Aandhari

विलाप और विद्रुप में तिरोहित Aandhari

Aandhari सतत लगातार चलने वाले विलाप की तरह है, जिसकी त्रासदी को कोविड महामारी की जमीन विस्तार देती है। नमिता गोखले का अधिकांश लेखन हमारे छीजते संयुक्त परिवारों, रिश्तों में सहकार बचाए रखने की कवायद और खण्डित स्वप्नों को तटस्थता से देखने की पीड़ा से जन्म लेता है। वे उसे धारदार बनाने में स्मृतियों, पहाड़ की लोक कथाओं और परम्परा में लगातार बहती चली आ रही मान्यताओं के सलमे सितारों से अपने उपन्यासों की चादर बुनती हैं। वे अतिया हुसैन की सनलाइट आन अ ब्रोकन कालम और वी0एस0 नायपाल की हाउस फार मिस्टर बिस्वास की तरह का लोक सिरजती हुई Aandhari का कैनवास उभारती है, एक बड़े से संयुक्त परिवारों की कई पीढ़ियों के अन्तर्गंफुन को उसकी समग्र जटिलता में साधते हुए…. यहां एक ही इमारत की अलग-अलग मंजिलों पर सांस लेने वाली कई पीढ़ियों का ऐसा मनोविज्ञान पसरा हुआ है, जो अपनी नियति को त्रासद विद्रूप में बदलते हुए देखने पर भी उसे हाथ से रेत की मानिन्द सरकता हुआ देखता रह जाता है। वे एक ही समय में काल के प्रश्न को नकारती हुई, उसे कालावधि से मुक्त करने के जतन में लगी हैं, जो यह सामयिक प्रश्न सुलझते हुए देखना भी चाहती हैं-वाममार्गी और दक्षिणपंथी राजनीति के बीच कोई रास्ता है भी तो कहां? …यह वैसा ही श्रम है, जैसी कोशिश नजूमी और जादू का खेल दिखाने वाले एक असम्भावित सम्मोहन की जद में जाकर रचते रहते हैं। सायास किया गया यह काम उनके रच गए समाज से भी प्रतिप्रश्न करता हुआ चौकस नजर आता है।

Aandhari and Matangi Maa

इस उपन्यास Aandhari में ढेरों किरदार अपनी बनक में समाज की अनूठे ढंग से निशानदेही कराते हैं, जोकि बहुस्तरीय है। Aandhari उपन्यास कथानक की मुख्य पात्र मातंगी मां के कुनबे के असंख्य लोग, उस समय में उपस्थित हैं, जो एक संक्रान्ति काल में उलझा हुआ है। छोटा बेटा सतीश, उसकी पत्नी रितिका और पौत्र राहुल के अलावा शांत, सूर्यवीर, समीर, अन्ना सेन, लाली और कई ऐसी ना मालूम सी उपस्थितियां, जो किसी उपन्यास या मल्टीस्टार फिल्म में लोगों के होने से उस कथानक या फिल्म का जायका बदलती हैं, जो इस उपन्यास में मौजूद हैं। उपन्यासकार की सबसे शानदार सफलता यह है कि वे हर छोटे-बड़े चरित्र को संवेदनशीलता से छूते हुए उसका आगमन इस तरह संवारती हैं कि छोटे दृश्यबन्ध भी उनके विवरण या डिटेलिंग से चमक उठें। हमें इस उपन्यास Aandhari  को पढ़ते हुए यह नहीं भूलना चाहिए कि मूल रूप में इसकी अवधारणा एक अंग्रेजी नावेल की रही है। इस उपन्यास Aandhari में एक खास किस्म का समाज और वहां होने वाली गतिविधियां को जटिलताओं के परिप्रेक्ष्य में साकार करना अंग्रेजी उपन्यासों की चलन रहा हैं। इस उपन्यास Aandhari में विशेषकर मातंगी मां को केन्द्र में रखकर उसकी परिधि में सिमटा हुआ समय, जहां इंद्रियगोचर अनुभवों को भी धारदार ढंग से लिखा गया है। इसमें महसूस की जाने वाली खूशबू, स्पर्श और एहसास को पढ़ना आनन्दित करता है और लेखिका के सूक्ष्म विश्लेषण के प्रति पाठक आश्चर्य में पड़ जाता है। सामान्य ढंग से जीवन को चलाए रखने की युक्तियों का समावेश भी इस उपन्यास Aandhari की जटिलता को एक अजीब कैफियत देता है। संयुक्त परिवार के संत्रास में विद्रूप और वेदना को मिलाने के लिए कोरोना जैसी महामारी का धरातल इसके सजल गद्य को और भी अंधेरे में ले जाता है। हालांकि, करीने से पढ़ते हुए उपन्यास का स्वर सकारात्कम ढंग से सम्भावना की तलाश में उसी तरह बढ़ता है, जिस तरह शास्त्रीय संगीत मं अकसर गायिकी का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए विवादी सुर लगाए जाते हैं।
इस उपन्यास ‘Aandhari’ में कुछ ऐसे सीमान्त भी बनते हैं, जिनके ब्यौरे निर्मल वर्मा के उपन्यासों की याद दिलाते हैं, विशेषकर ‘वे दिन’ की …उपन्यास में ंजब कभी राग मिश्र गारा, रियाज सिंगलमाल्ट, सिगरेट के धुएं की भनक, किरदार की तरह एक बिल्ली की मौजूदगी और सीढ़ियों से उतरने-चढ़ने के बिम्ब आवाजाही करते हैं, अनायास निर्मल वर्मा की याद आते हैं। लेखिका नमिता गोखले आवाज के उजाले को, स्वर के मद्धिम प्रकाश को, ध्वनियों की सावधान शिनाख्त को इतनी खूबसूरती से बरतती हैं कि कई बार यह लगने लगता है कि उपन्यास को अवसाद अभी खत्म न हो, उसकी रोचक बयानी कुछ देर तक और ब़ढ़ती जाए। मांतगी का होना एक ऐसा समय में घटित हो रहा है, जब नई पीढ़ी तेजी से बदलने को आतुर है और बीच में नागरिक अपने वरिष्ठों और बच्चों से सांमजस्य बिठाने में खुद का जीवन कठिन बनाते जा रहें हैं। यह उपन्यास Aandhari एक व्यक्ति के बहाने उस विकास के लिए प्रयत्नशील संघर्ष को रेखांकित करता है, जिसमें एक ही कालावधि में मौजूद कई पीढ़ियां भारतीय परिवार की जकड़न से बाहर निकलने की कोशिश में निरन्तर संलग्न हैं। इसी मंे मूल्यों और सम्बन्धों की मुठभेड़ होती है, जो कई बार रिश्तों की जीवन्तता को हमारे आंखों के सामने लील लेती है। विलुप्त होती जाती मनुष्यता और परिवार के आन्तरिक जीवन के रोजनामचे को एक ही समीकरण से हल करने की असाधारण कोशिश हैं-‘‘आंधारी’’। हमारी सभ्यता के प्रश्नों से जूझने के लिए कुछ निराशा और कुछ विस्मय से होने वाला क्लब हाउस डिस्कशन’ भी है यह उपन्यास….।
स्त्रोतः-
1. उपन्यास Aandhari के पन्नों से (आनलाईन अमाजॉन से खरीदने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)
2. दैनिक जागरण
इन्टरलन लिंक वे नायाब औरतें

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share via
Copy link
Powered by Social Snap