सोफियामनीषा कुलश्रेष्ठ, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली और कलर ऑफ लव-वन्दना गुप्ता, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली

उपन्यास समाजिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रभाव दर्शाते हैं। बीमारिया प्रकृति प्रदत्त होती हैं, विकृतियां मानसिक व सामाजिक ढांचे का परिणाम होती हैं। ये दोनों उपन्यास समस्या प्रधान हैं, जिसमें मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता दिखती है। दोनों उपन्यास बीमारियों के सन्दर्भ को जोडते हैं। सोफिया सामाजिक यथार्थ की दारूण कथा है, जबकि कलर आफ लव में प्राकृतिक सौंदर्य में विशिष्ट गुण निरूपित है जिसे सामाजिक अवधारणा में अवगुण की तरह देखा जाता है। सोफिया में ज्वलन्त सामाजिक विकृति (आनर किलिंग) को गम्भीरता से उठाया गया है, दूसरी तरफ कलर ऑफ लव में चाइल्ड डाउन सिंड्रोम की रेयर आफ रेयरेस्ट समस्या जिसे समस्या न कहकर एक विशेष रूप् के तौर पर मासूम पीहू के बरक्स दर्ज किया है। जिसका मनोविज्ञान स्कूल से नहीं, बल्कि गर्भस्थ मां व डाक्टर के बीच संवाद से शुरू होता है। सोफिया में हिन्दू-मुस्लिम के अन्तर्गत खीचीं गई न मिटने वाली लकीर पर प्रेम रूपी तलवार के गिरने की आवाज है तो कलर ऑफ लव में परिवार के बीच शोकगीत की रात पैदा होने वाली अल्पविकसित संतान के प्रति करूण आलाप ही नहीं गहन चिंता भी समाहित है। दोनों कृतियां समाज की दो अलग-अलग विकृतियों पर सूक्ष्मता से न केवल प्रकाश डालती हैं, वरन सचेत भी करती हैं।

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