गुलाबी नदी की मछलियां-सिनीवाली, अन्तिका प्रकाशन, गाजियाबाद

हिन्दी कहानी में सिनी की दस्तक देर से, मगर दुरूस्त है। समाज का यथार्थ चित्रण करती कहानियां वक्त की नब्ज पकड़कर लोक के अंतंस में पैठी गहन पीड़ा, तकलीफ, जद्दोजहद, कसक और कारपोरेट के दस्तक से उत्पन्न खलल को उजागर करती हैं। कहानी के पीछे का श्रम पठनीयता में सुस्पष्ट है। ‘रहो कंत होशियार‘ ईट-भट्टे के मालिकों से मुस्तैद मुठभेड़ की कहानी है। ‘गुलाबी नदी की मछलियां (Gulabi Nadi Ki Machhaliyan) प्रेम की होकर भी मछली मुख्य नैरेटर है जिसकी आंखें में अर्जुन की तीव्रता है जो कि नायिका के हदय से निकलती है। अधजली, इत्रदान इफरात उत्पादन के चर्चा के दौर में मुश्किल और जरूरी प्रश्नाकिंत करती कहानियां हैं।

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