Abhyutthanam

राजधर्म के पालन का दृष्टान्त-Abhyutthanam

दुनिया की समस्त सभ्यताओं में से भारतीय सभ्यता प्राचीनतम है। इतिहास में मौर्य साम्राज्य की स्थापना और भारत में सिकन्दर के आगमन से मुहं नहीं फेरा जा सकता है। इसका चीज का स्पष्ट उल्लेख समकालीन अभिलेखो और साहित्यों में मिलता है। ऐतिहासिक उपन्यासों में, विभिन्न पात्रों, संवादों और घटनाओं के साथ भाषा, संस्कृति, जीवनशैली आदि को इस तरह से चित्रित आज के परिप्रेक्ष्य में सम्भव हो सकें। लेखक अजीत प्रताप सिंह की पहली एतिहासिक कृति ‘Abhyutthanam’, प्राचीन भारत की राजनीति, कूटनीति, शौर्य, पराक्रम, उदारता, प्रतिशोध, छल के रस का आस्वाद देती है। अद्भुत साहस और रोमांच की दास्तान समेटे यह पुस्तक ‘Abhyutthanam’ शुरू होती है भगवान महात्मा बृद्ध के महापरिनिर्वाण के कुछ दशकों बाद। उस समय मगध काल था और महापद्मानन्द को शासन था।
लगभग 400 पृष्ठों के इस उपन्यास ‘अभ्युत्थानम’ को मोेटे तौर पर हम चार या पंाच खण्डों में विभाजित कर सकते है, जिसमें सर्वप्रथम नन्द की कहानी है, जो अपने अनैतिक और क्रूर अत्याचार के आचरण के बाद मगध का राजा बन जाता है। इसके बाद चणक के पुत्र विष्णुगुप्त और उनकी तक्षशिला की यात्रा का वर्णन है, जहां वे चाणक्य बनते हैं। ‘Abhyutthanam’ में आगे चाणक्य द्वारा चन्द्रगुप्त की खोज और सिकन्दर के आक्रमण का जिक्र है। यूनानियों के विरूद अनेक राज्यों के एकीकरण का रोचक प्रसंग और अन्त में, धनानन्द की राजधानी पाटलिपुत्र में गद्दी से हटते हुए देखते हैं। इस उपन्यास ‘अभ्युत्थानम’ को पढ़ते समय हम खुद को उस कालखण्ड में पाते हैं, जहां ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कि सब कुछ हमारी आंखों के सामने घटित हो रहा हो।
किताब ‘Abhyutthanam’ में वर्णन है कि दुनिया सिकन्दर को एक महान विजेता मानती है। जो दुनिया को जीतने के लिए निकला था लेकिन भारत में प्रतिरोध का सामना करने के बाद उस तथाकथित विश्व विजेता सिकन्दर को भी पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा था। जबकि इसके उलट, एक साधारण भारतीय युवा, उस सिकन्दर से लगभग आधी, उसने एक प्रबल सेना बनाई, यूनानियों को हराया और सिकन्दर की कल्पना से भी एक अधिक विशाल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की।’
भारतीय योद्धाओं की वीरता और महानता के प्रमाण के लिए पुस्तक का एक अंश ही पर्याप्त जान पड़ता है, जब सिकन्दर घायल अवस्था में मालवों के सम्मुख भूमि पर श्वान की तरह लोट रहा था, तब वीर मयूरध्वज का यह कथन -‘जाओ म्लेच्छाधिपति, अपने प्राणों की भिक्षा ग्रहण करो और स्वस्थ होकर पुनः युद्ध के लिए प्रस्तुत होना। घायल और निःशस्त्र का वध करना भारतीयों की परम्परा नहीं।’

Abhyutthanam and ChandraGupt Maurya

पुस्तक ‘Abhyutthanam’ में लेखक अजीत प्रताप सिंह ने जाति व्यवस्था पर भी बात की है और लगभग उपन्यास ‘Abhyutthanam’ का दो-तिहाई हिस्सा इस पर केन्द्रित है। उदाहरण के लिए, चन्द्रगुप्त मौर्य को शूद्र परिवार से बताना और शूद्र को भारत के सम्राट की उपाधि देना कोई सामान्य घटना नहीं थी। यह भारतीय समाज के उन लोगों की मानसिकता पर एक प्रहार जैसा है, जो जाति व्यवस्था की असमानता को देश में बरकरार रखना चाहते हैं।
लेखक अजीत प्रताप सिंह पुस्तक ‘Abhyutthanam’ में लिखते हैं-‘भारतीय इतिहास में सदैव ही पराजयों को, नकरात्मकताओं को अधिकाधिक चित्रित किया गया है। यवनों के आक्रमण को बस ‘सिकन्दर वापस लौट गया’ यह कहकर बात को हल्का किया जाता है। यदि इतना ही था तो वे वाहीक स्त्रियां कौन थीं, जिन्होंने अन्तिम श्वास तक युद्ध किया ? उन कठों का क्या जो समाप्तप्राय हो गए ? मात्र आंभी? पर्वतेश्वर और मगध ही थे तो वे अश्मक, अभिसार, ग्लुचुकायन, शिवि, अम्बष्ठ कौन थे ? विदेशी आक्रमण के समय भी हम आपस में लड़ते थे, तो उन चिरशत्रु मालवों और क्षुद्रकों की संन्धि का क्या, जिन्होंने शत्रुता भुलाने के लिए 20,000 से अधिक परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध बनाए। आग्रेय स्त्रियों का अग्निशमन, ब्राह्मणक जनपद के निवासियों के वृक्षों से लटके शव, विजित प्रदेेशों का विद्रोह। ऐसी बहुत सारी अनेक बातें हैं, जिनके बारे में भारतीय इतिहास में बहुत कम ही लिखा गया है।
मूल विषय के साथ न्याय करते हुए पुस्तक ‘Abhyutthanam’ रत्नों, युद्ध-नीतियों, जासूसी, प्रेम और स्थापत्य से सम्बन्धित विभिन्न शब्द और उनकी व्याख्याओं के साथ हमारा ज्ञानवर्धन करती है। पुस्तक ‘अभ्युत्थानम’ में वर्णित घटनाएं सदियों पुरानी हैं, लेकिन इसमें वर्तमान की झलक देते हुए लेखक अजीत प्रताप सिंह ने ऐतिहासिक तथ्यों की छेड़छाड़ से परहेज किया है। उपन्यास ‘Abhyutthanam’ तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक परिस्थियों के बीच चाणक्य को समझने का बेहतरीन जरिया हो सकता है।
‘अर्थशास्त्रम’ जैसे विख्यात ग्रन्थ के रचनाकार चाणक्य से यह अपेक्षा करना कि व्यक्तिगत अपमान से उत्तेजित होकर वे नन्द को हटाकर एक युवा को मगध के सिंहासन पर बिठा देंगे, वह भी मात्र बच्चों द्वारा खेले जाने वाले राजा-प्रज्ञा के खेल को देखकर, यह उनके साथ अन्याय जैसा होगा। इस मामले में लेखक अजीत प्रताप सिंह ने चाणक्य जैसे अद्भुत व्यक्तित्व के साथ न्याय करने का भरभूर प्रयास किया है। ‘Abhyutthanam’ में चन्द्रगुप्त का पर्वतेश्वर को समझाना कि ‘मैं चाहता हूं कि आप वास्तविक धर्म को पहचानें। अपने राजधर्म का पालन करें। इस दासता के पाश को अपनी ग्रीवा से उतार कर हमारा साथ दें। एक राष्ट्र के हमारे स्वप्न को साकार करने में ंहमारी सहायता करें’, भारतीय संस्कृति की गहरी समझ देते हुए की एकजुटता का एहसास, उस काल सन्दर्भ में काफी आगे की सोच का भान कराती है। रोमांचक भाषा शैली के साथ लिखा गया यह उपन्यास ‘Abhyutthanam’ एक ऐतिहासिक पठनीय किताब है।
स्त्रोतः-
1. उपन्यास Abhutthanam लेखक अजीत प्रताप सिंह (बुक को आनलाईन अमाजॉन से खरीदने के के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)
2. दैनिक जागरण
आन्तरिक स्त्रोत- आंधारी उपन्यास

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