Veer savarkar

Veer savarkar-जो भारत का विभाजन रोक सकते थे और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टि

भारत की स्वाधीनता के लिए जिन अमर नायकों ने अपनी वैचारिकी से इस आन्दोलन को प्रभावित किया है उनमें विनायक दामोदर सावरकर का अलग ही मुकाम है। अपने मौलिक चिन्तन से भारतींय अस्मिता को नई अवधारणा देने में Veer savarkar का नाम लिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में अंग्रेजी और हिन्दी में उनकी दृष्टि, वैचारिकी और सैद्धान्तिक प्रश्नों को लेकर कई पुस्तकें प्रकाशित हुयी है, जिनके कारण आम जनमानस में Veer savarkar को लेकर विचार-विमर्श का एक आधुनिक अध्याय शुरू हुआ है। वरिष्ठ पत्रकार उदय माहुरकर और चिरायु पण्डित की अंग्रेजी में प्रकाशित वीर सावरकर का हिन्दी अनुवाद स्वागत योग्य है, जिसमें रमाशंकर सिंह और नरेश कौशिक ने कुशलतापूर्वक सम्पादित किया है। चूंकि किताब Veer savarkar को केन्द्र में रखकर उनके समय और तत्कालीन समाज में भारतीय नवजागरण को विस्तार से देखती है, परखती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संचालक श्री मोहन भागवत द्वारा लिखी गई भूमिका ने भी कुछ मूलभूत प्रश्नों को इसके सन्दर्भ में प्रस्तावित किये गये हैं, जिनकी रोशनी में किताब की अवधारणा समझी जा सकती है। Veer savarkar के सम्बन्ध में ऐसे अनेकों पक्षों का नए सिरे से प्रस्तुत करने का जतन लेखक श्री उदय माहूरकर एवं चिरायु पण्डित द्वारा किया गया है, जो अभी तक विचार-विमर्श की परिधि से बाहर रहे हैं। वे तार्किक ढंग से इस तर्क का संधान करते हैं कि किस तरह Veer savarkar ने पहली बार स्वतन्त्र भारत को अब तक की सर्वाधिक सशक्त सुरक्षा नीति तथ कूटनीतिक व्यवहार का विचार दिया। एक तरह से यह किताब उस समय और भी अधिक प्रासंगिक बनकर सामने आती है, जब हम अपनी स्वाधीनता का हीरक जयन्ती पूरी कर चुके हैं। भारत की एकता और अखण्डता को Veer savarkar के उन प्रयासों में देखने की युक्ति भी यह कृति प्रस्तावित करती है, जिसमें देश के विभाजन को रोकने के लिए सावरकर प्रयासरत रहे थे। यह अलग बात है कि विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं के व्यक्तियों ने वीर सावरकर दृष्टि का एक खास ढंग से अवमूल्यन किया और साथ ही उनकी हिन्दुत्ववादी सोच पर चिन्ता जताई। बावजूद इसके देश को एकजुट बनाए रखने की उनकी सैद्धान्तिकी को भी समग्रता में पढ़ने की आवश्यकता है, जिससे उन सीमान्तों को भी परखा जा सके, जो किन्हीं आशयों के तहत अभी तक प्रबुद्ध समाज में विद्वानों द्वारा अछूते माने जाते थे।
शोध और तथ्यों के साथ लिखी गई इस किताब में कई अध्याय हैं, जो Veer savarkar के बहाने भारतीय राजनैतिक परिदृश्य का एक विस्तृत ब्यौरा उकेरते हैं। सावरकर युग का प्रारम्भ परिचय के साथ आरम्भ हुई यह किताब आठ अध्यायों में विभक्त है, जिनमें तटस्थता से बहुत सारे ऐसे प्रश्नों को समेटने की कोशिश की गई है, जो आज की नई पीढ़ी जानना चाहती हैै। इनमें कांग्रेस ने विभाजनकारी मुस्लिम राजनीति के सामने कैसे घुटने टेके, क्या है सावरकर का हिन्दुत्व, भारत में क्रान्ति के देवदूत का जयघोष, अखण्ड भारत हेतु एक राष्ट्रवादी का संघर्ष, सावरकर का अन्तिम पडावःअन्धकार और प्रकाश, राष्ट्रीय सुरक्षा एंव कूटनीति में नए प्रतिमान तथा सावरकरवादः एक दृष्टिकोण, जिसने भारत को एक नया रूप् दिया अध्यायों में हम उस हिन्दुत्ववादी जननायक की चिन्ताओं से रूबरू होते हैं, जिनमें भारतमाता को अपनी आस्था से एक अखण्ड राष्ट्र के रूप में पाने का स्वप्न देखा था। उनके कई प्रेरक गीत भी इसी बात को रेखांकित करते हैं कि उनके हदय में कैसा क्रान्तिकारी उपस्थित था। सागरा प्राण तणमणला जैसा कालजयी गीत भी सावरकर साहित्य का अमर उदाहरण माना जाता है। किताब को रचने में जिन महत्वपूर्ण कृतियों का अध्ययन किया गया है, उनमें स्वयं सावरकर की रची पुस्तकों-मेरा आजीवन कारावास, कालापानी, हिन्दू पदपादशाही, छह स्वर्णिम पृष्ठ के अलावा अक्षय जोग, धनंजयकीर, बालाराव सावरकर, बलराज कृष्ण, आर जे मूरे, युवराज कृष्ण और पण्डित बाखले की कृतियां शामिल हैं।
उदय माहुरकर और चिरायु पण्डित कई सैद्धान्तिक प्रश्नों की विश्लेषणात्मक ढंग से उभारते हैं साथ ही ऐसे ढेरों संकेत देते चलते हैं, जिससे Veer savarkar की कार्यप्रणाली को लेकर एक बौद्धिक अवधारणा सामने आती है, जैसे सावरकर रियासतों में चल रही राजनीतिक और धार्मिक गतिविधियों पर बहुत बारीकी से नजर रख रहे थे। जुलाई, 1942 में उन्होंने सिरोही के महाराव से आबू में जैन मन्दिरों की तीर्थयात्रा के लिए जैनियों से लिए जाने वाले कर को समाप्त करने की प्रार्थना की थी। ऐसे तथ्यों को तर्कपूर्ण ढंग से रेखांकित करते हुए लेखक सावरकर की वैचारिकी की समग्रता में मूल्याकित करते हुए भारतीय राजनीति के प्रति उनके विचारधारात्मक संघर्ष की प्रखरता देते से लगते हैं। यह एक खोजपरक पुस्तक, जो विनायक दामोदर सावरकर को आधुनिक ढंग से समझने की कुंजी देती है।

सावरकर-एक विवादित विरासत, लेखक विक्रम सम्पत

आज भी, केवल विनायक दामोदर सावरकर का नाम भर रक्त में उबाल ला देता है। अतः व्यक्ति, उनके समय और उनकी विरासत के सम्बन्ध में बेहतर जानकारी के लिए एक ही जीवनीकार का नाम सामने आता है, जो है विक्रम सम्पत। परिदृश्य पूर्णतः नया और संजीदा भाव-भंगिमा वाला है, और इतिहास में बिखरी पड़ी सूचनाओं को बटोरते हुए सावरकर की जो छवि वह सबके सामने रखते हैं, वह विविध और जटिलताओं से भरी हुई है।.विस्तृत शोध पर आधारित, परन्तु पढ़ने में बेहद सरल, पुस्तक एक क्रान्तिकारी हिन्दू के विचारों और दुनिया को हमारे समाने लाती है, जिसका आधुनिक भारत की दशा-दिशा पर गहरा असर पड़ा है। महात्मा गांधी की हत्या में उनकी कथित मिलीभगत के चलते वीर सावरकर को भारतीय इतिहास से बाहर कर दिया गया था, मैं विशेष तौर पर गांधी की हत्या पर लिखे ंअध्याय की भरपूर प्रंशंसा करता हू। इस वृतांत अपने आप में सम्पूर्ण हैं। Veer savarkar का जीवन उस परिमाण का उदाहरण है जिसमें व्यक्ति की इच्छाशक्ति उसके जीवन को निर्दिष्ट करती दिखती है। उपनिवेशवादी आकाओं के हाथों अवर्णनीय कष्ट झेलने के बावजूद मातृभूमि की आजादी के लिए लड़ने की उनकी तत्परता थमी नहीं थी। आज के भारत को दिशा देने में उनका योगदान वहुआयामी है। सामाजिक से लेकर सांस्कृतिक मुद्दों तक, Veer savarkar की छाप सब ओर नजर आती है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में उनकी भूमिका के प्रति यह समुचित श्रद्धाजंली स्वरूप कार्य है। पुस्तक 1924 में उनकी रिहाई से 1966 में उनके निधन तक भारतीय राजनीति के रोचक सन्दर्भ उपलब्ध कराती है। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या और नतीजन सावरकर पर उसके आरोप को वस्तुनिष्ठ तरीके और सामयिक प्रासंगिकता के अनुसार परखा गया है।

“भारतीय इतिहास के प्रत्येक अध्येता को वीर सावरकर जरूर पढ़नी चाहिए। भारत में रूचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मैं यह पुस्तक पढ़ने की राय दूंगी।” लवण्या वेमसानी प्रोफेसर, शॉनी यूनिवर्सिटी।

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