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प्रधान न्यायाधीश जस्टिस यू0यू0 ललित की अध्यक्षता वाली पीठ इस बात की जांच कि क्या 103वां संविधान संशोधन अधिनियम संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है अथवा नहीं। सामान्य वर्ग के गरीबों Economically Weaker Sections को सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण जारी रहेगा। गरीब सवर्णों का आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक और सामाजिक रूप से व्यापक असर डालने वाला ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने तीन-दो के बहुमत से 103वें संविधान संशोधन को सही ठहराया।
- याचिकाकर्ताओं ने इस संशोधन को इस आधार पर भी चुनौती दी है कि यह इन्द्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फेसले का उल्लघंन करता है। इन्द्रा साहनी मामले में अदालत ने मण्डल रिपोर्ट को बरकरार रखते हुए आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित की थी।
- इस संविधान पीठ ने प्रधान न्यायाधीश यू0यू0 ललित के अतिरिक्त न्यायमूर्ति एस0 रवीन्द्र भट, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस0बी0 पारदीवाला और न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी शामिल हैं। पीठ ने 13 सितम्बर, 2022 से मामले में सुनवाई शुरू की थी।
- सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने तीन-दो के बहुमत से संविधान के 103 वें संशोधन को वैध ठहराया है। यह संशोधन जनवरी, 2019 में किया गया था। संशोधन की चुनौती दी गई थी, जिसे अगस्त 2020 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा गया था। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस एसबी पाडीवाला ने संविधान के 103 वें संशोधन का वैध माना है। इन तीन जजों ने कहा कि इस संशोधन से संविधान का मूल ढांचा प्रभावित नहीं होता है। जस्टिस एस रविन्द्र भट और चीफ जस्टिस यू0यू0 ललित ने संशोधन को वैध नहीं मानते हुए फैसला दिया।
Economically Weaker Sections (EWSs) पर जजों की राय
पक्ष में-
- जस्टिस माहेश्वरीः Economically Weaker Sections आरक्षण एक उपकरण है, जिसके जरिये न सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक बल्कि किसी अन्य कमजोर वर्ग को समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जा सकता है। इस लिहाज से सिर्फ आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना संविधान के मूल ढांचे को नुकसान नहीं पहुचाता है। आरक्षण सकारात्मक कार्रवाई का एक साधन है। इसके जरिये गैरबराबरी के लोगों को बराबरी पर लाने का लक्ष्य प्राप्त करना होता है। जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा का उल्लंघन होने के आधार पर भी इसे संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि 50 प्रतिशत की सीमा गैर लचीली नहीं है।
- जस्टिस बेला एम त्रिवेदीः संविधान संशोधन में Economically Weaker Sections को एक अलग वर्ग बताना सही है। इसे बराबरी के सिद्धान्त का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। व्यापक जनहित को देखते हुए आरक्षण की अवधारणा पर फिर से विचार करने की जरूरत है। इस संविधान संशोधन के जरिये राज्य सरकारों को एससी/एसटी और ओबीसी से अलग किसी अन्य वर्ग के लिए सकारात्मक कार्यवाही का अधिकार दिया गया है।
- जस्टिस जेबी पार्डीवालाः आरक्षण कोई साध्य नहीं है। यह एक साधन है। निहित स्वार्थ के लिए इसके इस्तमाल नहीं किया जाना चाहिए। आरक्षण को अनन्तकाल तक जारी नहीं रखना चाहिए।
विपक्ष मेंः-
- जस्टिस एस रवीन्द्र भटः Economically Weaker Sections आरक्षण समान अवसर के बुनियादी सिद्धान्तों के विपरीत है। 103 वां संशोधन भेदभाव का एक रूप है। एससी/एसटी और ओबीसी के गरीबों को संशोधित कानून से वंचित रखना भेदभाव माना जाएगा।
- सीजेआइ यू0यू0 ललितः मैं जस्टिस भट के फेसले से पूरी तरह सहमत हूं।
इस आधार पर दी गई थी संशोधन को चुनौतीः-संविधान के 103 वें संशोधन को यह कहते हुए चुनौती दी गई कि इससे संविधान का मूल ढांचा प्रभावित होता है। सुप्रीम कोर्ट ने केशवानन्द भारती (1973) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे की बात कही थी। इसमें कहा गया था कि संविधान की कुछ बातों को बदला जा नहीं जा सकता है।। संशोधन का विरोध करने वालों की दलील थी कि संविधान में सामाजिक स्तर पर हाशिए पर रह गए वर्गों को विशेष सुरक्षा देने की बात कही गई है, जबकि 103वां संशोधन आर्थिक आधार पर विशेष सुरक्षा का प्राविधान करता है।
संविधान पीठ के समक्ष विचारणीय प्रश्न
क्या संविधान संशोधन ने सरकार को आर्थिक मानदण्डों के आधार पर विशेष प्रावधान करने की अनुमति देकर संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है?
- क्या इसने राज्य को निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान करने की अनुमति देकर संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है?
- क्या ओबीसी/एससी/एसटी समुदायों को इस आरक्षण के दायरे से बाहर रखना संविधान के मूल ढांचे को क्षति पहुंचाता है?
मुख्य बिन्दु
- केन्द्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहें अटॉर्नी जनरल के0के0 वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि Economically Weaker Sections आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि यह सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछडें वर्गों के लिए निर्धारित 50 प्रतिशत कोटे पर कोई प्रभाव नहीं डालता है।
- अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस संशोधन के माध्यम से, राज्य ने ऐसे आर्थिक रूप् से कमजोर वर्गों को सकारात्मक कार्यवाही प्रदान की है, जिन्हें मौजूदा आरक्षण के तहत लाभ नहीं मिला था।
- इससे पूर्व 15 सितम्बर, 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा था कि Economically Weaker Sections के लिए 10 प्रतिशत कोटा उन लोगों की गरीबी समाप्त करने का एक उपाय है, जिन्हें आर्थिक रूप् से वंचित होने के कारण अच्छी शिक्षा और रोजगार के अवसरों से वंचित किया गया।
- पीठ ने कहा कि सरकार आर्थिक मानदण्डों के आधार पर नीतियों का निर्माण करती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी नीतियों का लाभ जरूरतमन्द लोगों को प्राप्त हो सके, ऐसे में आर्थिक मानदण्ड एक अनुमेय आधार है तथा यह निषिद्ध नहीं है।
103 वां संविधान सशोधन अधिनियम
अनारक्षित वर्ग के आर्थिक रूप् से पिछडें लोगों को आरक्षण का लाभ प्रदान करने के लिए वर्ष 2019 में 103वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में संशोधन किया गया तथा संविधान में अनुच्छेद 15(6) और अनुच्छेद 16(6) समाविष्ट किया गया है। इनके तहत गैर पिछड़ा एवं गैर एससी/एसटी श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत तक आरक्षण देने की व्यवस्था की गई। दूसरे शब्दो में कहें तो इस संविधान संशोधन के माध्यम से कथित अगड़ी जातियों या सामान्य वर्ग के गरीब तबके के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।
- Economically Weaker Sections आरक्षण, सेवानिवृत्त मेजर जनरल एस0आर. सिन्हो की अध्यक्षता वाले एक आयोग की सिफारशों के आधार पर दिया गया था। मार्च 2005 में यूपीए सरकार द्वारा गठित इस आयोग ने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
- सिन्हो आयोग ने सिफारिश की थी कि समय-समय पर अधिसूचित सामान्य श्रेणी के सभी बीपीएल परिवारों और उन सभी परिवारों को जिनकी वार्षिक आय सभी स्त्रोतों से कर योग्य सीमा से कम है, को आर्थिक रूप् से पिछड़े वर्ग के रूप् में पहचाना जाना चाहिए।
Economically Weaker Sections आरक्षण सम्बन्धी प्रावधान
- अनुच्छेद 15(6)- यह अनुच्छेद राज्य को किसी भी ईडब्ल्यूएस की उन्नति के लिए तथा शिक्षण संस्थानों में उनके प्रवेश हेतु विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
- यह कोटा मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगा तथा प्रत्येक श्रेणी में कुल सीटों की अधिकतम 10 प्रतिशत सीमा के अधीन होगा।
- अनुच्छेद 16(6)- यह राज्य को अधिकार देता है कि वह खण्ड (4) में वर्णित वर्गों के लिए प्रदत्त मौजूदा आरक्षण के अलावा किसी भी ईडब्ल्यूएस के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का प्रावधान करें।
Economically Weaker Sections के लिए पात्रता हेतु मानदण्ड
- आर्थिक रूप् से पिछडा वर्ग के निर्धारण के लिए 31 जनवरी, 2019 को कार्मिक एंव प्रशिक्षण विभागे के नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके तहत वह व्यक्ति जो एससी/एसटी और ओबीसी आरक्षण से बाहर हो और उसके परिवार की सालाना आय 8 लाख रुपयें से ज्यादा न हो, वह इस आरक्षण लेने का पात्र है। इसमें आय कीक व्याख्या की गई है और कुछ परिसम्पत्तियों के आधार पर परिवारों को इससे बाहर रखने की व्यवस्था भी की गई है।
- परिवार के पास 5 एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि न हो।
- आवेदक के पास 1000 वर्ग फीट गज से बड़ा फ्लैट नहीं होना चाहिए।
- अधिसूचित नगर पालिका इलोक में 100 वर्ग से बड़ा घर नहीं होना चाहिए।
- गैर अधिसूचित नगर पालिका में 200 वर्ग गज से बड़ा घर न हो।
- एक व्यक्ति जो एससी, एसटी और ओबीसी के लिए प्रदत्त आरक्षण के तहत कवर न किया गया है।
कमेटी ने लगाई थी मुहरः- अक्टूबर, 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से आठ लाख सालाना आय के निर्धारण का आधार पूछा था। इस पर सरकार ने कहा था कि वह इस सीमा पर पुनर्विचार करेगी। इसके लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की गई थी। इस साल जनवरी में कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस आय सीमा को सही माना था।