। अनुरोध से पहले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायामूर्ति से परामर्श करना आवश्यक है।
- यद्यपि भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने तथा भारत के राष्ट्रपति से पूर्व सहमति प्राप्त करने के बाद ऐसा कर सकते हैं।
- इन Ad-hoc Judges के पास देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सभी शाक्तियां, अधिकार, लाभ और दायित्व होते हैं।
उच्च न्यायालयों में Ad-hoc Judges की नियुक्ति-
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश (जो किसी उच्च न्यायालय का पद धारण कर चुके हों) से उस राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकते हैं (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 224ए के तहत)।
- यद्यपि इसके लिए भी राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य है।
- उच्च न्यायालय के Ad-hoc Judges के पास भी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सभी शक्तियां, अधिकार, लाभ और दायित्व होते हैं।
लोक प्रहरी बनाम भारत संघ वाद (2021)
सर्वोच्च न्यायालय ने 20 अप्रैल, 2021 को दिए गए इस निर्णय में उच्च न्यायालों में लम्बित मामलों से निपटने के लिए संविधान के अनुच्छेद 224ए के तहत तदर्थ न्यायाधीशों के रूप में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति का रास्ता साफ कर दिया था।
प्रमुख दिशा-निर्देश-इस वाद में शीर्ष अदालत द्वारा तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के सम्बन्ध में कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किये गये थे, जो निम्न है-
- अनुच्छेद 224ए के तहत न्यायाधीशों की तदर्थ नियुक्ति नियमित नियुक्ति का विकल्प नहीं होगी।
- भारत के समेकित कोष से तदर्थ न्यायाधीशों के वेतन का भुगतान किया जाएगा।
- तदर्थ न्यायाधीशों का कार्यकाल जरूरत के आधार पर अलग-अलग हो सकता है, लेकिन आम तौर पर यह नियुक्ति 2 से 3 वर्ष की अवधि के लिए होगी।
- उच्च न्यायालय की सामथ्र्य और उसके सामने आने वाली समस्या के आधार पर, ंअदालत में तदर्थ न्यायाधीशों की संख्या फिलहाल 2 से 5 के बीच होनी चाहिए।
- इसलिए तदर्थ न्यायाधीशों को 5 साल से अधिक पुराने मामले सौंपे जा सकते हैं, चूंकि इस कदम का लक्ष्य बैकलाॅग को दूर करना है, ।
Ad-hoc Judges की नियुक्ति की शर्तें-उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश निम्नलिखित स्थितियों में तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं-
- यदि न्यायाधीशों की रिक्तियां स्वीकृत क्षमता के 20 प्रतिशत से अधिक हों,
- किसी विशेष श्रेणी के मामले 5 साल से अधिक समय से लम्बित हों, या
- 10 प्रतिशत से अधिक लम्बित मामले 5 साल से अधिक पुराने हों, अथवा
- ममलों के निपटान की दर प्रतिशत नए मामलों की संख्या से कम हो।